बड़ा मुश्किल होता है खुद को समझाना, साझा होना और साथ चलना। इसीलिए कि 'युग' जो कि हमारे 'चेहरे' के कल आज और कल को परिभाषित करता है। अब आहिस्ता-आहिस्ता उसके लंपट हो जाने से डर लगता है। मंजिलें तय भी होती हैं, मगर नहीं सुझता कि प्रतिफल क्या होगा। जिसे देखो वही आगे निकलने की होड़ में लंपट होने को उतावला हो रहा है। हम मानें या नहीं, मगर बहुत से लोग मानते हैं, बल्कि दावा भी करते हैं, कि खुद इस रास्ते पर नहीं गए तो तय मानों बिसरा दिए जाओगे। दो टूक कहते भी हैं कि अब भोलापन कहीं काम नहीं आता, न विचार और न ही सरोकार अब 'वजूद' रखते हैं। काम आता है, तो बस लंपट हो जाना। इसीलिए सामने वाला लंपटीकरण से ही प्रभावित है।
30.4.14
लंपट युग में आप और हम
बड़ा मुश्किल होता है खुद को समझाना, साझा होना और साथ चलना। इसीलिए कि 'युग' जो कि हमारे 'चेहरे' के कल आज और कल को परिभाषित करता है। अब आहिस्ता-आहिस्ता उसके लंपट हो जाने से डर लगता है। मंजिलें तय भी होती हैं, मगर नहीं सुझता कि प्रतिफल क्या होगा। जिसे देखो वही आगे निकलने की होड़ में लंपट होने को उतावला हो रहा है। हम मानें या नहीं, मगर बहुत से लोग मानते हैं, बल्कि दावा भी करते हैं, कि खुद इस रास्ते पर नहीं गए तो तय मानों बिसरा दिए जाओगे। दो टूक कहते भी हैं कि अब भोलापन कहीं काम नहीं आता, न विचार और न ही सरोकार अब 'वजूद' रखते हैं। काम आता है, तो बस लंपट हो जाना। इसीलिए सामने वाला लंपटीकरण से ही प्रभावित है।
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मुनाफा । (गीत)
न होने पर देख, कितना मुनाफा ही मुनाफा है..!
१.
न समझा मैं, समझे ना वो,अजूबा ही अजूबा है..!
होने पर मेरे, दर्द में, इजाफा ही इजाफा है..!
२.
क्या पाया, क्या खोया, पी कर बेबसी हूँ जिंदा..!
सँवरता, बिगड़ता यहाँ, नसीबा ही नसीबा है..!
होने पर मेरे, दर्द में, इजाफा ही इजाफा है..!
३.
हाल वफ़ा का ऐसा कि, जिंदगी ख़फ़ा हो गई..!
न होने पर समझा कि, ये वज़ीफ़ा ही वज़ीफ़ा है..!
होने पर मेरे, दर्द में, इजाफा ही इजाफा है..!
वज़ीफ़ा = उपकार,अनुदान;
४.
टूटते सितारे देख, क्या मांगु रब तुम से ?
जब होना न होना, सिर्फ लतीफ़ा ही लतीफ़ा है..!
होने पर मेरे, दर्द में, इजाफा ही इजाफा है..!
लतीफ़ा = चुटकुला, मज़ाक;
मार्कण्ड दवे ।
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कौन कहता है कि (बूढ़े) दिग्विजय सिंह इश्क नहीं करते?-ब्रज की दुनिया
आयु के मुताबित वयोवृद्ध की श्रेणी में आ चुके दिग्विजय सिंह की पोती की उम्र की लड़की के साथ तस्वीरें और सेक्स क्लिप इस समय सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। बताया जाता है कि लड़की का नाम अमृता राय है और वो राज्यसभा टीवी में एंकर है। सूत्रों से पता चला है कि यह क्लिप खुद दिग्विजय के मोबाईल से ही शूट किया गया है जिसको उनके ड्राईवर ने चुरा लिया था।
सवाल उठता है कि दूसरों पर जमकर ऊंगली उठानेवाले दिग्विजय अब अपनी पोल खुलने पर क्या प्रतिक्रिया देंगे? क्या उनका यह कृत्य नैतिक दृष्टि से उचित है? दिग्विजय को बुढ़ापे में विधुरावस्था बर्दाश्त नहीं हो रही थी तो उन्होंने उक्त लड़की से शादी क्यों नहीं कर ली? पाठक चाहें तो यहाँ क्लिक करके मामले से संबंधिक जानकारी विस्तार से प्राप्त कर सकते हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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बिहार पुलिस के वरीय अधिकारी अमिताभ कुमार दास का अमर्यादित आचरण-ब्रज की दुनिया
इतना ही नहीं इनके ड्राईवर हरेन्द्र ने अपार्टमेन्ट की सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित लिफ्ट-रूम को अपने कब्जे में कर रखा है तथा उसे अपने कमरे की तरह व्यवहार में लाते हैं। श्री दास के पास दो-दो सूमो गाड़ियाँ हैं, जिन्हें वे दूसरों के पार्किंग में लगाते हैं। अपने पार्किंग एरिया में अपने सिपाहियों को रखते हैं और दूसरों की जगह पर अपनी गाड़ी लगाते हैं। साथ ही गेस्ट के लिए निर्धारित पार्किंग एरिया को भी कब्जाए हुए हैं।
दोनों गाड़ियों से साहब के डेरे में अनजान महिलाओं का आना-जाना अक्सर लगा रहता है जिससे यहाँ का सामाजिक वातावरण दूषित हो रहा है। इसके चलते अन्य फ्लैट मालिकों को यहाँ पारिवारिक डेरा लेने से पहले हजार बार सोचना पड़ रहा है।
आते-जाते रास्ते पर इस अत्यंत छोटे से अपार्टमेन्ट में इतनी अधिक संख्या में अनावश्यक रूप से सिपाहियों के रहने के कारण भी लोगों को असहज लगता है और हालत यह है कि यहाँ अब फ्लैट भी कोई किराए पर लेने को तैयार नहीं।
