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1.6.10

राजनीति के असली चेहरे

प्रकाश झा की नयी फिल्म राजनीति बनकर तैयार है। एक-दो दिन में रिलीज होने वाली है। इस पर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं। कुछ लोगों ने इसका प्रदर्शन रोकने के लिए हाई कोर्ट में याचिकाएं भी दायर की थीं मगर अदालत ने उनकी बात सुनी नहीं। छुटभैये कांग्रेसियों का कहना है कि इस फिल्म में सोनिया गांधी को घसीटने और उन्हें अपमानजनक तरीके से दिखाने की कोशिश की गयी है। एक पटकथालेखक अपनी अर्जी लेकर कोर्ट गये थे कि झा ने उनकी कहानी चुरा ली है लेकिन दोनों याचिकाएं कोर्ट ने ठुकरा दी।

अब न झा के सामने कोई अवरोध रह गया है, न ही उनकी फिल्म राजनीति के सामने। अक्सर प्रकाश झा की फिल्मों को लेकर विवाद खड़ा होता रहा है। जब कोई भी फिल्मकार साहस करके समकालीन जीवन की विसंगतियों, बुराइयों और पाखंड को फिल्म के जरिये दिखाना चाहता है तो यह संभावना बनी रहती है कि असल जीवन के कुछ चरित्र उसमें इस तरह आ जायें कि वे पहचाने जा सकें। तभी तो दर्शक फिल्म के संदेश को पकड़ पाता है। झा मुंबई आये थे, पेंटर बनने की ख्वाहिश लेकर लेकिन उनके भीतर बैठा कलाकार उन्हें अपने रास्ते पर खींच ले गया।

पहली बार वे तब जबर्दस्त चर्चा में आये, जब उन्होंने बिहारशरीफ के दंगों पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई। उसका नाम था-द फेसेस आफ्टर स्टार्म। इस पर सरकार ने बैन लगा दिया लेकिन बाद में इसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उनकी एक फिल्म पर लालू यादव के एक रिश्तेदार और उनके समर्थकों ने भी बड़ा बावेला मचाया था। आरोप लगाया गया था कि फिल्म में उन्हें इस तरह पेश किया गया है, जो उनके राजनीतिक करियर के लिए घातक साबित हो सकता है।

अगर जीवन में विद्रूपता है, पाखंड है, आडंबर है तो असली चेहरे उघाड़ने वालों के लिए तो जोखिम बना ही रहेगा। प्रकाश झा ने यह जोखिम बार-बार उठाया और विरोध झेला। बाद में उन्हें कामयाबी भी मिली। चूंकि वे बिहार से आये थे इसलिए वहां के जीवन की विसंगतियों का उन्हें गहरा ज्ञान था। उन्होंने बिहार की सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों पर कई फिल्में बनायी और वे खूब चर्चित रहीं। मृत्युदंड और गंगाजल ऐसी ही फिल्में थी। बंधुआ मजदूरों की जिंदगी पर उनकी फिल्म दामुल ने भी बहुत दर्शक बटोरे। अब राजनीति की बारी है। देखना है प्रकाश राजनीति के असली चेहरे को कितना नंगा कर पाते हैं।

2 comments:

डॉ० डंडा लखनवी said...

फिल्म संबंधी नवीन जानकारी के लिए
साधुवाद। साहित्य की तरह फिल्में भी
जनमत बनाने में कारगर भूमिका
निभाती हैं। देखना यह है कि फिल्मकार
प्रकाश झा इल्मकार के रूप में देश
व समाज को क्या देते हैं।
सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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EKTA said...

rajniti..achhi movie hogi..
em very curious to watch it coz i just wanna see the reality behind politics..