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7.4.11

आधुनिक बोधकथाएँ-२ । (नयी बहु)

आधुनिक बोधकथाएँ - २ (नयी बहु)
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html


(सौजन्य-गुगल इमेज) 
नयी बहु ।

विपरीत समय और अपने ख़्बाब की  सुंदर कन्या को पसंद करने के चक्कर में, एक  महानुभव, करीब-४० साल की उम्र  तक कुँवारे रह गए । चलो, इन को हम,` पवन` के नाम से पहचानें । ऐसे इन्सान ज्यादातर स्वभाव से सरल और भोले होते हैं, अतः `पवन` भी अपनी सपनों की दुनिया में जीने वाला भोला-भाला सा इन्सान था ।

मगर, जैसा सभी लोग कहते हैं की, विवाह बंधन का संयोग, हमेशा भगवान तय करते हैं, अपने भोले पवन को भी संयोग से, करीब ३८ साल की एक अनुभवी कन्या (?) नाम-`चेतना` अंत में मिल ही गई ।  वर-वधु में से, किसी एक पार्टी का भी इरादा कहीं बदल न जाए, इसी आशंका को लेकर, बहुत ही जल्दबाजी में, दोनों के विवाह संपन्न कराये गए ।

इतनी बड़ी उम्र में, साल बीस-चौबीसवाला मुग्धावस्था का मामला तो होता नहीं है..!! इसीलिए नयी बहु चेतना ने आते ही अपनी ससुराल में, अपनी माँ (पवन की सास) के सिखाए हुए तमाम आँटसाँट आज़माकर, अपने भोलेभाले पति पवन को वश में करके, घर के सारे व्यवहार और पवन के कारोबार पर अपना अधिपत्य जमाना शुरु कर दिया ।

पवन भले ही भोलाभाला था, पर  बाकी घरवाले मूर्ख न थे । थोड़े ही दिनो में चेतना के सारे अवगुण,पवन की माँ -पिता, छोटे भाई ,छोटी बहन,सब के समझ में आ गये..!! सब को पता चल गया की, चेतना, पवन को बहलाफुसला कर, घर का सारा व्यवहार,कारोबार और रुपया-तिजौरी,सब पर अपना स्वामित्व जताना चाहती है..!!

अतः चेतना की सारी साज़िश को, पवन के अलावा घर के और सारे सदस्य एकजूट होकर नाकाम करने की कोशिश में लग गए । अपनी साज़िश को नाकाम होते देख, चेतना के मन में,  घर के बाकी सारे सदस्यों के प्रति धृणा एवं अभाव पैदा होने लगा ।

थोडे ही दिनों में, चेतना को अपनी औक़ात दिखाते हुए, सारे घरवालों ने मिलकर, बहु को एक नौकरानी जैसा बनाकर रख दिया । सुबहमें जल्दी उठकर, सब के लिए चाय-नास्ता, दोपहर का भोजन, दोपरह की चाय, शाम का भोजन, और घर के अन्य सारे छोटे-मोटे काम, उ..फ..फ..फ..!!

एक-दो महीना होते होते, चेतना काम के भारी बोज से थक गई, उसे इतना सारा काम रहता था की, वह अपने पति पवन के साथ पांच मिनट का समय भी बिता न पाती थी । रात को भी चेतना इतनी थककर चूर हो जाती थी की, अपने बिस्तर पर लेटते ही उसे गहरी नींद  आ जाती थीं..!!

ऐसे में एक दिन चेतना की माँ (पवन की सास),अपनी बेटी चेतना का हालचाल पूछने के लिए आ पहुंची । चेतना तुरंत अपनी माँ को, अपने कमरे में ले गई और सासरीवालों की चौकसी की वजह से उसकी सारी साज़िश नाकाम हो रही थी, ये सारी बाते माँ को बता दीं । यह सब सुनकर,चेतना की माँ को, सब पर बहुत गुस्सा आया और उसने अपनी बेटी चेतना के कान में, कुछ अकसीर नुस्खें बताकर `विजयी भवः` का आशीर्वाद देकर रवाना हो गई ।

उसी दिन, शाम होने को आई, सायं भोजन तैयार करने का वक़्त हो चला था,फिर भी रसोई घर में बहु दिखाई न देने की वजह से, सास ने बहु को ज़ोर से आवाज़ दी । चेतना बहु अपने कमरे से, आराम से आकर सास के सामने बेपरवाह सी खड़ी हो गई । पवन की माँ को, बहु के तेवर कुछ बदले बदले से दिखाई दिए,उसके बावजूद सास ने चेतना को शाम का भोजन तैयार करने के लिए कहा ।