एक सीनियर आईपीएस अधिकारी के इस प्रकार के अशोभनीय चरित्र और रवैये ने उनके पड़ोसियों का जीना मुहाल कर दिया है। ये अपने पद और मिली सुविधाओं का दुरूपयोग अपने पड़ोसियों को परेशान करने में कर रहे हैं। ऐसे पदाधिकारी जो सुविधाओं का दुरूपयोग करे की पोस्टिंग तो ऐसी जगह होनी चाहिए थी, जहाँ इसके दुरूपयोग की कोई गुजाईश ही न रहे। इनके इस कारनामे से बिहार पुलिस की बदनामी तो हो ही रही है, वे इस अपार्टमेन्ट के फ्लैट-धारकों के लिए स्थायी तनाव का कारण बन गए हैं और ऐसा वे केवल इस कारण कर पा रहे हैं क्योंकि वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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29.4.14
भुखमरी के कगार पर पहुँचे बिहार के विश्वविद्यालय शिक्षक-ब्रज की दुनिया
विदित हो कि गत 11 अप्रैल को राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव एचआर श्रीनिवास ने घोषणा की थी कि अगले एक सप्ताह में प्रदेश के कार्यरत और अवकाशप्राप्त विवि शिक्षकों नए वेतनमान के बकाये की पहली किस्त दे दी जाएगी परंतु जबकि अब यह महीना समाप्त होने को है किस्त का कहीं अता-पता नहीं है। पिछले दो महीने से वेतन-पेंशन नहीं मिलने से इन हजारों शिक्षकों की आर्थित हालत इतनी खराब हो चुकी है कि उनके परिवार को शाक-सब्जी जैसे छोटे-मोटे खर्चों में भी कटौती करनी पड़ रही है और परिचितों से कर्ज लेना पड़ रहा है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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मैं चाय भी बेच सकता हूँ मेरी चिंता न करें कांग्रेसी-नमो-ब्रज की दुनिया
उन्होंने कहा कि देश की सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस ने अपने वक्तव्यों से पिछले कुछ दिनों में स्पष्ट कर दिया है देश में इस समय परिवर्तन की हवा चल रही है और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आदि को लगता है कि मोदी को गालियाँ देने से वोट मिलेगा जबकि वे मानते हैं कि विकास और सुशासन के नाम पर वोट मिलेगा।
उन्होंने कहा कि देश के समक्ष सबसे बड़ा संकट यह है कि कांग्रेस अपने कुकृत्यों से शर्मिंदा नहीं है उल्टे आक्रामक है। मोदी ने कहा कि साथ में परिवार होने से ही कोई भ्रष्ट नहीं हो जाता बल्कि उनकी माँ तो आज भी 20 रुपए की चप्पल पहनती है और मुझे इस बात पर गर्व है। श्री मोदी ने कहा कि वे बदले की भावना से काम नहीं करते हैं बल्कि उनके पास तो काम करने से ही वक्त नहीं बचता। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मामले में कानून अपना काम करेगा।
श्री मोदी ने कहा कि उनका एजेंडा सुशासन है और वे सिर्फ इसी पर बात करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि गरीबों की गरीबी हमेशा के लिए समाप्त हो,बेरोजगारों को रोजगार मिले,कृषकों को फसल का सही मूल्य मिले,भ्रष्टाचार और महंगाई कम हो। उन्होंने कहा कि कश्मीर को डुबानेवाले उनके समर्थकों को डुबाने की बात कर रहे हैं। उनकी सुरक्षा पर मंडराते खतरे पर उन्होंने कहा कि मोदी रहे न रहे देश सुरक्षित रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव केंद्र में हो रहा है और विपक्ष गुजरात सरकार का विश्लेषण करने में लगे हैं जबकि बात केंद्र की सरकार के कामकाज की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वे मजदूर हैं और मजदूरों की तरह ही मेहनत करते हैं। वे अन्य नेताओं की तरह आरामतलब नहीं हैं। उनको आराम नहीं काम चाहिए।
मोदी ने कहा कि उनको तब घोर आश्चर्य हुआ था जब आधे भारत को अंधेरे में डुबा देनेवाले व्यक्ति को प्रोन्नति देकर भारत का गृह मंत्री बना दिया गया। क्या इस तरह से अच्छा शासन लाया जा सकता है? उन्होंने भारत के चुनावों में विदेश नीति की चर्चा नहीं होने पर चिेता जताई। उन्होंने कहा कि नैन्सी पावेल की छुट्टी हो जाने के कारणों को अमेरिका की सरकार ही बता सकती है।
उन्होंने कहा कि उनको यह पता है कि गुजरात मॉडेल पूरे देश में लागू नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि वे जनता की नब्ज समझते हैं। उनको पता है कि देश की जनता को पिछले 12 सालों में क्या-क्या भुगतना पड़ा है। उनको यह भी पता है कि पूरे देश को एक ही डंडे से नहीं हाँका जा सकता। उन्होंने कहा कि विकास और सुशासन उनकी प्राथमिकता है वे यह-वह कर देने के दावे नहीं करते। उन्होंने कहा कि कुशासन,महंगाई,बेरोजगारी सहित सारी समस्याएँ कांग्रेस से जुड़ी हुई हैं इसलिए कांग्रेस को समाप्त करना पड़ेगा तभी ये समस्याएँ भी समाप्त होंगी। उन्होंने कहा कि 16 मई को निराशा का अंत हो जाएगा और सवा सौ करोड़ भारतीयों के मन में आशा का संचार हो जाएगा। साक्षात्कार के अंत में उन्होंने 18 से 28 आयुवर्ग के नौजवानों से अपील की कि जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण क्षण में वोट डालकर उनको अपने भविष्य का फैसला खुद ही करना चाहिए।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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27.4.14
कविता: लम्हों में जीती रही....
