Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

20.5.10

देश में सरकार की क़ानून व्यस्था क्या ठीक हैं ?


मेरे दिमाक में कुछ दिनों से एक कीड़ा उछल रहा हैं और बार बार कुछ सवालो के जवाब मांग रहा हैं की ये जो हमारी सरकार हैं और जो भी पुराने और नए क़ानून हैं उनमे हम जैसे गरीबो का ही शोषण क्यों होता आ रहा हैं?
या फिर इन कानूनों को किसी अमीर पैसे वाले व्यक्तियों के द्वारा तैयार किया गया हैं?
इसके बारे में तो मैं कुछ भी नहीं कह सकता हु, लेकिन जो भी हो शायद ये क़ानून जब बनाये जा रहे होंगे तो इसमें गरीबो का हित नहीं देखा गया होगा, तभी तो इनमे कुछ कमिया रह गयी हैं.
मैं अभी आपका ध्यान सिर्फ दो बातो की तरफ ध्यान दिलाना चाहता हु, जिनसे आप भी सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की सरकार गरीबो और अमीरों के साथ भेदभाव करती हैं या नहीं?

पहली बात :-
किसी भी ट्रेन में अगर आप बिना टिकट यात्रा करते हैं तो आप सरकार द्वारा तय किये गए दंड को भोगने के लिए उतरदायी हैं. जोकि कुछ इस प्रकार हैं :-
(1) अगर आप बिना टिकट यात्रा करते हैं तो 500 तक का जुर्माना भरना होगा,
(2) और यदि आपके पास जुर्माने को भरने की रकम नहीं हैं तो 6 महीने की जेल जाने की सजा मिलेगी.

अब इस क़ानून से ये तो स्पष्ट हो गया की भारतीय क़ानून कितना सख्त हैं मुफ्खोरो के लिए. लेकिन किस हद तक?
क्योंकि अगर कोई अमीर व्यक्ति जो बिना टिकट के यात्रा कर रहा हो और पकड़ा जाये तो वो 500 रूपए देकर आराम से निकाल सकता हैं. लेकिन वहीँ कोई गरीब व्यक्ति अपने हालत के आगे बेबस होकर बिना टिकट यात्रा करते हुए पकड़ा जाये तो और जुर्माना ना भर पाने की स्थिति में 6 महीने की सजा भोगने का उतरदायी हो सकता हैं.
यहाँ पर मेरा एक सीधा सा सवाल आप लोगो और सरकार से ये हैं की क्या 500 रूपए की राशि 6 महीने की सजा के बराबर हैं? और यदि हैं तो उन बेचारो का क्या होगा जिनका परिवार हैं और बिचारे टिकट नहीं खरीदने की वजह से 6 महीने की सजा काटने के लिए अपने परिवार से दूर हो जाते हैं? और यदि वही एक व्यक्ति ही परिवार का आमदनी का जरिया हो तो ?????
क्या ये सरकार द्वारा बनाया गया कानून सही हैं???


दूसरी बात :-
अभी कुछ महीनो पहले की ही बात हैं जब हमरे देश के कुछ खिलाडी ओलम्पिक में गए थे और वहां पर कुछ ने तो पदक जीतकर देश का सम्मान और गौरव को बढाया. लेकिन मुझे सरकार से यहाँ पर भी एक शिकायत हैं की वो सिर्फ परिपूर्ण व्यक्तियों के हित में ही कार्य कर रही हैं.
वो कैसे ? चलिए मैं आपको इसका एक सीधा और सच्ची घटना से समझाने का पर्यास करता हु :-
अभी ओलामिक से स्वर्ण पदक जीत के आये एक तीरबाज और देश का नाम उचा करने वाले शख्स जिनका नाम तो शायद मुझे पता नहीं लेकिन इतना पता हैं की उनके पास काफी धन-दौलत हैं और वो काफी परिपूर्ण व्यक्ति भी हैं, को सरकार के द्वारा लगभग 3 करोड़ की राशि इनाम में दी गयी (जैसा की मैंने सुना हैं). अच्छी बात हैं सरकार उन व्यक्तियों का उत्साह और उन्हें सम्मान दे रही हैं और मुझे ख़ुशी भी हैं सरकार के इस रवैये से क्योंकि देश ये ये गौरवशाली खिलाडियों ने देश का नाम रौशन जो किया हैं.
वही दूसरी और जहाँ बोर्डर पर हमारे देश के जाबांज सिपाही जंग लड़ते हुए शहीद हो जाते हैं और देश को अपना बलिदान देने से नहीं हिचकिचाते, के साथ सरकार क्या कर रही हैं?
अगर कोई सिपाही शहीद हुआ हैं तो उसके परिवार को 1-2 लाख रुपये दिए जाते हैं. और जहाँ सरकार खुद कहती हैं की महंगाई का जमाना हैं तो फिर मैं ये पूछना चाहता हु की अगर महंगाई का जमाना हैं तो क्या आपके द्वारा दी गयी राशि में क्या इनके परिवार का गुजर बसर हो सकता हैं ?
और क्या एक जाबांज सिपाही के जान की कीमत सिर्फ इतनी राशि से लगई जानी चाहिए? और मैं ये नहीं कह रहा की सरकार को बहुत सारे पैसे इनके परिवार को देना चाहिए लेकिन मेरा तथ्य ये हैं की उस सिपाही के बाद उसके परिवार को उबरने में और सामान्य जीवन में दुबारा जाने के लिए सिर्फ इतनी सी राशि से गुजारा कर सकते हैं.

मैं बस ये जानना चाहता हु की हमारी देश की सरकार इन कानूनों में बदलाव क्यों नहीं करती ?

2 comments:

Ajit Kumar Mishra said...

अब जरा एक कानून और देखिये अक्सर सुनने में आता है कि अपराधियो और आंतकवादियों के पुनर्वास के लिए नौकरी, आर्थिक मदद आदि पर करोड़ो रुपये खर्च किये गये पर कितने पुनर्स्थापित हुये नही पता। पर एक सरकारी कर्मचारी अकाल मौत का शिकार होता है तो मृतक आश्रित को नौकरी देने पर कोर्ट ने भी पाबंदी लगा रखी है। चाहे परिवार मरे या जियें कोई मतलब नहीं। अब में कुछ वाक्य को लिखता हूँ जो कि मृतक आश्रित को नौकरी देने के संबध उच्च कार्यालय से आयेः-
1. मृतक के परिवार में पहले चार व्यक्ति थे एक की मौत होने पर अब खाने वाले तीन रह गये है। अतः खर्चा कम हो गया है। इस वाक्य को लिखते समय यह नही सोचा गया कि अब कमाने वाला भी कम हो गया।
2. मृतक आश्रित एक उच्च शिक्षित है अतः उसके किसी अन्य जगह पर नौकरी तलाशने की सलाह दी जाती है। मतलब इस विभाग को उच्च शिक्षित लोगो की जरुरत नहीं।
3. एक मृतक आश्रित जो कि उम्र मे कम था कर्मचारी के मरने के 3 साल बाद आवेदन किया उसका उत्तरः- चूंकि अभी तक परिवार का गुजारा होता रहा है अतः आगे उसको रोजगार की जरुरत नहीं।

Unknown said...

जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
============

उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in