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11.1.17

सिर्फ BSF ही नहीं अगर कोई NCC भी जॉइन करता है तब भी उसे बुरे हालात से जूझना पड़ता है

BSF 29 बटालियन महासुरक्षा बल का जवान "तेज बहादुर यादव"... यह नाम इन दिनों काफी चर्चा में है। वजह है इनका वायरल हुआ वीडियो जिसे उन्होंने बर्फीले क्षेत्र में वर्दी और बंदूक के साथ पहरा देते समय बनाया है। वीडियो में तेज ने अपनी ड्यूटी की कठनाई बताते हुये सिपाहियों को मिल रहे खाने के स्तर को आड़े हाथों लिया है। बहरहाल जो कभी उस माहौल में नहीं रहे उनको बता दूं कि हकीकत बनाये गये वीडियो से इतर नहीं है। और सिर्फ BSF ही नहीं इस देश में अगर कोई NCC भी जॉइन करता है तब भी उसे ऐसे ही हालात से जूझना पड़ता है। अब सवाल यह कि जो सैनिक सीमा की सुरक्षा कर रहा है उसे इतना और ऐसे स्तर का खाना/सुविधा तो मिले की वह दुश्मन पर भारी पड़ सके। लेकिन हमारे सिस्टम में होता उल्टा है। सच बयां करने वाले के खिलाफ सबूत जुटाकर उसे दागदार साबित करके बात दबाने का भरकस प्रयास किया जाता है।


पत्रकार बनने से पहले कॉलेज के दिनों में मैं खुद NCC कैडेट रहा हूं। यानी मुझे आर्मी वालों के रहन सहन का खासा तजुर्बा है। हमको बताया जाता था कि सरकार 1 कैडेट पर करीब 2 लाख का खर्चा करती है। पहले 1 कैडेट 3 साल में C सर्टिफिकेट का एग्जाम देता था जिसे बाद में 2 साल कर दिया गया। इसके अलावा NCC कैम्प जो 12 दिन के होते थे उनको भी 10 दिन के कर दिए गया। लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे सर्टिफिकेट पाने के दौरान 2 लाख की सुविधा मिली थी।

NCC कैम्प में जो मेरा तजुर्बा रहा वो आपको बताता हूं। मैंने पेशाब मिला पानी तक पिया है। सिर्फ मैंने ही नहीं मेरे साथ सैंकड़ों केडेट्स ने भी। क्योंकि वहां भी सुविधाओं के नाम पर होता कुछ नहीं है। जो जानकार कैडेट होते थे वो सिलेक्टेड जगह के कैम्प में ही जाते थे जहां कम से कम असुविधा हो। हम जब कैम्प के जाते हैं तो किसी सीनियर कैडेट के अंडर में जाते हैं। वो सीनियर तो ऑफिसरों के साथ उनके लिए बना खाना खाता था और हमको गिनकर, सिमित मात्रा में खाना/नाश्ता मिलता था। और खाने का स्तर बिलकुल वही जो वीडियो में तेज बहादुर ने बताया है। जली रोटी, दाल में पानी और हल्दी ज्यादा दाल कम। सब्जी में आलू ही दिखते थे। और यही खाकर सुबह 5 बजे से शाम 6 तक ड्रिल करते थे।

अब आते हैं खर्चों पर। कैडेट को सन्डे के सन्डे ड्रिल पर जाना होता था। जहां कई घण्टों की कड़ी मेहनत के बाद 2 केले, 1 समोसा और 1 मीठा मिलता था। यानी अधिक से अधिक 20 या 30 रुपये का नाश्ता। इस लिहाज से सालभर में 1000 या 1500 का खर्चा। इसके अलावा सर्टिफिकेट की परीक्षा देने कम से कम 1 कैम्प में शामिल होना जरुरी होता था तो वो 10-12 दिन ट्रेनिंग से ज्यादा टॉर्चर के होते थे। NCC जॉइन करने के बाद हमको वर्दी, जूते मिलते थे जिसे की अंत में लौटना पड़ता था। इसके अलावा रैंक, टैग, व्हिसल, बेल्ट इत्यादि खुद बाजार से खरीदना होता था।

जब हमको 10 दिन के कैम्प में इस स्तर का ट्रीटमेंट टॉर्चर लगता था। तो जो सिपाही सालों बॉर्डर पर बिताता है उसे कैसा लगता होगा। शायद इसलिये मैं तेज बहादुर द्वारा उठाये इस कदम को समझ सकता हूं। क्योंकि कम से कम मैं तो इस सच्चाई से रुबरु हुआ हूं। और अब तो वक्त की भी यही दरकार है कि हर सच्चाई सीधे जनता की अदालत में रखी जाये। क्योंकि लोकतंत्र से सशक्त तंत्र दूजा कोई नहीं।

आशीष चौकसे
पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक और ब्लॉगर

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