कविता: लम्हों में जीती रही....: पत्तों के हिलने मे तेरे आने की आहट सुनूँ तुम मेरे शहर मे आये तुमसे मिलने का ख्वाब बुनूं || शाम ढलने लगी चिरागों से ब...
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नई क़लम- उभरते हस्ताक्षर
लेकिन साहित्य के लगाओ को कभी भी कम न कर पाया या यूँ कहें न हुआ. होना भी नहीं चाहिए था.. सुकून जो मिलता था, मिलता है.... तो उस सुकून को हम दोनों ने नई कलम- उभरते हस्ताक्षर ब्लॉग बनाकर ये सिलसिला चलता रहा ...आप सब लेखक मित्रों की रचनाएं समय- समय पे मिलती रहीं... और हम उसे नई कलम के मंच पे शाया करते रहे.
आज फिर साहित्य के पहियों की पटरियों पे नई कलम -उभरते हस्ताक्षर दौड़ने को तैयार है.. आपके प्यार की दरकार हमेशा की तरह रहेगी...
नए कलेवर और नयी साज -सज्जा के के साथ फिर से नई क़लम -उभरते हस्ताक्षर आपके हाथों में होगी.. 4 मई 2014 को हम फिर से अपने मेहमानों के बीच उस पौधे में पानी दे रहे हैं...
इसी सिलसिले में में आपसे लेख, व्यंग्य, नज़्म, ग़ज़ल, कवितायें, कहानी , उपन्यास ...कोई साहित्यिक शोध पत्र आपसे भेजने को कह रहा हूँ.. आप सब से उम्मीद है आप हमारा सहयोग करेंगे....वैसे ही जैसे आप इसके ई - संस्करण में करते रहे...
आप हमें अपनी रचनाएँ आज रात तक इस मेल पते पर भेजने का कष्ट करें -
nai.qalam@gmail.com
आपका
शाहिद 'अजनबी' और दीपक 'मशाल'
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26.4.14
क्या दाउद को पकड़ने की योजना बना चुके हैं मोदी?-ब्रज की दुनिया
परंतु जिस तरह से कल भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपने साक्षात्कार में अचानक दाउद का जिक्र छेड़ दिया उसने एक बार फिर से इस सवाल को चर्चे में ला दिया है कि क्या दाउद इब्राहिम को सचमुच पकड़ा जा सकता है? मोदी ऐसे ही हवा में कोई बात नहीं करते। उनके पास हर समस्या का हल है,हल के लिए योजनाएँ हैं। तो क्या नरेंद्र मोदी ने पहले से ही दाउद को पकड़ने की योजना पर काम शुरू कर दिया है? आज वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने मोदी से उनकी योजना पूछी है। तो क्या केंद्र सरकार को सचमुच यह पता नहीं है कि दाउद को कैसे पकड़ा जा सकता है? क्या वर्तमान समय में भारतीय सेना और खुफिया एजेंसी में सचमुच ऐसे लोग नहीं हैं जो यह बता सकें?
मोदी के व्यक्तित्व के बारे में भारत के लोग जहाँ तक जानते हैं उससे यह भरोसा तो जनगणमन में जरूर उत्पन्न हो रहा है कि मोदी भारत के इस सबसे बड़े दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई जरूर करेंगे। मोदी जो ठान लेते हैं उसे करके छोड़ते हैं चाहे इसके लिए कितना भी नुकसान क्यों न उठाना पड़े? जाहिर है कि जैसा कि मोदी ने साक्षात्कार में कहा भी है कि अमेरिका ने बिन लादेन को मारने से पहले संवाददाता सम्मेलन नहीं किया था,वे केंद्र सरकार के मंत्रियों के लाख छेड़ने पर भी अपनी योजना के बारे में तब तक सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं बोलेंगे जब तक कि काम पूरा नहीं हो जाता। वैसे मोदी के पास चुनावों के बाद जनरल वीके सिंह,पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह,मेजर राज्यवर्द्धन राठौर जैसे कई योजनाकार उपलब्ध होंगे जो उनकी इस योजना को पूरा करने में सक्षम होंगे।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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Short Story-7. `पाप-पुण्य ।`
अत्यंत दुःखी मन और 'भारी पैर' के साथ, कॉलेज की बॉय्स हॉस्टल की सीढ़ियां उतर कर, मनीषा `भारी पैर, हल्का करने`, हॉस्टल के सामने स्थित अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ गई..!
छह माह पश्चात्, कॉलेज की बॉय्स हॉस्टेल के उसी कमरे में, नयी गर्लफ्रेन्ड पायल के सामने देवांग, वही घीसा-पीटा डायलोग, बोल रहा था, "मैं किसी पाप-पुण्य में नहीं मानता..! Please forgive me and..!"
" एक मिनट...!" अचानक ज़ोर से चीखती हुई, मनीषा कमरे में दाखिल हुई," देवांग, आज के बाद, तुम ऐसा पाप दोहरा भी नहीं सकोगे ? जिस पायल को तुम आज छोड़ रहे हो, वह मेरी फ्रेन्ड है और..अ..अ..अ..!" मनीषा ने एक लंबी सांस भरी और आक्रोशित मन से फिर चिल्लाई,
" तेरे जैसे किसी मनचले की वजह से पिछले एक साल से,
मनीषा के चीखने की आवाज़ सुन कर इकट्ठा हुए, बॉय्स हॉस्टल के सारे लड़के अवाक् थे और शायद हॉस्टल की (पुण्यशाली?) सीढ़ीयां भी....!
