2.4.11
जनता जब भीड़ में तब्दील हो जाती है तो भीड़ का न्याय अकल्पनीय होता है|
जनता जब भीड़ में तब्दील हो जाती है
तो भीड़ का न्याय अकल्पनीय होता है|
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सुधि पाठक इस आगे पढने से पूर्व केवल इतना सा जान लें कि प्रत्येक सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भारत के संविधान के अनुसार पब्लिक सर्वेण्ट हैं, जिसका स्पष्ट अर्थ है कि प्रत्येक सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी न तो भारत सरकार का नौकर है और न हीं वह अफसर या कर्मचारी है, बल्कि वास्तव में वह देश की ‘‘जनता का नौकर’’ है| जिसे जनता की खून-पसीने की कमाई से एकत्रित किये जाने वाले अनेकों प्रकार के राजस्वों (करों) से संग्रहित खजाने से प्रतिमाह वेतन मिलता है| जनता का प्रत्येक नौकर जनता की सेवा करने के लिये ही नौकरी करता है और दूसरी बात यह समझ लेने की है कि प्रत्येक पब्लिक सर्वेण्ट अर्थात् जनता के नौकर का पहला और अन्तिम लक्ष्य है, ‘‘पब्लिक इण्ट्रेस्ट अर्थात् जनहित|’’ जनहित को पूरा करने के लिये जनता के नौकर केवल आठ घण्टे ही नहीं, बल्कि चौबीसों घण्टे कार्य करने को कानूनी रूप से बाध्य होते हैं| इसके उपरान्त भी जनता के नौकर स्वयं को जनता का नौकर या सेवक नहीं, बल्कि जनता का स्वामी मानने लगे हैं, जिसके विरुद्ध जनता चुप रहती है और अपने नौकरों की मनमानियों का विरोध नहीं करती है, जिसके चलते हालात इतने बदतर हो गये हैं कि नौकर तो मालिक बन बैठा है और मालिक अर्थात् जनता अपने नौकरों की सेवक बन गयी है| यह स्थिति विश्व के सबसे बड़े भारतीय लोकतन्त्र के लिये शर्मनाक और चिन्ताजनक है| इस स्थिति को कोई एक व्यक्ति न तो बदल सकता है और न हीं समाप्त कर सकता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति जनता के नौकरों को यह अहसास तो करवा ही सकता है कि वे जनता के नौकर हैं और जनता के सुख-दुख की परवाह करना और जनता के हितों का हर हाल में संरक्षण करना, जनता के नौकरों का अनिवार्य तथा बाध्यकारी कानूनी एवं संवैधानिक दायित्व है! इसी बात को पाठकों की अदालत में प्रस्तुत करने के लिये कुछ तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है|
कुछ समय पूर्व की घटना है| मैंने एक जिला स्तर के अफसर अर्थात् लोक सेवक अर्थात् जनता के नौकर से किसी जरूरी काम से बात करना चाहा, फोन उनके पीए ने उठाया और मुझे बताया कि ‘‘साहब यहॉं नहीं हैं’’ और आगे मेरी बात सुने बिना ही फोन काट दिया गया| संयोग से मेरे पास उनका मोबाइल नम्बर भी था, मैंने उन्हें मोबाइल लगाया, तो बोले ‘‘कौन?’’ मैंने कहा, ‘‘देश का एक आम व्यक्ति अर्थात् पब्लिक!’’ उधर से जवाब आया, ‘‘अभी मैं मीटिंग में हूँ, बाद में बात करना|’’ मैंने पूछा, ‘‘मीटिंग कब खत्म होगी?’’ जवाब मिला, ‘‘साढे पांच बजे...’’ और उन्होंने मोबाइल काट दिया| मैंने सोचा मैं ‘‘पब्लिक’’ हूँ और ‘‘पब्लिक का नौकर’’ ‘‘पब्लिक हित’’ में कोई जरूरी मीटिंग में व्यस्त हैं, लेकिन अचानक मेरा माथा ठनका कि उनके पीए ने तो बताया था कि ‘‘साहब यहॉं नहीं हैं’’ जबकि साहब स्वयं को मीटिंग में बतला रहे हैं| मैंने फिर से उनके पीए को फोन लगाया और पूछा, ‘‘आपके साहब कहॉं हैं?’’ जवाब आया, ‘‘जरूरी काम से बाहर गये हैं|’’ इस बार जवाब देने वाला कोई सज्जन पब्लिक सर्वेण्ट था, जिसने फोन नहीं काटा तो मैंने दुबारा पूछा ‘‘कब तक आयेंगे|’’ पीए साहब बोले, ‘‘जरूरी काम हो तो आप मोबाइल पर बात कर लें, साहब तो शायद ही ऑफिस आयेंगे, वे मैडम के साथ बाजार गये हैं|’’ उनको धन्यवाद कहकर मैंने फोन रख दिया और साढे पांच बजने का इन्तजार करने लगा, लेकिन कार्यालय समय (छह बजे) समाप्त होने तक उनका कोई फोन नहीं आया| आप सोच रहे होंगे कि अधिकारी से मैंने फोन करने की आशा ही क्यों की?
