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5.4.11

`राशनकार्ड`- मुक्त छंद कविता ।

`राशनकार्ड`- मुक्त छंद कविता ।

http://mktvfilms.blogspot.com/2011/04/blog-post_1170.html

न जाने बाबू ने राशन कार्ड से, मेरा नाम कैसे मिटा दिया..!!

भूखा था कल तक आज भी,पापी पेट को, मैंने समझा दिया ।


देता रहा रिश्वत,निवाला  छिन, बच्चों  के मुँह से,भीखमंगों को,
कहाँ से मिल गया, हाज़मा भारी, रिश्वत देकर, दरिंदे नंगों को ।


निगल  गया  हूँ न जाने कितने ही कंकर - सड़े गेहूँ के साथ,
हज़म कर भी पाऊँगा,या लगेंगे न जाने मुझे और कितने साल?


सौ जन्म भी होंगे कम,ढूंढ पाऊँ जो खुद को, इन टूटे आईनों में,
बहते आंसु, आहें, बुझी निगाँहें, ताउम्र कटी, इन लंबी लाईनों में ।


छाया है अंधेरा,बिना तेल मिट्टी के,झोंपड़ी और मेरे  ख़्वाब में भी ,
आखिरी बार हो दर्ज,नाम राशन में, हो जाए रोशन चिता मेरी?


न जाने बाबू ने राशन कार्ड से, मेरा नाम कैसे मिटा दिया..!!
भूखा  था  कल  तक आज भी,  पापी पेट को, मैंने समझा दिया ।


मार्कण्ड दवे । दिनांक - ०५ -०४ -२०११.

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