मार्कण्ड दवे । दिनांकः २६-०४-२०१४.
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कौन सांप्रदायिक है क्या हमें अब महेश भट्ट बताएंगे?-ब्रज की दुनिया
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत की जनता को कौन-कौन से दल सांप्रदायिक हैं जानने के लिए महेश भट्ट जैसे परम भोगवादी की सहायता लेनी पड़ेगी? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही महेश भट्ट हैं जो कभी अपनी बेटी से भी कम उम्र की शिल्पा शेट्टी की बहन शमिता शेट्टी के साथ कुर्सी पर सरेआम बैठे हुए पाए गए थे और उस समय शमिता ने पैंटी भी नहीं पहन रखी थी। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ये वही महेश भट्ट हैं जो कह चुके हैं कि अगर पूजा भट्ट उनकी बेटी नहीं होती तो वे उसी से शादी कर लेते। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह वही महेश भट्ट है जिसने सन्नी लियोन जैसी पोर्न स्टार को बॉलीवुड में हिरोईन बना दिया और लगातार कागज के चंद टुकड़ों के लालच में युवाओं को अपनी फिल्मों में सेक्स परोसता रहा है। गांधी ने तो कहा था कि पाप से नफरत करो पापी से नहीं फिर मोदी ने तो अपने विचारों में पर्याप्त परिमार्जन कर लिया है फिर मोदी से नफरत क्यों? क्या महेश भट्ट या कांग्रेस सच्चे मायनों में गांधीवादी हैं? क्या गांधी ने गोहत्या रोकने और पूर्ण शराबबंदी का समर्थन नहीं किया था?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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24.4.14
वतन परस्ती । (गीत ।)
फिरकापरस्त, सिखाते हमें वतनपरस्ती..!
क्या ये लोकतंत्र है, या कोई जबरदस्ती?
फिरकापरस्त = क़ौमवादी; वतनपरस्ती = देशभक्ति ।
अन्तरा-१.
पेट नोच कर, प्यास छीन कर, सांस लूट कर..!
साँप - नेवले ने कर ली है क्या, अमन-दोस्ती?
फिरकापरस्त, सिखाते हमें वतनपरस्ती..!
अन्तरा-२.
न मरते, ना मारते हमें, सियासत वाले..!
मानो, वहशी बिल्ले करते, मूषक मस्ती?
फिरकापरस्त, सिखाते हमें वतनपरस्ती..!
वहशी = जंगली; मूषक= चूहा ।
अन्तरा-३.
जाग ज़रा, `मत`कर ऐसा, दिखा उनको अब..!
पूरब-पच्छिम, उत्तर-दकन, ना लचर बस्ती..!
फिरकापरस्त, सिखाते हमें वतनपरस्ती..!
दकन=दक्षिण; लचर बस्ती = कमज़ोर जनता ।
अन्तरा-४.
लोकतंत्र में, वोट-मंत्र ताक़त न सस्ती ।
चल, मिटा देते हैं, ऐसे-वैसों की हस्ती..!
फिरकापरस्त, सिखाते हमें वतनपरस्ती..!
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23.4.14
क्या आपने देखा मोदी का अब तक का सबसे कठिन ईंटरव्यू?-ब्रज की दुनिया
मित्रों,ईंटरव्यू को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी अपराधी को गिरफ्तार करके थाने में लाया गया है और तीन-तीन पुलिसवाले घेरकर उससे थर्ड डिग्री पूछताछ कर रहे हैं। ईंटरव्यू की शुरुआत में नमो ने बताया कि उनको वोट क्यों मिलना चाहिए? फिर उसके बाद विवादित प्रश्नों की झड़ी लगा दी गई। उदाहरण के लिए क्या आपकी सरकार को अंबानी और अडाणी चलाएंगे,क्या आपकी सरकार अमीरों की सरकार होगी, क्या मुसलमानों को आपसे डरना चाहिए, क्या होगा राम मंदिर और समान नागरिक संहिता पर आपका रूख,क्या पिंक रिव्योलूशन से किसी खास समुदाय की रोजी-रोटी नहीं जुड़ी हुई है,,क्या आप खुद अपना ही मुखौटा हैं,क्या आपके विरोधियों को पाक चला जाना चाहिए,क्या आपने गुजरात दंगों के समय राजधर्म निभाया था,क्या जीजाजी और शहजादा कहना व्यक्तिगत आरोपों की श्रेणी में नहीं आते,क्या आपको बुरा नहीं लगा जब लोगों ने आपकी वैवाहिक स्थिति पर कटाक्ष किया,क्या आपकी सरकार आने पर वाड्रा पर भी मुकदमा चलाया जाएगा,क्या आपने सचमुच गिलानी के पास अपना कोई दूत भेजा था,क्या आपने अडाणी को 1 रुपए में जमीन दी,पाकिस्तान के प्रति आपकी नीति क्या होगी,क्या आप प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका जाएंगे,क्या आपकी सरकार पर आरएसएस का प्रभाव होगा,क्या आप इसी तेज-तर्रारी से सरकार चलाएंगे,क्या अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति में बदलाव लाकर उसे बहुसंख्यकों के अनुकूल बना लेना चाहिए,शारदा चिंट फंड घोटाले सहित इस तरह के सभी घोटालों में आपका क्या रूख होगा,क्या आप प. बंगाल को तोड़ना चाहते हैं,शरद पवार और ममता बनर्जी के प्रति आपके रूख में धीरे-धीरे सख्ती क्यों आती गई,क्या आपने कभी दोनों ठाकरे बंधुओं में समझौता करवाने की कोशिश की,क्या आपके मोहन भागवत के साथ व्यक्तिगत संबंध रहे हैं,क्या आपको अपने बेलूर मठ के बीते हुए दिन याद आते हैं,आपकी दिनचर्या क्या है आदि।
