स्वामी रामदेव कहें या बाबा रामदेव, पर है तो वह एक कारोबारी आदमी ही और एक कारोबारी भला हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को टर-टर कैसे कह सकता है? जबकि ठीक एक दिन पहले वे उन्हीं के पत्र के जवाब में खुद पत्र लिखकर डॉक्टर्स के लिए कहे गए अपने अपशब्दों के लिए माफी मांग चुका होता है। है ना अजीब!
अब समझ नहीं आ रहा कि खुद को स्वामी रामदेव, लोगों द्वारा बाबा रामदेव कहलाने वाले योगगुरु लाला रामदेव का अपना मानसिक संतुलन बिगड़ गया है या एक गहरी साजिश के तहत यह देश की जनता का मानसिक संतुलन बिगाड़ना चाहता है? भोली- भाली जनता को मटके में डालकर मधाणी से मथोगे तो होगा क्या? दूध का दही बना लिया, दही को मथ लिया तो मक्खन निकल आया, लेकिन जनता को किस कारण मथा जा रहा है? समझ से बाहर है। जनता का हाल इस समय, मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं वाला हो चुका है। पतंजलि के आउटलेट पर जाएं या अस्पताल या झोलाछाप डॉक्टर से ही काम चला लिया जाए ? सरकारी हस्पताल में जाएंगे तो सुविधाओं के अभाव में हो सकता है, जान से ही हाथ धोना पड़े। प्राइवेट में जाएं तो हो सकता है जान बचाने के चक्कर में जायदाद से हाथ धोना पड़े। पतंजलि जाएं तो दोनों को बड़े वाला खतरा।
"नीम हकीम खतरा - ए- जान" बहुत पुरानी कहावत है। सो जान का खतरा तो यहां है ही, साथ में महंगी दवा के चलते निरंतर लुटते चले जाने का आभास भी हो सकता है यानी जान और जायदाद दोनों को खतरा। इधर लाला रामदेव जी अपनी जुबान रूपी कमान से तान-तान कर तीर चला रहे हैं, करोना वैक्सीन के मामले में लोगों को भटकाने के आरोप में मुकदमा दर्ज करने के सवाल पर यहां तक कह गए कि उन पर मुकदमा दर्ज करने की औकात किसी के बाप की भी नहीं है। तब से लोग सोच में पड़े हैं कि क्या यह लालाजी मोदी जी, हर्षवर्धन जी, सरकार, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में बैठे जजों के बाप से भी ऊपर हो चुके हैं। लोगों के मन में एक अनजाना सा भय समाता जा रहा है। कहीं मोदी जी को प्रधानमंत्री इस लाला जी ने ही तो नहीं बनाया ? इसीलिए प्रधानमंत्री को रोजाना योग करना पड़ रहा है, साथ में लोगों को निरंतर योग करने की अपील भी करनी पड़ रही है, और तो और उन्हें योग दिवस भी सरकारी पैसे से पूरे तामझाम के साथ मनाना पड़ रहा है। यह सब कहीं इन लाला जी के आदेश पर ही तो नहीं हो रहा?
