चोर बाजार
शहर की गलियों में चोर बाजार का नजारा साप्ताहिक देखा जा सकता है।चोर बाजार में
चोरों की काफी जातियां देखने को मिल जाती है।कुछ कच्चे चोर,कुछ पक्के चोर,कुछ
लुख्खे चोर,कुछ अनुभवी चोर ,कुछ उठाईगीरे तो कुछ सफेद कॉलर .....!!
चोर बाजार की खासियत यह होती है कि वहाँ जो माल होता है वह आम जनता का होता
है, चोरों को उस सामान की कीमत नहीं देनी पडती है! माल जनता का बिना कीमत के
हासिल करते हैं और उसी जनता को कीमत लेकर बेच देते हैं!!
कच्चे चोरों की ढेरियों में पुराना माल होता है मगर सफेदपोश की ढेरियों में यकीनन
बढिया माल होता है।
मेने एक सफेदपोश चोर से पूछा -चोर जी, (आजकल चोरों को भी अदब से बोलना पड़ता है
वरना अपने लम्बे हाथों से मुसीबत खड़ी कर देते हैं) आप बढिया माल सस्ते में क्यों बेच
देते हैं ?
सफेदपोश चोर बोला- हमारा मकसद चोरी करके पूरा का पूरा ह्ड्फ करना नहीं रहता है
हम चोरी करते हैं वो भी आँखों में धुल झोन्क कर ..हमे लोग चोर मानने भी संदेह करते हैं
लोग हमारी इज्जत करते हैं .जब हम उन्हें उनका माल सस्ते में लुटाते हैं तो वो हमारा
आभार मानते हैं।समाज में मान सम्मान भी मिलता है तथा लोग और-और की रट लगाये
हमारे इर्दगीर्द घूमते रहते हैं।
हमने पूछा- चोर जी , आप इन कच्चे चोरों के बारे में भी कुछ सोचते होंगे?
वो बोले - ये कच्चे चोर ही हमारी बदनामी का कारण बनते हैं।पूरी योजना से काम नहीं करते
और उजुल -फिजूल चोरियां करते रहते हैं। कच्चे चोरों की वजह से आम जनता हमे भी शक
से देखने लग जाती है।हम चाहते हैं कि ये कच्चे चोर शातिर चोरों से शिक्षण ले ताकि इज्जत
पर आँच ना आये।
हमने पूछा- क्या आपको भी इज्जत की परवाह होती है ?
वो बोले- हम क्या झुग्गी बस्तियों वाले नजर आते हैं,अरे!हम भी अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग
हैं ,बड़े घरों से ताल्लुक रखते हैं .....ये तो धंधा ही ऐसा है ,इस वास्ते करते हैं।
हमने पूछा- आदरणीय (आधुनिक समय में सम्मान देने का चलन है), पक्के चोर भी कभी
पकड़े जाते हैं ?
वो बोले - वैसे तो शातिर चोर घाघ होते हैं,आगे-पीछे की सोच कर काम करते हैं।ये तो
अहंकारवश या फिर स्टिंग ओपरेशन से फँस जाते हैं मगर चलते पुर्जे होने के कारण कभी
इन पर अपराध साबित नहीं होता है।ये हमारे प्रियपात्र होते हैं।
हमने पूछा- आप श्री श्रीमंत , पक्के और अनुभवी चोर में कोई बुनियादी फर्क बतायेंगे ?
वो बोले- क्यों नहीं, अनुभवी चोर खुद अपने हाथों से चोरी नहीं करता है सिर्फ चोरी की योजना
समझाता है और हिस्सा बटोर लेता है।पक्का चोर उस योजना पर सतर्कता से काम करता है।
हमने पूछा - श्रीमान (ये अपने को आदर्श घरानों के बताते हैं इसलिए ये इसके हकदार माने
जाते हैं), उठाईगीरे की आपकी नजर में क्या परिभाषा है?
वो बोले- ये हमारी बिरादरी के नहीं हैं , ये तो वे लोग हैं जो बिना काम के हैं,ना तो इनके घर में
कुछ माल मिलता है ना ही ये हमारी सहायता करते हैं।ये लोग तो पाँच -दस की चोरी करते भी
नहीं हिचकाते।हम जल्दी ही इनको जनता के हाथों पिटवायेंगे।
हमने पूछा- आप अपने धंधे के भविष्य को कैसा देखते हैं ?
वो बोले- इस देश में यह धंधा कभी फेल नहीं होगा क्योंकि यहाँ की जनता लापरवाह,भोली,
भुल्लकड़ है।यहाँ के लोग सज्जन हैं ,डरपोक हैं ,असंगठित हैं।इन्हें अपने झगड़ो से भी कभी
फुरसत नहीं मिलती है क्योंकि ये अलग-अलग जातियों में बँटे हैं।ये लोग जब पड़ोसी के घर
चोरी होती है तो खुश हो जाते हैं .......... हा हा हा !!
चोर महाशय को हँसता देख हम अपनी कमजोरी को भांप कर वहां से खिसक लेते हैं .........।
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