मित्रों,लेकिन प्रश्न जितने ही कठित उत्तर उतने ही सरल। नमो ने स्पष्ट किया कि अंबानी और अडाणी को टॉफी के दाम में भूमि भाजपा सरकारों ने नहीं बल्कि स्वयं कांग्रेस की सरकारों ने दी। भाजपा की सरकार ने तो निश्चित नीति बनाकर दलाल संस्कृति का समूल अंत ही कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने गुजरात की कृषि में सुधार किया और 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दी। गुजरात में खेतों का भी स्वायल स्मार्ट कार्ड होता है। उन्होंने पशुओं की दंत-चिकित्सा और शल्य चिकित्सा का इंतजाम करवाया। वाईव्रेंट गुजरात के साथ ही कुसुम महोत्सव का भी आयोजन करवाया। कृषि उत्पादन से लेकर लघु उद्योगों द्वारा उत्पादन में उनके समय में गुजरात में कई गुना की बढ़ोतरी हुई। मोदी ने दावा कि उन्होंने अपना राजधर्म हमेशा निभाया है चाहे वो शांतिकाल हो या अशांति का समय। लोगों की मौत से उनको दुःख भी हुआ और उन्होंने हमेशा इसकी जिम्मेदारी ली और हमेशा इस प्रयास में लगे रहे कि दोबारा वह सब नहीं देखना पड़े। जीजाजी और शहजादा शब्दों को उन्होंने व्यंग्य और विनोद का हिस्सा बताचा। शरद पवार और सुष्मा स्वराज का उदाहरण देते हुए उन्होंने व्यंग्य और विनोद को आवश्यक बताया। अल्पसंख्यकों की संस्कृति में संशोधन को उन्होंने बहुत बड़ा मुद्दा बताया और चैनल से अनुरोध किया कि चुनावों के बाद इस पर विस्तृत चर्चा करवाई जाए और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी उसमें बुलाया जाए। विदेश नीति के बारे में उन्होंने कहा कि वे न तो किसी को आँखें दिखाएंगे और न ही किसी के आगे आँखें झुकाएंगे बल्कि सबसे आँखों में आँखे डालकर बात करेंगे। सरकार पर आरएसएस के प्रभाव के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सिर्फ संविधान को ध्यान में रखकर शासन करेगी। उनकी सरकार के लिए एक ही भक्ति होगी देशभक्ति,एक ही धर्म होगा नेशन फर्स्ट,एक ही धर्मग्रंथ होगा भारत का संविधान। काले धन पर उन्होंने कहा कि कालेधन को वापस लाना ही चाहिए। कई टैक्स हेवेन देशों ने अपनी नीतियों में बदलाव किया है जिसका भारत को लाभ उठाना चाहिए। पिंक रिव्योलूशन को उन्होंने आर्थिक समस्या बताया और किसी समुदाय विशेष से इसको जोड़ने का विरोध करते हुए कहा कि उनके कई जैन मित्र भी इस धंधे में हैं। उन्होंने कहा कि सारे मुद्दों और मोर्चों पर वर्तमान सरकार की असफलता से जनता का तंत्र में विश्वास कमजोर हुआ है जिसको फिर से पैदा करना पड़ेगा। वाड्रा पर मुकदमा चलाने के बारे में उन्होंने कहा कि कानून के समक्ष सभी बराबर हैं। अगर प्रधानमंत्री रहते हुए वे कोई भ्रष्टाचार करते हैं तो उनको भी जेल भेजना चाहिए। राजनैतिक विरोधियों पर धीरे-धीरे रूख को कड़ा करने को अपनी रणनीति बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर वे शुरू से ही सख्त रवैया अख्तियार कर लेते तो जनता उसे स्वीकार नहीं करती। श्री मोदी ने मीडिया में घुस आए कुछ न्यूज ट्रेडर्स की कटु आलोचना करते हुए कहा कि मीडिया को चंद लोगों द्वारा मिशन से गिराकर व्यापार बना दिया गया है। अंत में नरेंद्र मोदी ने बताया कि वे सिर्फ साढ़े तीन घंटे सोते हैं। खाने और सोने के समय के अतिरिक्त उनकी कोई निश्चित दिनचर्या नहीं होती। वे दिन-रात सिर्फ जनकार्य में ही लगे होते हैं। कुछ दिनों पहले गुजरात में आए तूफान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चुनावी दौरे से ही उन्होंने फोन करके स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने कहा कि उनके लिए भारत सिर्फ एक भूगोल नहीं है बल्कि माँ से भी बढ़कर है। उन्होंने बार-बार दावा कि क्योंकि राजनीति में रसायन शास्त्र की तरह 1 और 1 ग्यारह होता है इसलिए उनको सरकार बनाने के लिए एनडीए से बाहर किसी का भी सहयोग आवश्यक नहीं होगा लेकिन सरकार को चलाने के लिए सवा सौ करोड़ भारतीयों की मदद चाहिए होगी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार उसकी भी होगी जो उसे वोट देंगे,उसकी भी होगी जो विरोध में वोट देंगे और उसकी भी होगी जो वोट डालने जाएंगे ही नहीं। श्री मोदी ने काम करने की कोई समय-सीमा नहीं बताई और कहा कि वे 5 सालों में काम करने की योजना लेकर चल रहे हैं। मोहन भागवत से अपने संबंधों का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि वे तो भागवत जी के पिताजी के ही शिष्य रहे हैं।
मित्रों,एक साथ राज,ज्ञान और कर्मयोग से युक्त नर केसरी नरेंद्र मोदी का यह सबसे कठिन ईंटरव्यू अगर आप नहीं देख पाए हों तो एक बार फिर से आपके पास मौका है। थोड़ी देर बाद ही आज सुबह 8 एबीपी न्यूज इस ईंटरव्यू को दोबारा प्रसारित करने जा रहा है। इस लिंक पर भी जाकर देख सकते हैं-http://abpnews.abplive.in/ind/2014/04/22/article299075.ece/%E0%A4%8F%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9C-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%AA
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22.4.14
जागते रहो!
