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10.4.11

अन्ना के जन आन्दोलन से निराश लोगो का वार


अन्ना के जन आन्दोलन से निराश लोगो का वार
इलाहबाद में डॉक्टर बनवारी लाल शर्मा के नेतृत्व में एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन संचालित होता है, उस आन्दोलन का अभी क्या हश्र है मुझे पता नहीं पर सन १९९९ तक तो वह राष्ट्रीय मंचो पर रेखांकित किया जाता था. उस दौरान आन्दोलन का सक्रिय भागीदार होने के नाते मै आन्दोलन के भीतरी पेंचोखम से वाकिफ रहता था. आन्दोलन के जरिये देश के तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी जुडाव रहा करता था, जिसमे श्री सुन्दर लाल बहुगुणा, मेधा पाटेकर, पद्मश्री आर अस गहलौत जी जैसे दिग्गजों के अलावा बाबा रामदेव की भी गतिविधियों से हम लगातार वाकिफ रहते थे. बाद में आन्दोलन में हमारे वरिस्थ साथी स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी, आन्दोलन से किन्ही वैचारिक कारणों से अलग हो बाबा रामदेव से जुड़ गए. उस समय तक बाबा स्वदेशी राग की शुरुआत कर रहे थे. स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी एक अद्भुत वक्कता थे जो अपनी शोधपरक ओजस्वी वाणी से श्रोताओ में जूनून भर देते थे. इलाहबाद से चल रहे आन्दोलन के वो स्टार हुआ करते थे.
इतनी बातों के बाद अब मै मुद्दे पर आता हु, श्री अन्ना हजारे जी के देशव्यापी आन्दोलन और उसको मिली अपार सफलता से बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों को अपनी लेट लतीफी से भरी निराशा हुई है, चूकि भ्रस्ताचार इस सारे ही लोगो का अहम् मुद्दा रहा है जिसपर बाते करके इनका आन्दोलन चमका करता था. परन्तु अन्ना जी ने जो किया उसके बाद इनके हाथ से यह मुद्दा पूरी तरह से सरक गया. अब मजबूर होकर इन्हें अन्ना हजारे के पीछे चलना पद रहा है. परन्तु इस तरह के लोग मौका देखकर अपनी भड़ास और निराशा निकालने से नहीं चूक रहे, आज भी इनको देश से ज्यादा अपनी व्यक्तिगत महत्वाकान्षा बड़ी लग रही है, जिसकी परिणति में वंशवाद और आपसी फूट जैसे वक्तव्य दिए जा रहे है,
जहाँ तक सवाल बाबा रामदेव का है तो मूलतः वो योग गुरु ही है जो स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी और स्वदेसी आंदोलनों के प्रभाव में आकर स्वदेसी हो गए, और ये अच्छी बात है, परन्तु १२- १३ सालों के दौरान भी अभी तक बाबा जी के पास इस सम्बन्ध में अपने निजी तर्कों का आभाव ही रहा है, हाल ही में हुई राजीव दीक्षित जी के असामयिक निधन के बाद यह चीज़ कई बार मुखर होकर सामने आई है. ऐसा इसलिए क्यूंकि स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी स्वदेशी विचारों का चलता फिरता इन्सैक्लोपीदिया थे, स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी के बाद शायद बाबा के पास अब कोई अच्चा सलाहकार नहीं रहा इसीलिए अब बाबा इस तरह के गैर जिम्मेदाराना ढंग से बयानबाजी कर रहे है.
योग गुरु चाहें तो इस आन्दोलन को समर्थन देकर भी विश्व के सामने नजीर पेश कर सकते हैं, उनके पूरे मन से देश की जनता का साथ देने से वास्तव में भारत विश्व शकक्ति बन जायेगा, और यही तो बाबा का भी सपना है, बल्कि इससे उनकी साख को चार चाँद ही लगने वाले हैं,
अगर इस तरह के समाजसेवी और राजनीतिज्ञ वास्तव मै देशहित को सर्वोपरि मानते है तो उन्हे अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को काबू में कर एक मंच पर आना ही होगा. और जनांदोलन को कमज़ोर करने वाले वक्तव्यों को छोड़ भ्रस्ताचार के खात्मे की इस मुहीम को इसके अंतिम लक्ष्य तक पहुचाना होगा.

1 comment:

डॉ० डंडा लखनवी said...

नेता जी सुभाषचंद बोस, सरदार भगतसिंह, रामप्रसाद ’बिस्मिल’ ने कभी सोचा न होगा कि जिस आजादी को प्राप्त करने के लिए वे जीवन की कुर्बानी दे रहे हैं। वह भ्रष्टाचार के कारण इतना पतित हो जायगी। भ्रष्टाचार से परहेज़ करने का पाठ सभी मंचों खूब जाता है परन्तु यथार्थ में क्या स्थिति है वह किसी से छुपी हुई नहीं है।
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भारत में राजनैतिक सत्ता के गुलगुले जाति-धर्म के गुड़ से बनते हैं। यदि गुड़ खराब होगा तो उससे बना हर पकवान खराब होगा। गुड़ को शोधित किए बिना अच्छे परिणाम की कल्पना करना व्यर्थ है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी