पिछले महीने मेरे पुत्र वैभव ने उसकी प्रेस कॉन्फेंस की सफलता और उषा ओम नोलेज कंसल्टेंसी सर्विसेज प्रा. लि. की उदयपुर में शाखा खोलने की खुशी में मुझे एक सफेद नैनो कार, एक सफेद “मेक बुक” लेपटॉप और बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” भेंट किया, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ डॉ. योगेश शर्मा ने मुझे फोन करके बताया कि मैं अगले दिन पांच बत्ती जयपुर स्थित वेट पॉलीक्लीनिक में डॉ. योगेन्द्र पाल सिंह से मिल लूं, वे मिनी का बेस्ट पॉसीबल ट्रीटमेंट कर देंगे। मैंने उनसे पूछा कि डॉक् सा. को फीस कितनी देनी है, मिनी के इन्वेस्टिगेशन क्या करवाने हैं। वे थोड़ा नाराज सा होकर बोले,“ डॉक् सा. हमारे ये रोगी, जिन्हें आप जानवर कहते हैं, बिना कोई पारिश्रमिक लिए मानव समाज की तन मन से आजीवन सेवा करते हैं, मानव के सैंकड़ों काम करते हैं और इनके बिना मानव का जीवन संभव भी नहीं है। क्या इनका उपचार करना भी हमारा कर्तव्य नहीं है? क्या हमें इनसे भी फीस लेनी चाहिये? डॉक् सा. बुरा मत मानना इंसानी चिकित्सकों जैसी हैवानियत और व्यावसायिकता अभी हम तक नहीं पहुंची है, हममें ईमानदारी, इंसानियत और सेवा के वायरस अभी भी जिंदा हैं।” मैं चुपचाप उनका व्याख्यान सुनता रहा।
मैंने अपने सेक्रेट्री कमलेश को कहा कि एसेंट को साफ करवाओ और सामान रखवाओ। उसने बताया कि गाड़ी पंचर है और मैंने पंचर सुधारने के लिए कहा। पंचर सुधारने वाले ने बताया कि डिक्की में स्टेपनी खोलने वाला पाना ही नहीं है। मुझे वैभव को फोन करना पड़ा, उसने कहा कि मैं परेशान न होऊं वह टेक्सी लेकर आ रहा है। मैंने हमारे घर के सामने लगे स्वचालित मुद्रा विसर्जन यंत्र से जितने संभव हो सके पैसे निकाल लिए । घर आकर वैभव ने भी चुपचाप 32 हजार रुपये मुझे थमा दिये।
इस तरह हम टेक्सी से मिनी और कमलेश को लेकर जयपुर के लिए रवाना हो गये। कमलेश मिनी को बीच बीच में उसके मनपसंद अलसी, काजू और बादाम के बिस्किट (जिन्हें मेरी पत्नि मिनी के लिए नियमित माइक्रोवेव ओवन में बनाती है) खिला रहा था, कभी पानी पिला देता था। मैं भी मिनी के बारे में ही सोच रहा था। लंबा सफर था, मन उदास था, सोचा लेपटॉप पर मूवी देख लूँ। मैं आशुतोष ग्वारीकर की “What’s your राशि” देखने लगा। फिल्म अच्छी लगी। प्रियंका चौपड़ा ने एक नहीं दो नहीं पूरे बारह शानदार किरदार निभाये। तुला राशि वाले रोल में तो प्रियंका ने जान ही डाल दी। समझ में नहीं आ रहा था कि इतना अच्छा डायरेक्टर, इतनी बढ़िया फिल्म फिर भी टिकिट खिड़की पर ध्वस्त। तभी मेरा ध्यान अचानक फिल्म के “खिचड़ी” नाम पर गया, मैं हैरान था कि ग्वारीकर साब को ठीक से अंग्रेजी नहीं आती या हिन्दी में इतने फिसड्ढी हैं कि अपनी फिल्म का नाम हिन्दी में सोच भी नहीं पाये। या ये फिल्म को हिट करवाने का कोई नया टोटका है। यदि इस फिल्म का नाम “राशि मिले शादी फले” रखा जाता तो शायद यह भी लगान जैसी हिट हो जाती।