बस, सास का इतना कहना था की, चेतना वहीं ध..डा..म से ज़मीन पर गिर गई और  दायें-बायें लोट लगाते (Roll) लेटने लगीं । बहु को ज़मीन पर इधर उधर लेटते देख, मारे घबराहट के सास की चीख निकल पड़ी और पवन और घर के बाकी सदस्य को आवाज़ देकर उसने सब को  इकट्ठा कर लिया । बहु को शायद हिस्टीरिया का दौरा (मिर्गी का दौरा) पड़ गया होगा समझकर, कोई चेतना  को जूता, कोई उसे प्याज़ सुंघाने लगा । इतने में चेतना जोरों से दहाड़ मार कर उठ बैठी और अपने सारे बाल खुला छोड़कर,आंखे फाड फाड कर, चीखते-चिल्लाते हुए, अपना सर चारों दिशा में हिलाकर, सारा तन थरथराने लगीं ।

पवन के घरमें, ढेर सारा हंगामा और चिल्लाहट सुनकर सारे पड़ोसी भागे भागे दौड़ आए । किसी श्रद्धालु बुढ़ियाने चेतना से,`आप कौन है?` सवाल किया । जिसके जवाब में चेतना ने बताया, वह एक देवी शक्ति है और सत्यवती चेतना बहु की पवित्र भक्ति से प्रसन्न होकर,सारे दुःख दर्द दूर करने के लिए, उसके तन में प्रवेश किया है।

फिर तो होना ही क्या था..!! 

चेतना बहु के तन में प्रवेश कर, कोई देवी शक्ति सब को सुखी होने का आशीर्वाद दे रही है, ऐसे समाचार आग की तरह सारे गाँव में फैल गए । देवी शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, कई लोगों ने, अपने हाथों में दीपक,अगरबत्ती,नारियल और फुलफल के साथ, पवन के घर के बाहर क़तार लगा दी..!!

चेतना की माँ की बताई हुई अकसीर तरकीब बढ़िया काम कर रहीं है, यह देखकर चेतना मन ही मन, ये सभी बेवकूफ़ श्रद्धालु लोग पर मुस्काती रही । चेतना का आनंद तब दोगुना हो गया जब, उसके सास=ससुर और बाकी घरवालों के साथ, उसके पति पवन ने भी, चेतना के साथ किए गए बुरे बर्ताव के बदले, देवी शक्ति उर्फ़ चेतना के चरणस्पर्श कर, हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी..!!

बस फिर तो जैसे चेतना को नौकरानी की बजाय मानो घर में राजरानी का ओहदा प्राप्त हो गया । किसी को शक होने की बात तो दूर, अब तो चेतना को घर में पानी की इच्छा करने पर बैठे बिठाए दूध मिलने लगा ।

पर कहते हैं ना की, ज्यादा चतुर लोग कभी ना कभी बड़ी बेवकूफी कर जाते हैं? एक हफ्ते के बाद, चेतना ने भी ऐसी ही एक ग़लती कर दी..!! अपनी साज़िश में खुद कैसे कामयाब हो गई, और उसने कैसा ला जवाब अभिनय किया इस बात का वृत्तांत जब, चेतना फोन पर उसकी माँ को सुना रही थी, उसी वक़्त, ये सारी बातें, बगल के कमरे में उपस्थित चेतना के पति और सास ने सुन ली । थोड़ी ही देर में सभी घरवालों को पता चल गया की चेतना, देवी शक्ति का प्रवेश होने का ढोंग रचा कर, घर में अपना सिक्का जमाना चाहती थी ।

उसी दिन शाम होते ही, रसोई में काम कर रही सास ने, चेतना बहु को आवाज़ देकर भोजन में थोड़ा हाथ बटाने के लिए कहा । यह सुनते ही रोज़ की तरह, चेतना  अपने सारे बाल खुला छोड़कर,आंखे फाड़ फाड़ कर, चीखते-चिल्लाते हुए, अपना सिर चारों दिशा में हिलाकर, सारा तन थरथराने लगीं । थोड़ी ही देर में सारे पडोसी देवीमाँ के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, फिर से एकत्रित हो गए..!!

पर अब की वार ये क्या हुआ..!!

यहाँ जैसे ही चेतना में देवी शक्ति का आविर्भाव हुआ उसी समय, अचानक उसका पति पवन भी उपर उछल- उछलकर, जोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा..!!

