- राजकुमार साहू
आपकी ‘सद्विचार अथकथा’
प्रवचन कहने वाला दमदार हो और उनसे किसी को कोई लालसा हो। कोई स्वार्थ हो, निश्चित ही तब तो वह ‘स्व प्रवचन’ को भी आत्मकंठ से अपनाता है। ऐसा ही हाल यहां भी है। उनकी ‘अथकथा’ कभी भी शुरू हो जाती है। न ज्यादा श्रोता चाहिए, न ही मौसम और न ही अवसर। जब भी मौका मिले, दाग दो अपनी ‘सद्विचार अथकथा’ की दो-चार लाइनें। निश्चित ही यह दिमाग को स्फूर्ति देने लायक होती हैं, किन्तु तब तक, जब तक उनसे, उनका काम न हो जाए ? फिर किसे है, चेहरा दिखाने की फुर्सत...।
बुलंदी पर सितारे
साहब कुछ भी कर ले, उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। अंगद की तरह पैर जमाए बैठे ‘साहब’ को कोई डिगा नहीं सकता। चाहे जितना बड़ा आंदोलन हो जाए, लेकिन किसे फर्क पड़ता है। जब सितारे बुलंदी पर हों तो मजाल है, कोई पोस्टिंग से खिसकवा दे ? आजकल, साहब की ही चारों ओर चर्चे हैं। नेता से लेकर आम लोगों, सबकी जुबान पर उनके नाम हैं। वाह साहब, आपके क्या कहने...आपका कीर्ति पताका तो चहुंओर फैल रहा है। आपको बधाई...
...उनकी नोकझोंक की आदत
एक साहब को जैसे नोकझोंक की आदत ही पड़ गई है। वे हमेशा किसी न किसी से उलझ ही जाते हैं। अब पता नहीं, ऐसा वे जान-बूझकर करते हैं, या फिर अफसरी की नई परिभाषा लिखना चाहते हैं ? कभी नेता, कभी वकील, कभी आम लोग, सभी से उनकी तनातनी देखी जा सकती है। निश्चित ही उनमें विकास के लिए कार्य करने का माद्दा नजर आता है, इतने से ही काम नहीं बनने वाला। उसी नोकझोंक के चक्कर में किसी दिन मुश्किल में पड़ गए तो... शायद वे इन बातों की फिक्र नहीं करते। तभी, बेफिक्री उनकी आदत में शुमार हो गई है।
मत बढ़ाइए धड़कनें...
राजनीतिक गलियारे में एक नया दर्द शुरू हो गया है। ये ‘आपने’ क्या कह दिया, जिसके बाद उन ‘सबकी’ धड़कनें तेज हो गई हैं, जिनकी आस ‘यहां’ से बंधी है। वे कह रहे हैं, आपको अपनी बात पर रहना चाहिए। जब आपने तय कर लिया है कि आप ‘कहां’ से लड़ेंगे तो फिर शिगूफा छोड़ने का क्या मतलब। बिला-वजह, उन ‘सबकी’ बीपी बढ़ा दी। अब तो आपके ‘यहां’ नजर आने पर भी कयास लगाए जाएंगे। इस तरह उन ‘सबका’ का मन कह रहा होगा कि इस तरह... मत बढ़ाइए धड़कनें...।
आपकी ‘सद्विचार अथकथा’
प्रवचन कहने वाला दमदार हो और उनसे किसी को कोई लालसा हो। कोई स्वार्थ हो, निश्चित ही तब तो वह ‘स्व प्रवचन’ को भी आत्मकंठ से अपनाता है। ऐसा ही हाल यहां भी है। उनकी ‘अथकथा’ कभी भी शुरू हो जाती है। न ज्यादा श्रोता चाहिए, न ही मौसम और न ही अवसर। जब भी मौका मिले, दाग दो अपनी ‘सद्विचार अथकथा’ की दो-चार लाइनें। निश्चित ही यह दिमाग को स्फूर्ति देने लायक होती हैं, किन्तु तब तक, जब तक उनसे, उनका काम न हो जाए ? फिर किसे है, चेहरा दिखाने की फुर्सत...।
बुलंदी पर सितारे
साहब कुछ भी कर ले, उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। अंगद की तरह पैर जमाए बैठे ‘साहब’ को कोई डिगा नहीं सकता। चाहे जितना बड़ा आंदोलन हो जाए, लेकिन किसे फर्क पड़ता है। जब सितारे बुलंदी पर हों तो मजाल है, कोई पोस्टिंग से खिसकवा दे ? आजकल, साहब की ही चारों ओर चर्चे हैं। नेता से लेकर आम लोगों, सबकी जुबान पर उनके नाम हैं। वाह साहब, आपके क्या कहने...आपका कीर्ति पताका तो चहुंओर फैल रहा है। आपको बधाई...
...उनकी नोकझोंक की आदत
एक साहब को जैसे नोकझोंक की आदत ही पड़ गई है। वे हमेशा किसी न किसी से उलझ ही जाते हैं। अब पता नहीं, ऐसा वे जान-बूझकर करते हैं, या फिर अफसरी की नई परिभाषा लिखना चाहते हैं ? कभी नेता, कभी वकील, कभी आम लोग, सभी से उनकी तनातनी देखी जा सकती है। निश्चित ही उनमें विकास के लिए कार्य करने का माद्दा नजर आता है, इतने से ही काम नहीं बनने वाला। उसी नोकझोंक के चक्कर में किसी दिन मुश्किल में पड़ गए तो... शायद वे इन बातों की फिक्र नहीं करते। तभी, बेफिक्री उनकी आदत में शुमार हो गई है।
मत बढ़ाइए धड़कनें...
राजनीतिक गलियारे में एक नया दर्द शुरू हो गया है। ये ‘आपने’ क्या कह दिया, जिसके बाद उन ‘सबकी’ धड़कनें तेज हो गई हैं, जिनकी आस ‘यहां’ से बंधी है। वे कह रहे हैं, आपको अपनी बात पर रहना चाहिए। जब आपने तय कर लिया है कि आप ‘कहां’ से लड़ेंगे तो फिर शिगूफा छोड़ने का क्या मतलब। बिला-वजह, उन ‘सबकी’ बीपी बढ़ा दी। अब तो आपके ‘यहां’ नजर आने पर भी कयास लगाए जाएंगे। इस तरह उन ‘सबका’ का मन कह रहा होगा कि इस तरह... मत बढ़ाइए धड़कनें...।
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