केन्द्रीय इस्पात
मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने आखिर इस बात पर तो मुहर लगा ही दी कि हमारे नेता या
मंत्री भ्रष्टाचार या घोटाले अपने कद के हिसाब से करते हैं। राज्य का कोई मंत्री
होता है तो उसका मुहं छोटा होता है...और सेंट्रल का कोई मिनिस्टर हो तो उसका मुंह
राज्य के मंत्री से बड़ा। ये सिर्फ राज्य और केन्द्र के नेताओं औऱ मंत्रियों पर ही
लागू नहीं होता बल्कि वार्ड स्तर से लेकर केन्द्र के मंत्री तक सब पर लागू होता
है। समाज में जिस तरह स्टेंडर्ड और स्टेटस का ख्याल रखा जाता है ठीक उसी तरह
राजनीति में भी भ्रष्टाचार और घोटाले भी स्टेंडर्ड और स्टेटस के हिसाब से किए जाते
हैं। केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट के मामले में खुर्शीद के सहयोगी
बेनी प्रसाद वर्मा भले ही भ्रष्टाचार और घोटालों में नेताओं के स्टेंडर्ड का
खुलासा करके अब अपनी बात से पलट गए हों...लेकिन बड़बोले बेनी प्रसाद वर्मा जी ने
जो कहा वो राजनीति के गलियारों की वो कड़वी सच्चाई है...जिसे सुनकर नेताओं को भले
ही कोई फर्क न पड़े लेकिन इन नेताओं को इस लायक बनाने वाली आम जनता का खून जरूर
खौल उठा है। पहले सलमान खर्शीद के ट्रस्ट पर लगे 71 लाख के घोटाले के आरोप को मामूली
बात बताते हुए इस पर गंभीर न होने की बात करने वाले बेनी प्रसाद वर्मा हालांकि बाद
में ये कहते दिखाई दिए कि 1 रुपए का हेरफेर भी गलत है...लेकिन पहले वे करोड़ों के
हेरफेर को ही भ्रष्टाचार या घोटाला मानते थे। बड़े शर्म की बात है कि पहले ये नेता
घोटाले करते हैं फिर कहते हैं कि 71 करोड़ का होता तो गंभीरता दिखाते। वैसे देखा
जाए तो भ्रष्टाचार औऱ घोटालों में लिप्त होने के बाद भी सीना ठोक कर खुद को पाक
साफ बताने वाले नेता और मंत्रियों की पीछे की ताकत कहीं न कहीं आम जनता ही है...जो
भ्रष्टाचार और घोटालों में लिप्त होने के बाद भी बार बार चुनाव में इन नेताओं को
वोट देकर दोबारा से खुलकर उन्हें लूटने का लायसेंस दे देती है। ये नेता भी शायद
यही समझते हैं कि चुनाव जीतने के बाद वे कम से कम पांच साल का लायसेंस लेकर
विधानसभा या संसद में पहुंचे हैं...और अब वो चाहे जो करें उन्हें देखने
वाला...रोकने वाला कोई नहीं है। शायद यही वजह है कि कई राज्यों में मुख्यमंत्री और
उनके मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में लिप्त हैं...केन्द्र में प्रधानमंत्री पर आरोप
लगते हैं...और उनके एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों पर विभिन्न घोटालों में लिप्त
होने का आरोप हैं...लेकिन इसके बाद भी वे सीना ठोक कर कहते हैं कि हम किसी भी जांच
के लिए तैयार हैं...हमने कुछ गलत नहीं किया है...ये पांच साल के लायसेंस की ताकत
नहीं तो और क्या है कि ये नेता, मंत्री अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते हैं...वे
जांच के लिए तैयार होने की बात तो करते हैं...लेकिन निडर होकर इतने विश्वास से
इसलिए कि उन्हें पता है कि जांच एजेंसियां तो सरकार के हाथ में ही हैं। ऐसे में सवाल
ये उठता है कि नेताओं को भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए जिम्मेदार ठहराने वाली जनता
अपनी ताकत को कब पहचानेगी। अगर जनता अपनी ताकत को पहचान जाए और पांच साल में एक
बार आने वाले लोकतंत्र के पर्व में भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने की ठान ले तो न
कोई सलमान खुर्शीद नेता भविष्य में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद प्रेस कांफ्रेंस
करने की हिम्मत जुटा पाएगा और न ही बेनी प्रसाद वर्मा जैसे मंत्री ये कहने की
जुर्रत कर पाएंगे कि 71 लाख का घोटाला सेंट्रल मिनिस्टर के लेवल का नहीं है...71
करोड़ होते तो हम सीरियस होते।
deepaktiwari555@gmail.com
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