भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष पूर्व न्यायमूर्ति मारकंडे काटजू संजय
दत्त की सजा माफ़ करवाने की वकालत कर रहे हैं। मगर देश के जो संघर्षशील
पत्रकार दुर्गति भोग रहे हैं उनके कल्याण की बात जब भी आती है तो उनको पता
नहीं क्या हो जाता है। मजेदार बात तो ये की श्रम मंत्रालय क्या ये बात नहीं
जनता? जरूर जनता है मगर आखिर मीडिया से कौन पंगा ले? क्या पता कोई कदम
उठाने के पहले ही छीछालेदार शुरू हो जाये। और तो और सरकार तक जहां लाचार
नजर आ रही है ऐसे में श्रम विभाग भला किस खेत की मूली है? लाख टके का सवाल
तो ये है की आखिर कब तक दूसरों का सच उजागर करने वाले पत्रकार सत्ता और
पूंजीवादियों के इस अँधेरे को झेलने पर मजबूर रहेंगे? दूसरों का हक
दिलानेवालों का हक आखिर कबतक मारा जाएगा? इसपर श्रम विभाग को शर्म आनी
चाहिए।
25.3.13
सिर्फ हक़ की बात
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