अगले दिन मैंने दस बजे फोन लगया तो पीए ने बताया, ‘‘साहब साढे दस बजे तक आने वाले हैं|’’ साढे दस बजे लगाया तो जवाब मिला, ‘‘बस आने ही बाले हैं, कुछ समय बाद दुबारा फोन लगालें|’’ ग्यारह बजे फोन लगाया तो पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’ मैंने अपना नाम बता दिया, किन्तु फिर से उनके पीए ने पूछा कि ‘‘आपकी कोई पहचान?’’ मैंने कहा कि ‘‘मैं पब्लिक हूँ!’’ पीए ने अपने साहब को न जाने क्या बोला होगा, लेकिन उन्होंने मेरी बात करवा दी| अब आप हमारी बातचीत पर गौर करें :-
‘‘बोलिये कौन बोल रहे हैं?’’
‘‘क्यों, क्या आपके पीए ने नहीं बताया कि मैं कौन बोल रहा हूँ?’’
‘‘हॉं बताया तो था, बोलिये क्या काम है?’’
‘‘आपको मैंने कल फोन किया था, तब आप मीटिंग में थे, लेकिन आपने मीटिंग समाप्त होने के बाद मुझसे मोबाइल पर बात नहीं की, जबकि आपके मोबाइल में मेरा मोबाइल नम्बर भी आ ही गया होगा|’’
कुछ क्षण रुक कर, सकपकाते हुए ‘‘हॉं..हॉं.. आ तो गया होगा, लेकिन आप हैं कौन?’’
‘‘अभी-अभी आपके पीए ने बताया तो है!’’
‘‘हॉं.. मगर आप चाहते क्या हैं’’
‘‘मैं आपसे बात करना चाहता हूँ और बात कर रहा हूँ, लेकिन आप मेरी बात का जवाब ही नहीं दे रहे हैं, आखिर आपने मुझसे कल मीटिंग खत्म होने के बाद बात क्यों नहीं की?’’
‘‘आप ये बात मुझसे किस हैसियत से पूछ रहे हैं, आप हो कौन....?’’
‘‘अभी तक आपको मेरा परिचय समझ में नहीं आया है, मैं फिर से बतला दूँ कि मैं पब्लिक हूँ और आप पब्लिक सर्वेण्ट हैं| आपका मालिक होने की हैसियत से आपसे पूछ रहा हूँ कि आपने मुझे साढे पांच बजे मीटिंग समाप्त होने के बाद फोन क्यों नहीं किया?’’
कुछ क्षण तक सन्नाटा, कोई जवाब नहीं!
मैं फिर से बोला, ‘‘आप मेरी बात सुन तो रहे हैं? कृपया बोलिये...?’’
(अत्यन्त नम्रता से)
‘‘हॉं आपकी बात सही है, मीटिंग देर तक चलती रही और बाद में, मुझे याद नहीं रहा| आप अब बतायें क्या सेवा कर सकता हूँ|’’
‘‘आप मीटिंग में थे या पत्नी को शॉपिंग करवा रहे थे? शर्म नहीं आती झूठ बोलते हुए?’’
एकदम से सन्नाटा! कोई जवाब नहीं!
फिर से मैंने ही बात की, ‘‘आप कोई जवाब देंगे या आपके बॉस से बात करूँ.....?’’
‘‘नहीं...नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं है| शौरी आपको तकलीफ हुई, आप मुझे सेवा का मौका तो दें....काम तो बतायें|’’
इसके बाद मैंने उन्हें पब्लिक इण्ट्रेस्ट का जो कार्य था, वह बतलाया और साथ ही यह भी बतलाया कि जब भी पब्लिक फोन/मोबाइल पर बात करती है, तो उसमें पब्लिक का खर्चा होता है, इसलिये पब्लिक की ओर से उपलब्ध कराये गये सरकारी फोन/मोबाइल पर, अपने कार्य से फ्री होने पर पब्लिक से बात की जानी चाहिये| यह प्रत्येक पब्लिक सर्वेण्ट का अनिवार्य दायित्व है और अपने पीए को भी समझावें कि वे जनता की पूरी बात न मात्र सुनें ही, बल्कि नोट करके समाधान भी करावें| जिससे जनता के नौकरों के प्रति जनता की आस्था बनी रहे, अन्यथा लोगों के लिये अपने नौकरों को हटाना असम्भव नहीं है| जनता जब भीड़ में तब्दील हो जाती है तो भीड़ का न्याय अकल्पनीय होता है| प्रत्येक पब्लिक सर्वेण्ट का प्रथम कर्त्तव्य है कि जनता के असन्तोष को जनाक्रोश में तब्दील नहीं होने दें|
इस घटना के कुछ दिनों बाद राजस्थान के सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय पर थाना प्रभारी फूल मोहम्मद को भीड़ द्वारा जिन्दा जला देने की दुखद घटना धटित हो गयी तो इन महाशय ने मुझे फोन करके कहा कि मीणा जी आपने सही कहा था कि ‘‘जनता जब भीड़ में तब्दील हो जाती है तो भीड़ का न्याय अकल्पनीय होता है|’’ मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझे अपने कर्त्तव्यों के प्रति सचेत किया और मुझे संवेदनशील पब्लिक सेर्वेण्ट बनने का अवसर दिया| थैंक्स|’’
मैंने उन्हें इतना ही कहा परमात्मा आपका और अपके स्वजनों का भला करें और आप आपनी मालिक आम जनता के हित में संजीदगी से कार्य करते रहें, जिससे हमारा समाज और देश उन्नति करता रहे| धन्यवाद|
Labels: अधिकारी, अफसर, कर्मचारी, जनता, जनता का नौकर, पब्लिक सर्वेण्ट
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