और लगी खैरात बंटने जागते रहो!
पहन के कुर्ता पैजामा, सर पे टोपी कीमती,
आ रहे हैं वोट ठगने, जागते रहे!!
लोकतंत्र के हवन में लाजमी आहूतियां,
क्यों किसी के मंत्र जपने जागते रहो!
यदि समर है ये तो तुम भी पांडवों के पुत्र हो,
देना मत यह हाथ कटने जागते रहो!
वोट की कीमत प्रजा जब जान जाए देश में,
फिर लगेंगे गांव नपने, जागते रहो!
यदि परिश्रम हाथ में अपने लिखा है, छोडि़ए,
दो इन्हें ऐड़ी रगडऩे जागते रहो!
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21.4.14
Micro Short story - 5. `विष पान ।`
" शिव, ये मि. शर्मा हैं, दो लाख रुपये का आज हिसाब नहीं मिल रहा है, वह गलती से तुमने इन्हें दे दिया था, अब कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होगी..!"
शर्मा जी बोले, "मुझे याद है..! लॉकर से निकाले हुए लाखों के ज़ेवर, जब मैं यहीं भूल गया था, तब आप ने ही तो सारे ज़ेवर सही-सलामत मुझे वापस किए थे..!"
शिव ने आँसू की बूँदो के साथ, मैनेजर साहब के टेबल पर, ज़हर की शीशी और स्यूसाईड नोट भी रख दिया, जिसे पढ़ कर, उपस्थित सभी लोग रो पड़े..!
मार्कण्ड दवे । दिनांकः २१-०४-२०१४.
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20.4.14
पगथिया: वोट के अधिकार से लोकतंत्र बचा लो तुम
पगथिया: वोट के अधिकार से लोकतंत्र बचा लो तुम:
इतिहास करवट बदलना चाहता है,वर्षों की गुलामी के कारण हम भारतवासी अधिकार को भूल गए थे और आजादी के बा...
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19.4.14
हिल गये ना झूठे सेक्युलर !
राष्ट्रवाद के सामने छद्म धर्मनिरपेक्षता बुरी तरह हिल गयी ना। पूरा देश एक लहर में
है और वो लहर है राष्ट्रवाद की। इस देश को लम्बे इन्तजार के बाद एक ऐसा नेता
मिला है जो छाती ठोक कर कहता है मैं हर धर्म का आदर करता हूँ पर मुझे अपने
हिंदुत्व पर गर्व है,संस्कृति पर गर्व है ,भारत भूमि पर गर्व है।
इस देश से काँग्रेस का सफाया क्यों हो रहा है ?अध नंगे फकीर की काँग्रेस भारत से
विलीन क्यों हो गयी ? कारण साफ है इस सत्ता ने भारतीयों को दौ समुदाय में बँटने
दिया -अल्प संख्यक और बहु संख्यक इतना ही नहीं बहु संख्यक को बाँटने के लिए
दलित,पिछड़ा ,अति पिछड़ा वर्ग को जाति के आधार खण्डित किया इसका गलत
असर देश के विकास पर पड़ा क्योंकि सभी वर्ग आपस में भ्रमित हो गए। इसका
नुकसान देश और देशवासियों को हुआ और फायदा … ?
इस प्रपंच से देशवासी विकास से दूर होते गये उनके हिस्से में आई बेकारी,भ्रष्टाचार,
धार्मिक कटटरता,अशिक्षा,भुखमरी और गरीबी। देशवासी स्वराज्य और स्वतंत्रता
के स्वरूप को तरसते रह गये और लालफीताशाही,अफसरशाही तथा नेताशाही के
नागपाश में बंध गए। लोकतंत्र के नाम पर वर्षो तक लूट चली, गरीब और गरीब
होता रहा और राज नेताओ की दया नीतियों पर मृत्यु की प्रतीक्षा करता जीता रहा।
किसे मालुम था कि एक साधारण परिवार से निकला बच्चा देश की पीड़ा को दूर
करने के लिए चट्टान बन कर छद्म धर्मनिरपेक्षता के तूफान को इस तरह रोक देगा !!