हमेशा शांत स्वभाव के पवन का ऐसा ख़ौफ़नाक स्वरूप देखकर, नौटंकी कर रही चेतना, शांत होकर, आश्चर्य और डर के मारे, अपने पति पवन की ओर टकटकी लगाकर देखने लगीं । चेतना के आसपास खड़े सारे लोग भी,चेतना को वहीं पर छोड़कर, अब पवन की ओर मुड़ गए ।

बड़े ही भक्ति भाव के साथ, पवन के माता-पिता ने, पवन से प्रश्न किया," आप कौन से  देव  हैं और हमारे बेटे पवन के शरीर में प्रवेश करने के पीछे आप का क्या प्रयोजन है?"

पवन ने आंखे फाड फाड कर, चीखते-चिल्लाते हुए, अपना सिर चारों दिशा में हिलाकर, सारा तन थरथराते हुए, जवाब दिया," मैं  पवन पुत्र हनुमंत हूँ, सामने बैठी पवित्र नारी के शरीर में जो देवी शक्ति विद्यमान है, उसे मैंने अपनी भारी भरकम गदा सँभालने को दी थीं, जो उसने कहीं खो दी है । अब मुझ से ये अपना मुँह छिपाती फिर रही है? आज तो उससे, मैं अपनी गदा  वापस लेकर ही दम लूंगा ।"

बस पवन का इतना कहना था की, पवन की छोटी बहन (चेतना की ननन्द) भागकर भीतर से एक लंबा सा लट्ठ ले आई और बोली," हे पवन पुत्र बजरंगबलीजी, आप ऐसा ग़जब मत करना । गदा की जगह, थोड़े दिन तक, इस लट्ठ से काम चला लीजिए ना प्ली..झ..!! चेतना मेरी प्यारी भाभी है, उसे आप कुछ मत करना..!!"

मगर, पवन (पुत्र हनुमानजी) ने किसी की एक न मानी और अपनी बहन के हाथ  से वह भारी लट्ठ छीन कर, चेतना की ओर दौड़े..!!

इससे पहले की चेतना  कुछ समझ पाती, पवन (पुत्र?) ने उस देवी शक्ति से  अपनी खोइ हुई गदा तुरंत वापस माँगते हुए, चेतना की पीठ पर, वही लट्ठ से उसकी भारी धुलाई करना शुरु कर दिया। अभी तक देवी शक्ति के आविर्भाव के कारण चिल्लाते हुए, थरथरा रही चेतना, अब मारे दर्द से चिल्लाते, भय से थरथराने लगी ।

पवन के हाथों मार सहन ना होने के कारण, चेतना अपना देवी शक्ति वाला ढोंग छोड़कर पवन के चरण में अपना माथा टेक कर, उससे दया की भीख माँगने लगीं । अपनी माँ के इशारे पर पवन ने ये कहकर देवी शक्ति को माफ़ किया की," आज के बाद, तुम जितनी बार मेरी प्यारी पत्नी चेतना के तन में प्रवेश करेगी, उतनी बार मैं पवन के शरीर में प्रवेश करके, तेरी लट्ठ-पूजा करके, तुमसे  मेरी गदा वापस लेकर ही तेरा पीछा छोड़ूँगा..!!"

दोस्तों, हमें लगता है..!! कपटी चेतना की नकली देवी शक्ति शायद आजतक, पवन पुत्र बजरंगबलीजी की गदा, ढूंढ न पायी है..!! इसीलिए, उस दिन के बाद, चेतना बहु  के तन में, देवी शक्ति ने ना कभी प्रवेश किया है, न तो पवन पुत्र अपनी गदा ढूंढने उस घर में वापस आयें हैं..!!

हाँ, ये बात तो है की, इस घटना के, कुछ घंटे पश्चात, घर के सभी सदस्य ने, चेतना को फोन पर, अपनी माँ को यह कहते हुए सुना था की,

" आज के बाद तेरी एक भी सलाह, मैं  माननेवाली नहीं हूँ, यहाँ बजरंगबली के हाथों की मार, तुम्हें थोडे ही खानी पड रही है? उ..ई..माँ..!!"

आधुनिक बोध - समय आने पर जो इन्सान, जैसी भाषा समझता हो, वैसी ही भाषा में उसके साथ बात करनी चाहिए ।

मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०७ -०४ -२०११.

2 comments:

dr amit jain said...

वाह , बहुत बदिया सीख दी है आपने मित्रवर

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर सीख...बहुत रोचक