इसी तरह खिचड़ी नामों से बनी फिल्में “प्यार Impossible”, “Love खिचड़ी”, “God तुसी Great हो”, “किस्मत Konnection” आदि (लिस्ट लम्बी है) सुपर फ्लॉप रही। फिर ध्यान आया फिल्म “जब We met” शायद हिट थी। परन्तु इसी फिल्म के बनते-बनते करीना कपूर और शाहिद कपूर का हंसों जैसा जोड़ा, जो बॉलीवुड में बरसों से हॉट कपल के नाम से मशहूर था, बिछुड़ गया था। प्यार की रिक्तता में करीना इतनी अंधी व बावली हो गयी कि कुछ भी नहीं देख पाई और सैफ़ अली खान से, जो कि अधैड़ है, द्वि-वर है और दो बच्चों का बाप है, चट से पट गयी। ऐसी फिल्म को हम हिट तो कैसे मानेंगे। यदि फिल्म का नाम “जब हुई भैंट” होता तो शायद आज करीना कपूर और शाहिद कपूर कभी न बिछुड़ते।
दूसरी ओर वे फिल्में जिनके नाम हिन्दी में रखे गये जैसे “गज़नी”, “अजब प्रेम की गज़ब कहानी”, “दे दनादन”, “कमीनें”, “कम्बख़्त इश्क”, “अतिथि तुम कब जाओगे”, “न घर के रहे न घाट के”, “ओ३म शांति ओ३म”, “रब ने बना दी जोड़ी”, “इश्किया”, “थ्री ईडियट्स” आदि सब ने निर्माताओं को खूब पैसा कमा कर दिया।
अगले दिन आखिरकार हम पांच बत्ती स्थित राजकीय बहुद्देशीय पशु चिकित्सालय (पॉली क्लिनिक) पहुँचे। हमनें पूरे अस्पताल परिसर का अवलोकन किया। अस्पताल का ओ.पी.डी. ब्लॉक, इन-डोर वार्ड, प्रसूति गृह और ओ.टी. सभी हमारी परिकल्पना के विपरीत अत्यंत साफ सुथरे थे। वहां के सारे स्टाफ और डॉक्टर्स का व्यवहार शीतल और सौम्य था। जानवरों के इस पॉली क्लिनिक में हमें जो सहयोग, प्रेम और सद्भावना देखनें को मिली, उसने हमारी आत्मा को झकझोर कर रख दिया। काश! राजकीय मानव चिकित्सालयों में भी ऐसा वातावरण तैय्यार किया जा सके।
फिर हम शल्य चिकित्सक डॉ. योगेन्द्र से मिले। उन्होंने बड़े प्यार से हमारा स्वागत किया, बड़े ही दया भाव से मिनी का परीक्षण किया और उसके एक्स-रे का अवलोकन किया। मेरा पूरा ध्यान उनकी ओर था, उनके चेहरे की पल-पल बदलती मुद्राओं से मेरे मानस में हर पल एक नई कहानी जन्म ले रही थी। 5 मिनट बाद उन्होंने बड़े आत्म विश्वास से मेरी आंखों में देखा और कहा कि हमारी मिनी को 21 दिन के लिए स्प्लिंट लगाना होगा। उन्होंने बड़ी बारीकी से मिनी के पैर का नाप लिया और एल्युमिनियम की एक विशिष्ठ रोड से उन्होंने एक कस्टमाइज्ड स्प्लिंट बनाया और इतने प्यार और ऐतिहात के साथ मिनी के पैरों में प्लास्टर से चिपकाया कि मिनी ने जरा सी उफ़ तक नहीं की। मानव और जानवर का इतना घनिष्ठ प्रेम मय दृश्य मैं पहली बार देख रहा था। उनके हाथों में शायद जादू ही था कि स्प्लिंट लगते ही मिनी तुरंत खड़ी हो गयी और धीरे-धीरे चलने भी लगी। हमारी धड़कने जो दो दिन से लगभग रुकी हुई थी, खुशी से यकायक धड़क उठी।
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
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1 comment:
bahut badhiya lekhan. subhakamanaaye.
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