28.4.16
युवा गायक कृष्णानन्द की मौत मुझे अपराधबोध दे गई!
मोबाइल के कुछ चित्र कई बार अपने लैपटॉप में सहेज लेता हूं और ढूंढते हुए भाई कृष्णानन्द के ये चित्र मिल गए जो पिछले आठ फरवरी के हैं। यह गोमती नगर के मण्डी परिषद का आयोजन था जिसमें प्रख्यात गजल गायक गुलाम अली के साथ वह न सिर्फ बाजू में मंच पर बैठे थे बल्कि हारमोनियम पर संगत भी कर रहे थे। गुलाम अली एक गुणी गायक के साथ ही अच्छे हारमोनियम वादक भी हैं।
अपने युवा गायक शिष्य को साथ बैठाना और उसे हारमोनियम संगत की अनुमति देना कृष्णानन्द के लिए किसी प्रमाण पत्र से कम न था लेकिन यह कृष्णानन्द के लिए पहला मौका नहीं था। गुलाम अली जब भी लखनऊ और आसपास आए मैंने उन्हें उनके साथ स्टेज पर ही पाया था। पांच-छह साल पहले जब कृष्णानन्द ने मुझे बताया था कि वह गुलाम अली से गजलों की शिक्षा ले रहे हैं तो मेरे चेहरे पर अचानक व्यंग्यात्मक मुस्कान तैर गई थी। एक युवा गायक के लिए क्या यह संभव था कि वह एक इतने लोकप्रिय और बड़े गायक, वह भी जो पाकिस्तान में रहते हों, के करीब आकर उनसे संगीत सीख सके? लेकिन कुछ ही समय में कृष्णानन्द ने मेरी इस शंका को झुठला दिया था।
गुलाम अली के साथ मंचों पर बैठने से बड़ा इसका कोई प्रमाण नहीं हो सकता था। तबले से अचानक गायन की ओर आकर भी उन्होंने पहले मुझे आशंकित किया था। मैंने कुछ कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग के दौरान उनकी कुछ आलोचना भी की थी लेकिन एक बार जब मैं उनके कार्यक्रम से बीच में जाने लगा था तो उन्होंने मंच से ही कार्यक्रम रोक कर आवाज लगाई थी और काफी देर तक समारोह में मेरी प्रशंसा की थी। कई बार अपने पेशे का अभिमान हमें किसी के बहुत करीब आने से रोक देता है, हम उसका मूल्यांकन उसकी उपलब्धियों से करते हैं लेकिन इस बीच के उसके संघर्ष को नहीं जान पाते, उसके भीतर छिपे इंसान को नहीं पहचान पाते हैं।
कल जब उनके गुरु गुलशन भारती उनके समर्पण और संगीत के प्रति श्रद्धा के बारे में बता रहे थे तो मुझे लगा कि संगीत के प्रति समर्पित इस युवा के करीब मुझे आना चाहिए था, एक मित्र के रूप मे। आठ फरवरी के उस कार्यक्रम में मैंने उनके चेहरे पर कालिमा देखी थी लेकिन मुझे कत्तई यह पता नहीं था उनके गुर्दे खराब हो चुके हैं। महज 42 की उम्र में उनके निधन के बाद आज उनके इस संभवतः आखिरी कार्यक्रम के अपने मोबाइल से लिए चित्रों को साझा करते हुए उन्हें सही ढंग से न पहचान पाने के अपराधबोध से खुद को मुक्त नहीं कर पा रहा हूं !
(आलोक पराड़कर की फेसबुक वाल से)
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