मित्रों,उस समय हम सिर्फ 8-9 साल के थे और अपने ननिहाल जगन्नाथपुर में रहते
थे। यहाँ मैं यह भी बता दूँ कि भारत के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री श्री
रघुवंश प्रसाद सिंह का गाँव शाहपुर इस गाँव की चौहद्दी में आता है और दोनों
गाँव एक ही पंचायत गोरीगामा के अंतर्गत आते हैं। मैं तब अक्सर जनवितरण
प्रणाली की दुकान जाया करता था। दुकानदार थे हरपुर फटिकवारा के अशोक कुमार
सिंह। वे सिर्फ होली-दीवाली में ही तेल-चीनी बाँटते थे और कुछेक को छोड़कर
किसी भी ग्राहक को पूरा सामान नहीं देते थे। विरोध करने पर कहते कि जहाँ भी
आवेदन या शिकायत करनी हो शौक से करिए मैं तो इसी तरह से तेल-चीनी बाटूंगा।
इतना ही नहीं वे कभी-कभी वे ग्राहकों के साथ गाली-गलौज भी कर डालते थे।
बाद में जब मेरा परिवार महनार बाजार में रहने लगा तब मुझे यह देखकर और
जानकर घोर आश्चर्य हुआ कि वहाँ के जनवितरण प्रणाली दुकानदार तो हर महीने
किरासन तेल बाँटते हैं। तभी मैंने यह भी जाना कि कोटा का सामान हर महीने
आता है न कि सिर्फ पर्व-त्योहारों में। तब तक एपीएल के लिए चीनी का वितरण
भारत सरकार ने बंद कर दिया था।
मित्रों,शहरों में तब की तरह आज भी जनवितरण प्रणाली के दुकानदार प्रत्येक महीने वस्तुओं का वितरण करते हैं और गाँवों में भी आज भी हालत बिल्कुल भी नहीं बदली है। पूरे बिहार में शायद ही किसी गाँव का कोई ऐसा जनवितरण प्रणाली का दुकानदार होगा जो प्रत्येक माह वस्तुओं का वितरण करता होगा। साल में छह महीने भी वितरण हो जाए तो ग्राहक डीलर को सद्बुद्धि देने के लिए भगवान को धन्यवाद कहना नहीं भूलता। क्या विडंबना है कि जहाँ हर माह वितरण की सख्त जरूरत है वहाँ पर वितरण नहीं किया जाता और जहाँ कम आवश्यकता है वहाँ प्रत्येक माह वितरण किया जाता है।
मित्रों, इसी बीच एक समय वह भी आया जब शहरों के डीलरों की माली हालत काफी बिगड़ गई थी। महीनेभर का काम और कमीशन बहुत कम और वितरण ही प्रत्येक माह करना है। जॉब फुलटाईम का और आमदनी मामूली। उस समय सिवाय किरासन के और कुछ उनको वितरित करने के लिए दिया भी नहीं जाता था। महनार के डीलर जयकिशुन महतो गवाह हैं कि उस समय मैं अक्सर अपना तेल उनको ही दे दिया करता था। वैसे तब असर तो ग्रामीण डीलरों पर भी पड़ा था लेकिन अपेक्षाकृत काफी कम क्योंकि वे तब और भी ज्यादा महीने के किरासन की कालाबाजारी करने लगे थे। फिर आई केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार और अन्त्योदय योजना के द्वारा बीपीएल-एपीएल परिवारों तक अनाज पहुँचाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई जनवितरण प्रणाली के दुकानदारों को। फिर तो खासकर ग्रामीण डीलरों की पौ बारह ही हो गई। जब जी चाहा सामान बाँटा और जब जी चाहा बेच दिया। धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की असीम अनुकंपा से बीपीएल परिवारों की संख्या भी बढ़ती गई और अंत में स्थिति यहाँ तक आ पहुँची कि गाँवों में गरीबों से ज्यादा अमीर बीपीएल हो गए यानि गरीब हो गए। कोई-कोई तो सारा गाँव ही बीपीएल हो गया चाहे किसी की आमदनी हर माह लाखों में ही क्यों न हो। परिणाम यह हुआ कि वितरण के लिए आबंटित अनाज और चीनी-किरासन मात्रा में भी विस्फोटक वृद्धि होती गई और वृद्धि होती गई तद् नुसार ग्रामीण डीलरों की आमदनी में भी।
