इंडिया टुडे- नीलसन के अध्य्यन में ये बात
सामने आई है कि “कैजुअल सेक्स की बढ़ती पहुंच के बावजूद आज
लगभग 65 प्रतिशत पुरुष अपने लिए कुंवारी(वर्जिन) पत्नी की तलाश कर रहे हैं।” यानि कि वह ऐसी महिला को अपनी जीवनसंगिनी नहीं बनाना चाहते जिसने विवाह
से पहले किसी के साथ सेक्स किया हो। भारतीय युवाओं की मानसिकता को केन्द्र में
रखकर किया गया ये सर्वेक्षण अलग अलग लोगों की सोच और मानसिकता पर फिट नहीं बैठता
लिहाजा इसको लेकर विवाद गहराना लाजमी था।
इस सर्वे के बाद कुछ लोगों का ये मत है कि
वर्तमान हालात और युवाओं की बदलती सोच और मानसिकता को देखते हुए वर्जिनिटी की
अवधारणा को समाप्त कर देना चाहिए और शादी से पहले युवक- युवती के बीच शारीरिक
संबंध को नैसर्गिक संबंध की तरह देखना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ परंपराओं और नैतिक
समाज के पक्षधर लोगों का कहना है कि वर्जिनिटी की अवधारणा को समाप्त करने का अर्थ
है युवाओं को सेक्स की खुली छूट दे देना। उन्हें किसी भी प्रकार की नैतिक
जिम्मेदारियों से मुक्त कर देना। अगर हम ऐसा कुछ भी करते हैं तो यह सामाजिक और
पारिवारिक ढांचे को पूरी तरह समाप्त कर देगा। (जरूर
पढ़ें- कामसूत्र ने किया फेल..!)
वर्जिनिटी की आवधारणा को लेकर अपनी अपनी
सोच और मानसिकता के लिहाज से लोगों के अलग – अलग मत हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये
है कि जब कई पुरुष शादी से पहले सेक्स संबंधों में लिप्त रहते हैं तो उनका वर्जिन
बीवी का तलाश करना कितना सही है..? जैसे कि ये सर्वे भी कह रहा है कि 65
प्रतिशत पुरुष शादी के लिए वर्जिन बीवी की तलाश कर रहे हैं। सर्वे में भले ही ये
प्रतिशत 65 हो लेकिन वास्तव में सौ प्रतिशत लोग ऐसा ही चाहते हैं..! फिर चाहे वो पुरुष हो या फिर कोई महिला..!
लेकिन मेरा व्यक्तिगत ये मत है कि अगर कोई
पुरुष शादी से पहले सेक्स कर रहा है तो फिर उसे शादी के लिए किसी वर्जिन महिला की
तलाश करने की बात करने का कोई हक नहीं है। जाहिर है ऐसे पुरुष महिला से अपेक्षा कर
रहे हैं कि वो शादी से पहले किसी के साथ सेक्स न करे लेकिन खुद पर वे इस बात को
लागू नहीं कर रहे। वो खुद को इससे अलग कैसे कर सकते हैं..? इसका मतलब तो ये है कि ऐसे पुरुष महिला को सिर्फ घर में रखा एक सामान
समझते हैं जिसकी न तो कई सोच है...न ही कोई इच्छाएं..! (जरूर पढ़ें- अबोध
कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?)
निश्चित तौर पर शारीरिक संबंध एक व्यक्तिगत
मसला है लेकिन भारतीय समाज शादी से पूर्व खासकर महिलाओं(महिलाओं इसलिए क्योंकि
पुरुष ऐसा करते आए हैं और उन पर ऊंगली उठाने की बजाए महिलाओं को ही सॉफ्ट टारगेट
बनाया जाता है।) को शारिरिक संबंध स्थापित करने की अनुमति नहीं देता और ऐसे तमाम
उदाहरण मिल जाएंगे जहां शादी से पूर्व शारीरिक संबंध उजागर होने पर महिलाओं को
प्रताड़ित करने या समाज से बेदखल करने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया और कई बार महिला
को अपनी जान से तक हाथ धोना पड़ा है...ऐसी स्थिति में हमने महिला के परिजनों को भी
उसके साथ खड़ा होने की बजाए उसके विरोध में ही देखा है..!
जहां तक वर्जिनिटी की अवधारणा को लेकर भारतीय
समाज की बात है तो मौजूदा हालात भले ही बदल गए हों। महिला और पुरुष दोनों की सोच और
मानसिकता में बड़ा बदलाव आया हो लेकिन इसके बाद भी मूल्यों और आदर्श के पक्के भारतीय
समाज में सेक्स जैसे विषय पर जहां आज भी खुलकर बात करने में लोग संकोच करते हैं वहां
इसकी अवधारणा आज भी उतना ही स्थान रखती है जितना कि आज से पहले..! (जरूर पढ़ें- सेक्स एजुकेशन- कितनी कारगर..?)
वर्जिनिटी की अवधारणा को समाप्त करने से न
सिर्फ विवाह पूर्व सेक्स संबंधों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि ये भविष्य में शादी जैसे
बंधन में आपसी विश्वास को भी कम करने में अपनी भूमिका अदा करेगा जिसका सीधा असर
वैवाहिक जीवन पर पड़ेगा और कहीं न कहीं आपसी विश्वास से जुड़ी रहने वाली दांपत्य
जीवन की डोर भी कमजोर पड़ेगी।
ऐसे में अगर वर्जिनिटी के महत्व को समाप्त
कर दिया जाता है तो भारतीय समाज के लिए इसकी स्वीकारोक्ती आसान नहीं होगी क्योंकि
जिस देश में सर्वे के मुताबिक 65 प्रतिशत युवा शादी के लिए वर्जिन पत्नी की तलाश
करते हैं और महिलाओं के लिए वर्जिनिटी ही उनका गहना माना जाता है वो समाज कभी वर्जिनिटी
की अवधारणा को समाप्त करने को अपनी मान्यता नहीं देगा..!
deepaktiwari555@gmail.com
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