खुश होना पर सपनों में न खोना
पूरे देश में अन्ना हजारे के पक्ष में जनसमर्थन की चली आंधी ने न केवल सरकार की आंखें ही चकाचौंध की बल्कि गांधीवादी तरीका अपनाते हुये जेल भरने की चेतावनी दे सरकार को नतमस्तक होने को विवश कर दिया और परिणाम देश की आमआवाम के पक्ष में रहा या यूं कहें कि लोकतंत्र की जीत हुई। देश में भ्रष्टाचार की फैलती जड़ों को काटने के लिए सरकार की ओर से मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा जन लोकपाल विधेयक को संसद के मानसून सत्र में अनुमोदन के लिये रखे जाने का ऐलान हुआ विधेयक का प्रारूप 30 जून तक तैयार कर दिये जाने की बात भी कपिल सिब्बल ने कही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने जन लोकपाल से जुड़े सरकार के आदेश की कापी स्वामी अग्निवेश को दी अग्निवेश इस कापी को लेकर जंतर-मंतर पहुंचे और उन्होने अन्ना हजारे को कापी सौंपी किरण बेदी ने अधिसूचना की प्रति अनशन स्थल पर सार्वजनिक की संयुक्त समिति के लिए समाजसेवी प्रतिनिधियों के सभी पांच सदस्यों के नाम भी तय हो गए हैं शांतिभूषण (सह अध्यक्ष), अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल और जस्टिस संतोष हेगड़े समिति में होंगे। सरकार की ओर से प्रणब मुखर्जी (अध्यक्ष), कपिल सिब्बल, वीरप्पा मोइली और सलमान खुर्शीद के नाम लगभग तय हैं। ।
कुल मिलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल विधेयक को लेकर सरकार की ओर से सभी मांगें मान लेने के बाद अन्ना हजारे ने आमरण अनशन तोड़ दिया उन्होने आंदोलन में शामिल 200 लोगों से अनशन तुड़वाने के बाद अपना उपवास तोड़ा गौरतलब तो यह है कि अन्ना ने एक छोटी बच्ची के हाथ से पानी पीकर अपना अनशन समाप्त किया तथा अनशन खत्म करने की घोषणा करते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है अगर 15 अगस्त तक सरकार ने बिल पारित नहीं किया तो वह तिरंगा लेकर लाल किले पर पहुंचेंगे और फिर से आंदोलन शुरू कर देंगे जब कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार इस एतिहासिक विधेयक को मानसून सत्र में पेश करना चाहती है उन्होने इस विधेयक पर नागिरक समाज और सरकार का हाथ मिलाना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत माना तथा संभावना जताई कि इस विधेयक को तैयार करने की प्रक्रिया रचनात्मक रूप से आगे बढ़ेगी । इधर जगह-जगह आन्दोलन से जुड़े लोगों ने खुशियाँ मनाना भी शुरु कर दिया संभव है कि एक दो दिन में अन्ना को भूल कर लोग आई पी एल के आनन्द में खो जायें । आजादी के बाद से लेकर अब तक यही तो होता आया है इस देश में तमाम संघर्षो कुर्बानियों के बाद जब आजादी मिली तो हम सोचने लगे कि अब सब कुछ हमने पा लिया अब सारे दुख दर्द मिट जायेंगे सबकुछ अपने आप ठीक हो जायेगा लेकिन हुआ क्या ? अंग्रेजों की दासता से इस देश को मुक्त हुए 63 साल हो गये इन वर्षों में हम कितने आगे बढ़ गये, यह किसी से छिपा नहीं है। हमने परमाणु बम बना लिया, हम चंद्रमा पर अपना यान भेजने में कामयाब हो गये, हम विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत बनने के दावेदार हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अब भी इस देश में लोग भूख से मर रहे हैं, किसान आत्महत्याएं कर रहे है, बेरोजगारों की विशाल फौज काम-धंधे की तलाश में तमाम दफ्तरों के खाक छान रही है, लड़कियां गर्भ में ही मारी जा रही हैं, भ्रष्टाचार तो चरम पर है ही , अपराधियों ने कानून-व्यवस्था का अपहरण कर रखा है, किसी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है ।