मित्रों,इसी बीच वर्ष 2001 ई. में बिहार में पंचायती राज लागू हो गया और इसके चलते इस भ्रष्टाचार से प्राप्त मुनाफे के कई नए हिस्सेदार ही पैदा हो गए। पहले जहाँ सिर्फ आपूर्ति निरीक्षक या बीडीओ को ही चढ़ावा चढ़ाना पड़ता था अब मुखिया,पंचायत-सचिव, पंचायत समिति सदस्य भी हिस्सेदार बनने लगे। लेकिन तेल पिलावन,गेहूँ-चावल-चीनी बेचावन का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। हमारे पैतृक गाँव जुड़ावनपुर बरारी की वयोवृद्धा डीलर और मेरी पड़ोसन रामसखी कुँवर के पुत्र सुरेश मिश्र आज भी साल में बमुश्किल 4 महीने ही वस्तुओं का वितरण करते हैं जबकि पूरे बिहार में कोटा के सामान की कालाबाजारी रोकने के लिए कूपन प्रणाली लागू कर दी गई है। प्रावधान यह है कि ग्राहक जितने महीने की सामग्री प्राप्त करेगा उतने ही कूपन डीलर को देगा लेकिन होता यह है कि डीलर एक महीने का सामान देकर ग्राहक से कई महीने का कूपन ले लेता है। शिकायत भी की जाती है,जाँच भी होती है,कभी-कभी डीलर निलंबित भी किए जाते हैं। परन्तु ऐसा बहुत-ही कम मामलों में होता है। अधिकतर मामलों में तो आपूर्ति-निरीक्षक पैसे लेकर तत्काल डीलर के पक्ष में रिपोर्ट दे देता है। जहाँ तक मुझे पता है खुद मेरे पड़ोसी डीलर रामसखी कुँवर (सुरेश मिश्र) के खिलाफ भी पिछले दिनों 2 बार जाँच हो चुकी है और ग्रामीणों के मौके पर मुखर आरोप लगाने के बावजूद उसे निलंबित तक नहीं किया गया। निलंबित डीलरों से भी कुछ रिश्वत प्राप्त करने के बाद उनकी अनुज्ञप्ति पुनः बहाल कर दी जाती है और एक बार फिर से कालाबाजारी का खुल्लमखुल्ला खेल शु्रू हो जाता है। किरासन तेल या तो सीधे पेट्रोल पंप वाले मिलावट के लिए खरीद लेते हैं या फिर किसी बिचौलिये के हाथों बेच दिया जाता है। गेहूँ पहुँच जाता है आटा-कंपनियों या स्थानीय आटा-मिल मालिकों के पास और चावल अगर घटिया हुआ तो बाँट दिया जाता है और अगर उत्तम श्रेणी का हुआ तो डीलर खुद ही अपने खाने के लिए रख लेता है या फिर किराना दुकानदार के हाथों या आटा मिल-मालिकों के हाथों (वे इसे गेहूँ के साथ पीस डालते हैं और ग्राहक परेशान रहता है कि रोटी अच्छी बन क्यों नहीं रही) बाजार-मूल्य से काफी कम कीमत पर बेच देता है और फिर भी दोनों ही पक्ष सरकारी सब्सिडी की कृपा से भारी मुनाफे में रहते हैं।
मित्रों,इन दिनों बिहार के गाँवों में कूपन को लेकर भी काफी दाँव-पेंच लगाए जा रहे हैं। कूपन-वितरण के समय कई बार मुखिया-समर्थक गुंडा-तत्त्व दूसरे ग्राहकों के कूपन लूट लेते हैं या येन केन प्रकारेण प्राप्त कर लेते हैं और फिर सालभर उसके बल पर दारू-मछली उड़ाते हैं। वास्तविक उपभोक्ता अपना कूपन वापस पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाता है और अंततः मन मारकर बैठ जाता है। ऐसा खुद मेरे परिवार के साथ भी जुड़ावनपुर बरारी में पिछले सालों में कई बार हो चुका है। इस साल भी कूपन तो मिल गया है लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा है कि वर्तमान में हमारा कोटा किस डीलर के पास है। हमारी जानकारी के बिना और बिना हमारी सम्मति के मेरा कोटा बदल कैसे गया और कैसे बदल दिया गया आश्चर्य का विषय है।
