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13.8.16

कुकरमुत्ते की तरह निकलने वाले समाचार पत्रों पर कब लगेगा अंकुश

आजादी के पहले जो समाचार पत्र निकलते थे और उनके सम्पादकगण राष्ट्रभक्ति की भावना को लेकर समर्पित थे ये पत्रकारों का अध्ययन और लेखनी लोगों में जोश भर देती थी, अनेको नाम गिनवाये जा सकते हैं जिसमें गनेशशंकर विद्यार्थी, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल सहित अनेक नाम है।  

सिवनी। देश को आजादी मिलने के बाद भी कुछ दिनों तक यह सिलसिला जारी रहा लेकिन समय ने करवट लिया और पत्रकारिता ने सेवा के स्थान पर उद्योग का स्वरूप ले लिया और पत्रकारिता की आड़ में कोई खाई की फैक्ट्री डाल कर व्यवसाय करने लगे तो कोई भूमाफिया बनकर अपनी कलम को उदरपूर्ति का साधन बना बैठे।


यही स्थिति सिवनी जिले की भी बनी हुई है। सिवनी में ई स्थानीय तथा 30 अन्य जिलों से आने वाले व 100 समाचार पत्र साप्ताहिक पंजीयन जनसंपर्क विभाग में है इनमें से कुछ साप्ताहिक समाचार पत्रों को छोड़ दे तो त्यौहार पर्वो में प्रकाशित होने वालों की लंबी सूची है जो सिर्फ विज्ञापन विशेषांक के रूप में प्रकाशित होकर अधिकारी एवं अन्य लोगों पर धौंस जमाते है। इतना ही नहीं अनेक दैनिक समाचार पत्र के स्थानीय सम्पादकों को तो ठीक से लिखना भी नहीं आता इनके लिये काला अक्षर भैंस बराबर की कहावत चरितार्थ होती है मगर नेताओं से जी हुजूरी करके अपना नाम भोपाल और दिल्ली से जुड़वाकर हजारों रूपये के विज्ञापन प्रकाशित कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। क्या पत्रकारिता का यही अर्थ है पत्रकार समाज का दर्पण होता है, लोग इसे लोकतंत्र की चोथी आंख भी कहते हैं मगर दुर्भाग्य है कि चौथी आंख के नाम पर काला धब्बा इन्हें कहे तो अतिश्ंयोक्ति नहीं होगी।

यहां पत्रकारिता के साथ साथ संगठनों का जिक्र करना भी लाजमी होगा कि जिले में अनेक संगठन है जो कार्यकर रहे है मगर ये ऐसे शेषनाग हो गये हैं जो हटना ही नहीं चाहते पांच में दस वर्षो के संगठन के अध्यक्ष एवं अन्य पदों पर बैठने वाले पत्रकारों को अपने विवेक का परिचय देते हुए स्वयं हटना चाहिए क्योंकि तालाब में ज्यादा दिन तक भरा पानी गंदा हो जाता है और बदबू मारने लगता है। संगठन में ज्यादा दिनों तक रहने वाले सदस्यों के प्रति भी आक्रोश उत्पन्न होने लगता है, इसलिए स्वविवेक का परिचय देना चाहिए।  अगर संगठन को निष्पक्ष और निर्भिक बनाना है तो खरपतवार की तरह या कुकरमुत्ते की तरह त्यौहारो में निकलने वाले समाचार पत्रों का विरोध होना चाहिए अन्यथा ये समाज और पत्रकारिता जगत में प्रदूर्षण फैलाने से बाज नहीं आयेंगे और इसका फायदा राजनैतिक दलों से जुड़े लोग उठाते रहेंगे।

Akhilesh Dubey
rashtrachandika@rediffmail.com

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