बेशक अच्छे इरादों के साथ आजाद भारत अपने कदमों पर आगे बढ़ चला लेकिन आज हम कहां आ गये हैं, थोड़ा रुक कर देखें तो लगता है कि हम कहीं भटक गये, रास्ता भूल गये, क्रांतिकारियों के त्याग को भुला बैठे। जाति-पांति के विभाजन को और गहरा किया गया, भ्रष्टाचार को शिष्टाचार की तरह मान्यता दे दी गयी, देश से बढ़कर स्वार्थचिंतन को वरीयता दी गयी, गरीबों की प्रवंचना का मजाक उड़ाने में गर्व का अनुभव किया गया। हमने राष्ट्रीय जीवन के लिए जरूरी मर्यादाओं, नैतिकताओं को ताक पर रख दिया। सत्तानायकों और उनके सहयोगी नौकरशाहों ने धीरे-धीरे अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए वही तौर-तरीके अपनाने शुरू कर दिये, जो कभी गोरे अपनाते थे।
कहने का तात्पर्य यह कि जब आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तो क्रांतिकारी केवल अंग्रेजों को भगाने की रणनीतियां बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में ही अपना समय नहीं लगाते थे, वे आजाद भारत हो कैसा इसके लिये भी अपनी ऊर्जा खपाते थे। चाहे वे महात्मा गांधी और उनके नरमपंथी अहिंसावादी दल के लोग रहे हों या फिर सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और अशफाक उल्ला , चंद्रशेखर जैसे गरम दल के लोग, सभी इस बात पर भी चिंतन करते रहते थे कि आजाद भारत का स्वरुप कैसा होना चाहिए। उनके सपनों में एक ऐसा देश था, जो अपने पांवों पर मजबूती से खड़ा होगा, जहां सबको प्रगति और विकास के समान अवसर होंगे, जहां सबका जीवन सुरक्षित और खुशहाल होगा, जहां ऊंच-नीच का, जाति-पांति का कोई भेदभाव नहीं होगा और हर नागरिक को भारतीय होने के नाते समान सामाजिक अधिकार होंगे, जहां आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर लोगों को सबके बराबर लाने के लिए सरकारें विशेष प्रयास करेंगी लेकिन दुर्भाग्य आज भी चारों ओर
हाय महंगाई..हाय महंगाई का शोर, चोर उचक्के सत्ता के करीब ,जिसके हाथ में लाठी उसी की भैंस , यह है देश के वर्तमान हालत की तस्वीर कहां है लोकतंत्र कैसी है आजादी, है न यह एक यक्ष प्रश्न ? कहने मात्र से लोकतंत्र नहीं आ जाता देखने में तो भारत में जनता की,जनता के लिए जनता द्वारा चुनी हुई सरकारे ही आई है किन्तु क्या लोकतंत्र भीं आया है । भैंस बेशक किसी की रही मगर लेकर वही गया जिसके हाथ में मजबूत लाठी रही है। आमजन को समर्पित ‘जागो भारत जागो’ पुस्तक में मैने काफी विस्तार से भ्रष्टाचार के कारकों का उल्लेख करते हुये खासकर युवा वर्ग का आव्हान करते हुये कहा भी है कि जनांदोलनों की आग में ही पककर लोकतंत्र और समाज में निखार आता हैें, जनांदोलन समाज की सामूहिक इच्छा, आकांक्षा, सोच और परिवर्तन की अभिव्यक्ति होते हैं जब भी कोई समाज और देश राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक रूप से ठहराव और गतिरोध का शिकार हो जाता है तो जनांदोलन ही उसे तोड़ते और नई