मित्रों,शहरों में तब की तरह आज भी जनवितरण प्रणाली के दुकानदार प्रत्येक महीने वस्तुओं का वितरण करते हैं और गाँवों में भी आज भी हालत बिल्कुल भी नहीं बदली है। पूरे बिहार में शायद ही किसी गाँव का कोई ऐसा जनवितरण प्रणाली का दुकानदार होगा जो प्रत्येक माह वस्तुओं का वितरण करता होगा। साल में छह महीने भी वितरण हो जाए तो ग्राहक डीलर को सद्बुद्धि देने के लिए भगवान को धन्यवाद कहना नहीं भूलता। क्या विडंबना है कि जहाँ हर माह वितरण की सख्त जरूरत है वहाँ पर वितरण नहीं किया जाता और जहाँ कम आवश्यकता है वहाँ प्रत्येक माह वितरण किया जाता है।
मित्रों, इसी बीच एक समय वह भी आया जब शहरों के डीलरों की माली हालत काफी बिगड़ गई थी। महीनेभर का काम और कमीशन बहुत कम और वितरण ही प्रत्येक माह करना है। जॉब फुलटाईम का और आमदनी मामूली। उस समय सिवाय किरासन के और कुछ उनको वितरित करने के लिए दिया भी नहीं जाता था। महनार के डीलर जयकिशुन महतो गवाह हैं कि उस समय मैं अक्सर अपना तेल उनको ही दे दिया करता था। वैसे तब असर तो ग्रामीण डीलरों पर भी पड़ा था लेकिन अपेक्षाकृत काफी कम क्योंकि वे तब और भी ज्यादा महीने के किरासन की कालाबाजारी करने लगे थे। फिर आई केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार और अन्त्योदय योजना के द्वारा बीपीएल-एपीएल परिवारों तक अनाज पहुँचाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई जनवितरण प्रणाली के दुकानदारों को। फिर तो खासकर ग्रामीण डीलरों की पौ बारह ही हो गई। जब जी चाहा सामान बाँटा और जब जी चाहा बेच दिया। धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की असीम अनुकंपा से बीपीएल परिवारों की संख्या भी बढ़ती गई और अंत में स्थिति यहाँ तक आ पहुँची कि गाँवों में गरीबों से ज्यादा अमीर बीपीएल हो गए यानि गरीब हो गए। कोई-कोई तो सारा गाँव ही बीपीएल हो गया चाहे किसी की आमदनी हर माह लाखों में ही क्यों न हो। परिणाम यह हुआ कि वितरण के लिए आबंटित अनाज और चीनी-किरासन मात्रा में भी विस्फोटक वृद्धि होती गई और वृद्धि होती गई तद् नुसार ग्रामीण डीलरों की आमदनी में भी।
मित्रों,इसी बीच वर्ष 2001 ई. में बिहार में पंचायती राज लागू हो गया और इसके चलते इस भ्रष्टाचार से प्राप्त मुनाफे के कई नए हिस्सेदार ही पैदा हो गए। पहले जहाँ सिर्फ आपूर्ति निरीक्षक या बीडीओ को ही चढ़ावा चढ़ाना पड़ता था अब मुखिया,पंचायत-सचिव, पंचायत समिति सदस्य भी हिस्सेदार बनने लगे। लेकिन तेल पिलावन,गेहूँ-चावल-चीनी बेचावन का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। हमारे पैतृक गाँव जुड़ावनपुर बरारी की वयोवृद्धा डीलर और मेरी पड़ोसन रामसखी कुँवर के पुत्र सुरेश मिश्र आज भी साल में बमुश्किल 4 महीने ही वस्तुओं का वितरण करते हैं जबकि पूरे बिहार में कोटा के सामान की कालाबाजारी रोकने के लिए कूपन प्रणाली लागू कर दी गई है। प्रावधान यह है कि ग्राहक जितने महीने की सामग्री प्राप्त करेगा उतने ही कूपन डीलर को देगा लेकिन होता यह है कि डीलर एक महीने का सामान देकर ग्राहक से कई महीने का कूपन ले लेता है। शिकायत भी की जाती है,जाँच भी होती है,कभी-कभी डीलर निलंबित भी किए जाते हैं। परन्तु ऐसा बहुत-ही कम मामलों में होता है। अधिकतर मामलों में तो आपूर्ति-निरीक्षक पैसे लेकर तत्काल डीलर के पक्ष में रिपोर्ट दे देता है। जहाँ तक मुझे पता है खुद मेरे पड़ोसी डीलर रामसखी कुँवर (सुरेश मिश्र) के खिलाफ भी पिछले दिनों 2 बार जाँच हो चुकी है और ग्रामीणों के मौके पर मुखर आरोप लगाने