दैनिक जागरण ख़बरों में हिंदी को लेकर खुद ही भ्रमित है. हिंदी के शब्दों और इसकी शुद्धता को लेकर पाठक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत? हर शनिवार को इस अख़बार में सप्तरंग परिशिष्ठ प्रकाशित होता है. इसमें एक कॉलम होता है "हिंदी हैं हम". इसे आचार्य पंडित पृथ्वी नाथ पांडेय लिखते हैं. वह खुद को भाषाविद बताते हैं. पहले डॉ पृथ्वी नाथ पांडेय नाम से लिखते थे...अब डॉ के बजाय आचार्य पंडित ....लिखने लगे हैं.
इनके कॉलम में हिंदी के कुछ शब्दों का व्याकरण समेत उपयोग के औचित्य का उल्लेख होता है. कुछ शब्द तो ऐसे होते हैं जो अख़बारों ही नहीं, साहित्यकारों की रचनाओं में समान रूप से उपयोग किये जाते हैं. इन शब्दों को लेकर न कभी भ्रम रहा और न ही औचित्य-अनौचित्य को लेकर सवाल उठाया गया.आचार्य पांडेय इन शब्दों को गलत बताकर सही क्या है, उसपर विस्तार से प्रकाश डालते हैं. पढ़ने वाले इस बात को लेकर आश्चर्य में पड़ते हैं कि तो क्या उच्च कोटि के साहित्यकार और देश का नंबर एक कहा जाने वाला अख़बार अब तक गलत शब्दों का प्रयोग करता रहा है. वर्तनी हो या वाक्य विन्यास, पांडेय जागरण में ही प्रकाशित तथ्यों का एक तरह से खंडन करते हैं. अजीब बात है एक तरफ तो जागरण खुद पारम्परिक हिंदी का उपयोग करता रहा है और दूसरी तरफ एक भाषाविद का कॉलम हर सप्ताह छापकर अपनी ही हिंदी को गलत घोषित करा रहा है. ऐसा क्या कभी समाचार पत्र के इतिहास में हुआ है?
यह सिर्फ एक उदाहरण देना पर्याप्त है.
2 अक्टूबर 20 के अंक में पांडेय लिखतें हैं........."ऐसे में श्रोता निर्णय नहीं कर पाते कि गेंद को "अच्छा" कहें अथवा "अच्छी"? "गेंद फेंकी" कहें अथवा "फेंका"? हिंदी भाषा में आप जब भी लिखें और बोलें तब "अच्छा गेंद" और "गेंद फेंका" ही लिखें और बोलें. उदाहरण के लिए "यह मेरा गेंद" है.
इसी तरह वह कलम को पुल्लिंग मानकर "अच्छा कलम" लिखने क़ी सलाह देते हैं नाकि "अच्छी कलम".
यहाँ पांडेय ने गेंद को पुल्लिंग के रूप में उपयोग करने क़ी सलाह दी है. लेकिन 5 दिसंबर 2020 के अंक में पेज 15 पर "कन्कशन से घूमा ऑस्ट्रेलिया का सर, जडेजा सीरीज से बाहर"....हैडिंग से छपी खबर पर गौर करें.....वाक्य देखें ..."बयान जारी कर कहा कि जडेजा के बायीं ओर सिर में गेंद लगी थी. .......यहाँ गेंद को स्त्रीलिंग के रूप में लिखा गया है. अर्थात पारम्परिक हिंदी जो चली आ रही है ..वही रिपोर्टर ने उपयोग किया है. यह कोई नयी बात नहीं. सभी ऐसा ही लिखते हैं.
अब सवाल यह उठता है कि पाठकों को जागरण क्यों भ्रम में डाल रहा है?
जागरण का सप्तरंग पेज देख रहे प्रभारी को या तो इस तरह क़ी भ्रामक सीख देने वाले पेंडेय के कॉलम को बंद कर देना चाहिए या फिर प्रधान संपादक को सभी सम्पादकीय कर्मियों को यह आदेश देना चाहिए कि पांडेय जो शब्द या वाक्य विन्यास बताएं, उसी का अनुसरण किया जाये. यदि बाद वाली स्थिति होती है तो जागरण के बड़े-बड़े संपादक हिंदी के मामले में फेल!
रवीन्द्र कुशवाहा
साहित्यकार व शिक्षक
2 comments:
सत्य बात
रवीन्द्र कुशवाहा जी!
आपकी टिप्पणी अभी-अभी देखी है। आपकी नितान्त पूर्वग्रह (यहाँ 'पूर्वाग्रह' अशुद्ध है।) मनोवृत्ति का परिचय आपकी लेखन-शैली बहुविध कराती है। आपको जब यही नहीं बोध कि 'गेंद' और 'क़लम' पुंल्लिंग का शब्द है वा स्त्रीलिंग का तब मेरे किसी भी लेखन पर टिप्पणी करने से पहले तथ्यों का संज्ञान कर लें। आप भाषा और व्याकरण के संदर्भ मे अभी 'लल्लू' हैं। जिस व्यक्ति को वाक्य गठन करने का बोध न हो, वह 'भाषा की पाठशाला' पर अँगुली उठाकर अपनी गर्हित और कुत्सित मानसिकता का परिचय देता है। आप वाक्य-विन्यास के मुआमले मे अभी 'कल के लौण्डे' हैं। अभी खाइए-पीजिए, फिर 'आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय' के लेखन पर अँगुली उठाकर अपनी 'भँड़ास' निकालिएगा।
स्तम्भ को आरम्भ करने से पूर्व 'दैनिक जागरण' सम्पादन-प्रकोष्ठ की ओर से सुस्पष्ट कर दिया गया था कि 'भाषा की पाठशाला' मे जिन शुद्ध शब्दों का व्यवहार किया जायेगा, उससे 'दैनिक जागरण' मे प्रयुक्त शब्द प्रभावित नहीं होंगे; क्योंकि वह आम जन का भाषा-प्रयोग करता है। वैसे मेरे अनुरोध पर आगे चलकर, दैनिक जागरण ने शताधिक शुद्ध शब्दों का प्रयोगकर, अपना स्तर अन्य समाचारपत्रों की तुलना मे अत्युत्तम किया है।
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय 'डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय' लिखें वा कुछ भी लिखें, आपका 'नितम्बप्रान्त' उछल क्यों रहा है?
आपका यह लेखन अशुद्धियों से भरा हुआ है। जब कभी प्रयागराज आना हो तब मिलिएगा, फिर आपकी 'भँड़ास' अच्छी तरह से उतर आयेगी ('उतर जायेगा' अशुद्ध है।)।
◆ आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज।
सम्पर्क-सूत्र― ९९१९०२३८७०
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