दिशा देते हैं। आज देश एक संकल्पहीन, शक्तिहीन और स्खलित सत्ता के हाथ में दिशाहीनता की राह पर बढ़ रहा है। जो अमीर हैं, उन पर लक्ष्मी बरस रही है, जो गरीब हैं, वे शासकों के छल-प्रपंच और पाखंड की चक्की में निरंतर पिसने को अभिशप्त हैं। आम आदमी के लिए सरकारें अपनी सारी योजनाएँ बनाने के दावे करती हैं, पर आम आदमी अपनी नियति के कठिन चक्र में और उलझता चला जा रहा है। महंगाई आसमान पर है भोजन, कपड़ा और छत की न्यूनतम जरूरतें पूरी कर पाना टेढ़ी खीर हो गया है जनता की मदद करने, जीवन को आसान बनाने और संरचनागत विस्तार को अंजाम देने की जिम्मेदारियां जिन सरकारी अफसरों पर हैं, वे अपराधियों और ठेकेदारों के गुलामों की तरह काम कर रहे हैं। रिश्वत उनका जन्म सिद्ध अधिकार बन गया है उनकी सांठ-गांठ चूंकि राजनेताओं से भी है, इसलिए वे निर्भय और उन्मुक्त वनराज की तरह लूट के उत्सव का आनंद उठा रहे हैं। बेरोक-टोक जनता के धन का अपव्यय ही नहीं हो रहा है बल्कि न्यायसंगत और नियमानुकूल काम के लिए भी घूस उगाहने की असीम उत्कंठा ने सारे तंत्र को धन लोलुप पगलाये अराजक तंत्र में तबदील कर दिया है। जन लोकपाल विधेयक लाने हेतु सरकार पर दबाव बनाने और जन समर्थन को जुटाने के लिए े अन्ना हजारे ने ऐसे वक्त पर आमभारतीयों की दुखती रग को सहलाने की मुहिम छेड़ी जब कि हर भारतीय के मन में देश में कैंसर की भांति लाइलाज हो चले इस बीमारी की पीड़ा बेचैनी ब्याप्त किये है । पिछले अभियानों के विपरीत, इस बार अन्ना हजारे का यह अनशन किसी व्यक्ति विशेष के भ्रष्टाचार या किसी काण्ड विशेष के खिलाफ नहीं था बल्कि भ्रष्टाचार के पहचाने गये आरोपियों को सजा सुनिश्चित कराने के लिए जनलोकपाल विधेयक लाये जाने हेतु था। 1969 से 2008 तक लोकपाल विधेयक संसद में नौ बार पेश किया जा चुका है लेकिन अभी तक अस्तित्व में आने की बाट ही जोहता रहा यह जब जब भारतीय संसद की दहलीज पर पहुंचा तब-तब इसे संसोधन के लिए किसी न किसी कमेटी के पास भेज दिया जाता रहा और फिर जब तक कमेटी अपना निर्णय लेकर सरकार को इससे अवगत कराती तब तक सदन की कार्यवाही ही ठप हो जाती रही अगली दफा फिर यही प्रक्रिया दोहरायी जाती रही । अन्ना हजारे द्वारा भारी जनसमर्थन पा सरकार को झुकने के लिये मजबूर करना ही पूरी सफलता पा लेना नही है जनलोकपाल विधेयक तो पहली सीढ़ी है इसके बन जाने से ही भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो जायेेगा अभी तो केवल यह शुरुआत थी देश में माहौल बना है आम आदमी के अन्दर भ्रष्टाचार के प्रति विरोध,आक्रोश मुखर हुआ दिख रहा है और वह आंदोलित हो सड़कों पर उतरने का मन बना चुका है जिसकेा सही समय पर जांचा व परखा है देश के कुछ समाजसेवियों ने ,अन्ना हजारे ने तो उसका नेतृत्व किया है और वो सफल भी रहे है सरकार को झुकना पड़ा है लेकिन लड़ाई अभी लम्बी है इस विधेयक के क्रियान्वयन तक ऐसा ही जोश आंदोलनात्मक भावनायें सब कुछ बना रहना चाहिए , चिंगारी बुझे नहीं भले ही ऊपर राख दिखे पर जब भी कुरेदो तो चिंगारी ही नजर आये वरना सारा किया-धरा बेकार जायेगा। ।
9.4.11
विधेयक को अमली जामा देने हेतु अभी और लड़नी होगी लड़ाई :-लखनऊ से रिजवान चंचल
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