आज देश का हर वर्ग बेहाल है,सबको रोजी रोटी चाहिये। पेट की भुख धार्मिक
कटटरता के भाषण से दूर नहीं होती है ,तुष्टिकरण की नीति से दूर नही होती है।
नागरिकों के अधिकारों में जातिगत पक्षपात से सामाजिक भाईचारा ना तो पैदा
होने वाला था और ना हुआ,जातिगत पक्षपात से भाईचारा दूर होता गया और आपस
में मन मुटाव और द्वेष पैदा हुआ।
वर्षो तक अँधेरे में जीने के बाद देशवासी जागरूक होने लगे। सम्मान से रोजी रोटी
कमाकर भाईचारे का सपना देखने लगे। कौन सच्चा और कौन धुर्त है कि पहचान
करने लगे। राष्ट्रवाद के लिए,अमन चैन के लिए,सर्व धर्म समभाव के लिए ,रोजी -
रोटी की सुव्यवस्था के लिए देश ने अब तक के सेक्युलर आकाओ को धराशायी
करके उस नेता का हाथ थाम लिया जो दुसरो के सम्मान की रक्षा का वचन दे रहा
है और खुद के सम्मान की रक्षा में भी समर्थ है। अब परिवर्तन निश्चित है जिसे
रोकने का माद्दा स्वार्थी नेताओं में नहीं है ,यह परिवर्तन नए युग की नींव रखेगा
हम भारतवासी अपने मताधिकार का प्रयोग करके इस दीप की लौ को स्थिर
रखने में सहयोग दे ,यही समय का तकाजा है और छद्म लोगों को तमाचा।
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18.4.14
Micro short story-6 `अनपढ़-गँवार । `
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16.4.14
क्या एशिया का सबसे बड़ा बूचड़खाना कपिल सिब्बल की पत्नी का नहीं है?-ब्रज की दुनिया
विदित हो कि सबसे पहले यह गोवधशाला तब चर्चा में आया था जब इसका नाम अरिहंत एक्सपोर्ट प्राइवेट रखे जाने के खिलाफ जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज ने ऐलान किया था कि वो २ अक्टूबर.2013 को अहमदाबाद मे लाखों लोगों की बड़ी रैली निकालेंगे और कांग्रेस को वोट न देने की अपील करेंगे। बाद में 16-17 सितंबर को दैनिक भास्कर में एक समाचार प्रकाशित हुआ जिसमें केप इंडिया के संयोजक डॉ.संदीप जैन ने एक बयान जारी कर केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की पत्नी प्रोमिला सिब्बल द्वारा खोले गए बूचडख़ाने का नाम बदलने को जैन समाज की जीत बताया। डॉ.जैन ने बताया कि यह कारखाना साहिबाबाद में है और इसकी कंपनी अरिहंत एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड का कार्यालय दिल्ली में है। उन्होंने बताया कि 24 जैन तीर्थंकरों को अरिहंत के नाम से जाना जाता है, इसलिए यह शब्द जैन धर्म में पूजनीय है। मांस के व्यापार वाली कम्पनी के नाम से अरिहंत शब्द जुडऩे से जैन समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही थी।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 0 comments
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15.4.14
मेरे कर्जदार हैं सांसद-पत्रकार हरिवंश-ब्रज की दुनिया
मित्रों,तभी मेरे एक अभिन्न मित्र मीता ने बताया कि इस समय मुजफ्फरपुर में प्रभात खबर की यूनिट खुलने जा रही है। सीधे प्रधान संपादक हरिवंश जी बात करिए,काम हो जाएगा। मैं बात की तो मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वे मुझे जानते हैं और मेरी ब्रज की दुनिया के प्रशंसक भी हैं। उन्होंने मुझे राँची मिलने के लिए बुलाया। रातभर ट्रेन की सीट पर बैठे जागते-सोते हम सावन की रिमझिम फुहारों का आनंद लेते सहरसा-हटिया ट्रेन से राँची पहुँचे। रूकना मेरे मित्र धर्मेन्द्र कुमार सिंह के यहाँ रातु रोड में था। फ्रेश होकर हम प्रभात खबर कार्यालय के लिए रवाना हुए। वहाँ हमारा टेस्ट लिया गया जो मुझे बुरा भी लगा। फिर एचआर विभाग में पूछा गया कि कितना वेतन चाहिए। मैंने बताया दस हजार कम-से-कम। एचआर प्रधान ने कहा कि पिछले एक साल से आपकी आमदनी शून्य रुपया है तो फिर आपको हम इतना क्यों दें? मैंने छूटते ही कहा आपकी मर्जी। फिलहाल तो मुझे भूख लगी हुई है कोई होटल बताईए। उन्होंने झटपट प्रभात खबर के कैंटिन में फोन किया और कहा कि एक व्यक्ति को भेज रहा हूँ खाना खिला देना। मैंने टोंका जनाब जरा गौर से देखिए हम एक नहीं दो हैं और दूसरे ने भी सुबह से कुछ खाया नहीं है। उन्होंने कृपापूर्वक फिर से फोन किया। जब हम खाना खाने के बाद हरिवंश जी से मिलने गए तो उन्होंने कहा कि कुछ दिन बाद हम फोन करके आपको सूचना देंगे। रास्ते में धर्मेन्द्र ने बताया कि प्रभात खबर कई बार नौकरी के लिए ईच्छुक उम्मीदवारों को यात्रा-भत्ता भी देता है। मैंने कहा नहीं दिया तो नहीं दिया हमें तो नौकरी चाहिए।
