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8.10.16

अब समय मांगने का नहीं, छीनने का है

चरण सिंह राजपूत

सड़कों पर भी लड़ें मान-सम्मान व अधिकार की लड़ाई : 

हर काम को प्रभावित करने वाली राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि अब इस पर बड़े स्तर पर मंथन की जरूरत है। समाजसेवा के रूप में जाने जाने वाली यह राजनीति अब धंधा बनकर रह गयी है। समाजसेवा के जितने भी पेशे थे वे अब राजनीतिक धंधे के रूप में तब्दील होते जा रहे हैं। मरीजों का इलाज करने वाले डाक्टर, जरूरतमंदां को इंसाफ दिलाने वाले वकील, बच्चों का भविष्य बनाने वाले शिक्षक  अपना मूल पेशा छोड़कर राजनीति करने में मशगूल हैं। ऐसा भी नहीं कि ये लोग समाजसेवा की राजनीति कर रहे हों। इनका राजनीति में आने का मकसद इसे ढाल के रूप में इस्तेमाल करना है। राजनीति में आने का मकसद या तो पैसा कमाने या फिर गलत ढंग से कमाए गए पैसे को ठिकाने लगाना मात्र रह गया है। डाक्टर राजनीति करेगा तो स्वभाविक है कि अस्पताल में जनसेवा नहीं राजनीति होगी।


अस्पताल में राजनीति होगी तो मरीजों का क्या होगा बताने की जरूरत नहीं । अस्पतालों में मानव अंगों की तस्करी की बातें निकल कर आना डाक्टरों की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षा ही है। वकीलों का हाल तो और बुरा है। विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े ऐसे कितने वकील हैं जो चोर-उचक्कों व देश के गद्दारों के केस लड़ते हैं और समाजसेवा की बात करते हैं।

अब समय आ गया है कि जो व्यक्ति अपने मूल पेशे से गद्दारी करता है उसे खदेड़ दिया जाए। देश को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों के केस लड़ने वाले राजनीतिक वकीलों को सबक सिखाया जाए।  आज जरूरत है कि लोग सड़कों पर उतरकर अपना संदेश देश व समाज के दुश्मन उन धंधेबाजों को दे दें जो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। जनता को सड़कों पर उतरकर आगाज करना होगा कि यदि राजनीति करनी है तो जनहित में करनी होगी। राजनीति का स्तर कितना गिर गया है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप के अलावा कुछ करने को तैयार नहीं। हर राजनीतिक दल का हर कदम वोटबैंक को ध्यान में रखकर उठ रहा है।

किसान की हालत क्या है, मजदूर की किस हाल में है। देश में कितने बेरोजागर युवा घूम रहे हैं। कितना अपराध बढ़ रहा है। कितना भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। यह समझने को तैयार नहीं। किसी भी तरह से अपना वोटबैंक बढ़ा लिया जाए। जब तक राजनीति साफ-सुथरी छवि के लोगों के हाथों में नहीं आएगी तब तक देश का भला नहीं हो सकता। 10 फीसद लोग 90 फीसद लोगों पर राज कर रहे हैं। लोकतंत्र में यदि कम संख्या के लोग बड़ी संख्या पर राज करें तो मैं गलती बड़ी संख्या वाले लोगों की मानता हूं। जब तक लोग निजी स्वार्थ भूलकर व्यवस्था को कब्जाने वाले इन धंधेबाज लोगों के खिलाफ खड़े नहीं होंगे तब स्थिति ऐसे ही बनी रहेगी। विधवा विलाप करने से कुछ नहीं होगा। 100 साल की जलालत की जिंदगी से बेहतर है कि स्वाभिमान के साथ 10 दिन जी लिया जाए। तरह-तरह की बीमारी से ग्रस्त आदमी को यह नहीं पता कि शाम को साने के बाद वह सुबह को उठेगा या नहीं वह व्यक्ति मरने से डर रहा है। शोषण सह रहा है, उत्पीड़न सह रहा है। अपने बच्चों को भी घुट-घुट कर मरने को मजबूर कर रहा है।

अब समय मांगने का नहीं, छीनने का है। अमीरों ने जो पैसा अपनी तिजोरियों में भर कर रखा है वह पैसा उस गरीब का है जो रात-दिन न केवल खून पसीना बहा रहा है बल्कि हाड़ भी कंपा रहा है। खेत में काम कौन कर रहा है ? बड़ी-बड़ी बिल्डिंग कौन बना रहा है ? फैक्टरियों में प्रोडक्शन कौन बढ़ा रहा है ? अमीरों की सुरक्षा कौन कर रहा है ? यह सब देखना होगा। देश की स्थिति यह है कि एक आदमी के पास रखने के लिए पैसा नहीं और एक आदमी भूखा मर रहा है। एक आदमी फुटपाथ पर सो रहा है एक आदमी के पास कई-कई घर हैं। केंद्र सरकार ने भले ही काले धन पर शिकंजा कसा हो पर देश में अभी भी इतना काला धन है कि देश की गरीब ही मिट जाएगी।

भले ही देश में बड़ी-बड़ी बातें हो रही है पर आज भी देश में वही पुराने भ्रष्ट व्यवस्था कायम है। लगभग सभी तंत्रों पर भ्रष्ट होने के आरोप लग रहे हैं। चाहे वह विधायिका हो, कार्यपालिका हो, न्यायपालिका हो या फिर मीडिया। हां इन तंत्रों में कुछ लोग ऐसे हैं जो इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं पर इन्हें गंदे लोग कुछ करने नहीं देते। देश को यदि संवारना है तो दलाली नामक कोढ़ को खत्म करना होगा। जात-पात, धर्मवाद, आरक्षण जैसे शब्द ही देश से मिटाने हांगे। गंदी होती जा रही राजनीति होनहार बच्चों की प्रतिभा को चाट रही है। गंदे, अयोग्य लोग, योग्य-स्वाभिमानी, ईमानदार लोगों को अपमानित कर रहे हैं और हम बैठे देख रहे हंै। चाटुकारिता, दलाली, समझौता कर जो पैसा हम अपने बच्चों के लिए कमा रहे हैं। क्या इस पैसे से हम अपने बच्चों का भविष्य संवार लेंगे ? इस पैसे में कितने असहाय, गरीब व मजबूर लोगों की हाय लगी होगी वह कहां जाएगी, यह सोचने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि अपने मान-सम्मान व अधिकार की लड़ाई सड़कों पर लड़ी जाए।

चरण सिंह राजपूत
वरिष्ठ पत्रकार
charansraj12@gmail.com

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