के बावजूद उसे निलंबित तक नहीं किया गया। निलंबित डीलरों से भी कुछ रिश्वत प्राप्त करने के बाद उनकी अनुज्ञप्ति पुनः बहाल कर दी जाती है और एक बार फिर से कालाबाजारी का खुल्लमखुल्ला खेल शु्रू हो जाता है। किरासन तेल या तो सीधे पेट्रोल पंप वाले मिलावट के लिए खरीद लेते हैं या फिर किसी बिचौलिये के हाथों बेच दिया जाता है। गेहूँ पहुँच जाता है आटा-कंपनियों या स्थानीय आटा-मिल मालिकों के पास और चावल अगर घटिया हुआ तो बाँट दिया जाता है और अगर उत्तम श्रेणी का हुआ तो डीलर खुद ही अपने खाने के लिए रख लेता है या फिर किराना दुकानदार के हाथों या आटा मिल-मालिकों के हाथों (वे इसे गेहूँ के साथ पीस डालते हैं और ग्राहक परेशान रहता है कि रोटी अच्छी बन क्यों नहीं रही) बाजार-मूल्य से काफी कम कीमत पर बेच देता है और फिर भी दोनों ही पक्ष सरकारी सब्सिडी की कृपा से भारी मुनाफे में रहते हैं।
मित्रों,इन दिनों बिहार के गाँवों में कूपन को लेकर भी काफी दाँव-पेंच लगाए जा रहे हैं। कूपन-वितरण के समय कई बार मुखिया-समर्थक गुंडा-तत्त्व दूसरे ग्राहकों के कूपन लूट लेते हैं या येन केन प्रकारेण प्राप्त कर लेते हैं और फिर सालभर उसके बल पर दारू-मछली उड़ाते हैं। वास्तविक उपभोक्ता अपना कूपन वापस पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाता है और अंततः मन मारकर बैठ जाता है। ऐसा खुद मेरे परिवार के साथ भी जुड़ावनपुर बरारी में पिछले सालों में कई बार हो चुका है। इस साल भी कूपन तो मिल गया है लेकिन यह पता नहीं चल पा रहा है कि वर्तमान में हमारा कोटा किस डीलर के पास है। हमारी जानकारी के बिना और बिना हमारी सम्मति के मेरा कोटा बदल कैसे गया और कैसे बदल दिया गया आश्चर्य का विषय है।
मित्रों,पिछले कई वर्षों से मैं सुन रहा हूँ
और सिर्फ सुन रहा हूँ कि अब जनवितरण प्रणाली के माध्यम से दी जानेवाली
सब्सिडी की राशि सीधे उपभोक्ताओं के खाते में जमा कर दी जाएगी। इस बीच
मैंने कई डीलरों को करोड़पति बनते और कई गरीबों को भूख से तड़पते भी देखा
है। बिहार और केंद्र की सरकार को चाहिए कि या तो वह जनवितरण प्रणाली की
सब्सिडी की राशि को सीधे नागरिकों के खाते में जमा करने की योजना को
युद्धस्तर पर अभियान चलाकर शीघ्रातिशीघ्र लागू करे या फिर गरीबों का सच्चा
हमदर्द और भ्रष्टाचार का वास्तविक शत्रु बनने या दिखने का झूठा नाटक करना
बंद कर दे। ऐसी भ्रष्ट वितरण प्रणाली को बनाकर-बचाकर रखने या इस तरह की
दिखाऊ सब्सिडी देते रहने का कोई मतलब नहीं है जिसके लाभ का 12 आना प्रत्येक
माह सीधे डीलरों और अन्य भ्रष्टाचारियों की जेब में पहुँच जाए। सरकार चाहे
राशन-कार्ड पर सब्सिडी वाले सामानों का वितरण कराए या कूपन के माध्यम से
उसके सामने हर बार एक ही चिर अनुत्तरित प्रश्न खड़ा होनेवाला है-हू विल
गार्ड द गार्ड?
3 comments:
जन वितरण प्रणाली, NREGA, जवाहर रोजगार योजना, मिड डे मील इनको आपने आपने यह क्यो मान लिया कि यह गरीबो या बच्चो के लिए है। यह तो वास्तव कार्यकर्ताओं के लिए है। आखिर उन्हें भी तो रोजगार चाहिये।
अजीत जी लेकिन कार्यकर्ताओं के हाथ तो शायद बहुत छोटा हिस्सा जाता है। टिपण्णी के लिए धन्यवाद्।
अजीत जी लेकिन कार्यकर्ताओं के हाथ तो शायद बहुत छोटा हिस्सा जाता है। टिपण्णी के लिए धन्यवाद्।
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