मित्रों,कई दिनों तक जब फोन नहीं आया तो मैंने फिर से हरिवंशजी को फोन मिलाया तब उन्होंने एक नंबर दिया और बात करने को कहा। वह नंबर किसी मोहन सिंह का था जिनको अखबार लांच करने के लिए मुजफ्फरपुर भेजा गया था। नौकरी शुरू हुई। तब प्रभात खबर कार्यालय जूरन छपरा,रोड नं.1 मुजफ्फरपुर में था। कार्यालय क्या था कबाड़खाना था। कार्यालय में पर्याप्त संख्या में कुर्सियाँ तक नहीं थीं। लोग कंप्यूटर पाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते रहते। वहाँ कई पुराने मित्र भी कार्यरत मिले और कई नए मित्र बने भी। हम घंटों फर्श पर पालती मारकर कंप्यूटर और कुर्सी के खाली होने का इंतजार करते। तब अखबार की छपाई शुरू नहीं हुई थी,प्रशिक्षण चल रहा था।
मित्रों,कार्यालय में न तो शुद्ध पेयजल था और न ही शौचालय में बल्ब। गंदा पानी पीने के चलते मेरा स्वास्थ्य लगातार गिरने लगा। फिर भी मैंने दो महीनों तक जमकर काम किया। इस बीच अगस्त या सितंबर में अखबार की छपाई भी शुरू हो गई। पहले दिन मुजफ्फरपुर पर विशेष परिशिष्ट प्रकाशित हुआ जो पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ मेरे द्वारा संपादित था।
मित्रों,तक कार्यलय में न तो किसी की हाजिरी ही बनती थी और न ही किसी को वेतन ही मिलता था। वहाँ के एचआर हेड से बात करता तो वो कहते कि आपके कागजात राँची भेज दिए गए हैं अभी वहाँ से कोई उत्तर नहीं आया है। सहकर्मियों ने बताया कि उनके कागजात के तो 6 महीने से उत्तर नहीं आए हैं। अब मुझे नौकरी करते दो महीने से ज्यादा हो चुके थे मगर वेतन का कहीं अता-पता नहीं था। नौकरी थी भी और नहीं भी। न कहीँ कोई नियुक्ति-पत्र और न ही कोई अन्य प्रूफ। कार्यालय का गंदा पानी पीने से मेरी तबियत भी बिगड़ती चली गई और अंत में मैंने निराशा और खींज में नौकरी छोड़ दी।
मित्रों,मुझे लगा कि पटना,हिन्दुस्तान की तरह प्रभात खबर भी खुद ही पहल करके मेरे दो महीने का वेतन दे देगा। इससे पहले जब मैंने पटना,हिन्दुस्तान की नौकरी छोड़ी थी तब हिन्दुस्तानवालों ने कई महीने बाद फोन करके बुलाकर मुझे मेरा बकाया दे दिया था। मगर यहाँ तो देखते-देखते तीन साल हो गए। न उन्होंने सुध ली न मैंने मांगे। फिर अगस्त,2013 में मुझे पैसों की सख्त जरुरत आन पड़ी। मैंने हरिवंशजी को फोन मिलाया तो पहली बार में तो वे चेन्नई में थे। दो-तीन दिन फिर से फोन मिलाया और अपनी व्यथा सुनाई। मैंने उनको याद दिलाया कि मैंने दो महीने तक मुजफ्फरपुर,प्रभात खबर में काम किया था जिसका मुझे पैसा नहीं मिला और उल्टे घर से ही नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने मुझे पहचान तो लिया मगर इस मामले में कुछ भी कर सकने में अपनी असमर्थता जताई। तब मैंने कहा कि मुझे पटना,प्रभात खबर में नौकरी ही दे दीजिए। उन्होंने सीट खाली नहीं होने की मजबूरी जताते हुए फोन काट दिया।
मित्रों,मैं हतप्रभ था कि हरिवंश जी भी ऐसा कर सकते हैं? महान समाजवादी,चिंतक,पत्रकार हरिवंश एक मजदूर का पैसा रख लेंगे? मगर यही सच था और आज भी यही सच है। वे आज भी मेरे कर्जदार हैं। दरअसल ये लोग छद्म समाजवादी हैं। चिथड़ा ओढ़कर ये लोग न सिर्फ मलाई चाभते हैं बल्कि अपने ही संस्थान के श्रमिकों का खून भी पीते हैं। ये लोग मुक्तिबोध के शब्दों में रक्तपायी वर्ग से नाभिनालबद्ध,नपुंसक भोग-शिरा-जालों में उलझे लोग हैं। फिलहाल वे जदयू की तरफ से राज्य सभा सदस्य हैं अपनी सत्ता की चाटुकारिता कर सकने की अद्धुत क्षमता के बल पर। उम्मीद करता हूँ कि वे संसद में मजदूरों के पक्ष में लंबे-लंबे विद्वतापूर्ण भाषण देंगे और समाजवादी होने के अपने कर्त्त्वयों की इतिश्री कर लेंगे। धरातल पर पहले की तरह ही उनके अपने संस्थान में श्रमिकों का शोषण अनवरत जारी रहेगा,फिल्मी महाजन की तरह उनके पैसे पचाते रहेंगे और परिणामस्वरूप प्राप्त अधिशेष के बल पर उनकी चल-अचल सम्पत्ति में अभूतपूर्व अभिवृद्धि होती रहेगी। अंत में उनकी लंबी आयु की कामना करता हूँ जिससे आनेवाले समय में देश में समाजवाद दिन दूनी और रात चौगुनी प्रगति कर सके।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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14.4.14
आँसू । (गीत)
आँसूओं से गहरी, पहचान कर ले ।
( समंदर = दुनिया )
चप्पे - चप्पे, इक दरबान धर दे ।
जा, समंदर को लहूलुहान कर दे ।
गुमशुदा = लापता ।
दम है तो, उस पर निशान कर ले ।
जा, समंदर को लहूलुहान कर दे ।
अन्तरा-३.
हँसी, न खुशी, ग़मज़दा है सांसें..!
बच्चों के नाम, मुस्कान कर दे ।
जा, समंदर को लहूलुहान कर दे ।
ग़मज़दा = दुःखी ।
अन्तरा-४.
न तेरा, न मेरा, समंदर झमेला..!
खुद को जहाँ का, मेहमान कर ले ।
जा, समंदर को लहूलुहान कर दे ।
झमेला = भीड़-भाड़ ।
मार्कण्ड दवे । दिनांकः १४-०४-२०१४.
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