पहले अक्सर जिक्र अडानी- अंबानी का होता था। हम दो यानी नरेंद्र मोदी व अमित शाह, हमारे दो यानी गौतम अडानी व मुकेश अंबानी। जिनके चौकीदार होने के आरोप प्रधानमंत्री झेल रहे हैं।
लेकिन अब कहानी में एक नया ट्विस्ट आता दिखाई दे रहा है। अब हमारे दो नहीं तीन दिखाई दे रहे हैं। वर्ना कोई साधारण कारोबारी या किसी योग पीठ का स्वामी भला इतने बड़े देश की सरकार को ऐसे कैसे हड़का सकता है। चुनावी फंड तो सभी कारोबारी देते हैं पर बदले में अच्छा खासा मुनाफा भी तो हक से लेते हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर यह रामदेव है क्या चीज? योगगुरु हैं, चमत्कारी बाबा है, कारोबारी है, कोई मंत्री या उप प्रधानमंत्री हैं या फिर कहीं सुपर प्रधानमंत्री तो नहीं? जो सरेआम प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार को किसी डॉन की भांति ऐसे ट्रीट कर रहा है जैसे सरकार में बैठे लोग उनके पतंजलि आश्रम से ही अपना गुजर-बसर कर रहे हों।
कहीं प्रधानमंत्री व उनके मंत्रियों की फौज लाला रामदेव की एहसानमंद या कहें कि कर्जदार तो नहीं? कहीं सरकार में बैठे लोगों ने बाबा रामदेव से कोई नाजायज फायदे तो नहीं ले रखे ? लोग तो जहां तक कयास लगा रहे हैं कि कहीं मोदी सरकार की कोई कमजोर नस इस स्वामी के हाथ में तो नहीं है ? अन्यथा इतने बड़े स्तर पर बिजनेस करने वाला व्यक्ति सरेआम इतनी बड़ी बात कैसे कह सकता है? डॉक्टर्स मोदी जी से गुहार लगा रहे हैं कि रामदेव सरकार के वैक्सीन प्रोग्राम को पलीता लगा रहा है, लोगों में भ्रम पैदा कर रहा है। उन पर देशद्रोही होने का मुकदमा दर्ज किया जाए क्योंकि कानून के अंतर्गत यही प्रावधान है। लेकिन लाला रामदेव का अंहकार इस समय सातवां आसमान भी पार कर चुका दिखाई दे रहा है। नि:संदेह टीवी चैनल्स की कमाई का वह एक अच्छा स्रोत है। पतंजलि उत्पादों के अरबों रुपए के विज्ञापन टीवी चैनल्स को जा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या विज्ञापन देने या चुनावी फंड देने से कोई व्यक्ति देश के नियम कानूनों से ऊपर हो सकता है? रामदेव द्वारा पैदा की गई परिस्थितियों के चलते देश में बड़ा अजीब वातावरण बना हुआ है चार लोग एकत्र बाद में होते हैं कि रामदेव का किस्सा शुरू हो जाता है।
फार्मा कंपनियों के मायाजाल की बात तो गाहे-बगाहे उठती ही रहती है। डॉक्टर अमर सिंह आजाद और उनकी टीम करोना काल शुरू होने से पहले से यह बात सोशल मीडिया पर निरंतर उठा रहे हैं। लेकिन लाला रामदेव के सुपर प्राइम मिनिस्टर वाले तेवर देखकर लोग अचंभित हैं। उनके अब तक के सार्वजनिक चरित्र पर गौर किया जाए तो उन्हें मानसिक तौर पर कमजोर, डरपोक लेकिन ' चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए ' वाली मानसिकता वाला व्यक्ति माना जाता है। सत्ता में बैठे लोगों से कब मेल मिलाप रखना है, कब उनके सामने तन कर खड़े होना है। कहां कितना समझौता करना है? और तने होने के बावजूद पिछले दरवाजे से महिला के वेश कब भाग खड़े होना है, वह सब बखूबी जानता है।
अब सवाल उठता है कि योग, धर्म कारोबार, राजनीति इन सब के बीच तालमेल क्या है? भारतीय योग संस्थान द्वारा हजारों सालों से योग की शिक्षा अपने तरीके से दी जा रही है। पर उन्होंने कभी भी इसे कैश करवाने वाला कोई कार्य नहीं किया। वैसे भी योग का मुख्य उद्देश्य भगवान और मनुष्य यानी आत्मा और परमात्मा का मेल करवाने का रहा है। भगवान कहें, कुदरत कहें, प्रकृति कहें या सुप्रीम पावर कहें। लेकिन यह योगगुरु आखिर दुनिया में करना क्या चाहता है? कारोबार करना चाहता है या राजनीति करना चाहता है? या योग करवाकर लोगों का भला करना चाहता है? धर्म और कारोबार तो वैसे भी एक दूसरे के विपरीत हैं। कारोबार में जहां मुनाफे के इतर कुछ नहीं सोचा जाता, वही धर्म में लोगों की भलाई के इतर कुछ नहीं होता।
योग और फकीरी की लाइन तो वैसे भी बहुत कठिन मानी गई हैं। लेकिन आज तथाकथित योगी और फकीर लोगों ने देश में आस्था का कचूमर निकाल रखा है। समय आ गया है जब देश को इन लोगों से निजात दिलाई जाए अन्यथा योग और फकीरी के नाम पर यह हिंदुस्तान को ही लील जाएंगे।
संतोष गुप्ता
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1 comment:
Babaji
double BA
Ba hai ,
... हठयोग तो बनता है
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