meethesh nirmohi-
त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव... कोकराझार - आसाम (भारत)..... पिछले दिनों कोकराझार - आसाम में शांति और प्रेम की थीम पर आयोजित त्रिदिवसीय (14से16 नवम्बर,21)अन्तरराष्ट्रीय काव्योत्सव, भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ । बोड़ो साहित्य दिवस के अवसर पर गौरांग नदी के किनारे बोडोफा कल्चरल कॉम्प्लेक्स में आयोजित इस अनूठे, ऐतिहासिक और अविस्मरणीय साहित्योत्सव के लिए बीटीआर सरकार , उसके मुखिया श्री प्रमोद बोड़ो तथा साहित्य अकादेमी ,नई दिल्ली से पुरस्कृत कवि और असम सरकार में कैबिनेट मंत्री श्री यू. जी. ब्रह्मा,बोड़ो साहित्य सभा और उससे जुड़े साहित्यकारों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है ।
मैंने इसे अनूठा , ऐतिहासिक और अविस्मरणीय आयोजन इस लिए बताया कि इस त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव में देश - दुनिया की 113 भाषाओं और उप भाषाओं के 176 कवियों ने भागीदारी निभाई । मेरी जानकारी में आया है कि इस से पहले तक विश्व के किसी भी भू भाग में इतनी भाषाओं के कवियों का सम्मिलन कभी आयोजित नहीं हुआ । इस अनूठे कविता महोत्सव में एक ओर जहां काव्य पाठ हुआ वही दूसरी ओर कवि-समीक्षकों के मध्य समकालीन कविता पर सार्थक विमर्श भी हुआ। साहित्य महोत्सव के उद्घाटन और समापन समारोहों के अतिरिक्त विभिन्न सत्रों में अतिथियों के उद्बोधन और कवियों के काव्य पाठ के बीच - बीच में जनजातीय नृत्यों की संगीत के साथ में गीतात्मक प्रस्तुतियों ने आयोजन को और अधिक जीवंत, आकर्षक एवं गरिमा मय बनाया।
आज हम बड़े ही क्रूर और कठिन समय में जी रहे हैं । भूमंडलीकरण की प्रचंड आंधी में अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद ने समूची मानवता को ही झकझोर कर रख दिया है । प्रेम, दया, सहिष्णुता, त्याग, सादगी आदि की भावनाएं हम से तिरोहित हो रही हैं। विनाशकारी और पूंजीवाद की सर्वशक्तिमान हुई शक्तियों ने समता, उदारता और मानवता को रौंद डाला है ।हमें सामंतवाद से तो मुक्ति मिल गई किन्तु नवसामंवाद ने जन्म ले लिया है।नव सामंतों के रहते दुनिया भर में हथियारों की होड़ लगी हुई है।आज पूरी दुनिया बारूद के ढेर पर है। ये ऐसे तानाशाह और उत्पीड़क हैं जिन्हें अपने देश के नागरिकों के लिए शिक्षा और चिकित्सा की समुचित सुविधाओं की कोई चिंता नहीं है ये सिर्फ और सिर्फ अपने वर्चस्व और लाभ के लिये विश्व में विध्वंसक हथियारों- परमाणुबम, रसायनिक हथियारों और स्वचालित हथियारों का निरन्तर निर्माण कर रहे हैं । दुनिया भर के इंसानों और देशों को तीसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल रहे हैं । इन्हीं के कारण आज समूचे विश्व में धर्म , साम्प्रदाय ,जाति ,भाषा और यहां तक कि कुछ देशों में रंग भेद के कारण नफ़रत का बोल बाला है । दूसरी तरफ भूमंडलीकरण की बाज़ारवादी शक्तियों ने (जो इन्हीं की देन हैं ) हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां उपस्थित कर रखी है। वे हमें वैचारिक स्तर पर गुलाम बनाना चाहती हैं । उड़िया भाषा के प्रख्यात कवि सीताराम महापात्र के हवाले से कहूं तो ये ऐसी शक्तियां हैं जो हमारे जीवन से कल्पना के आनंद और साझी भावनाओं को लूटने के लिए तत्पर हैं ।इनके रहते हमारी मनुष्यता तथा वसुधैव कुटुंबकम् की भावना छिन्न-भिन्न हुई खतरे में पड़ गई है । मैं फिर से कह रहा हूं कि यह बड़ा ही कठिन और क्रूर समय है।ऐसे में शांति और प्रेम की थीम पर आयोजित यह त्रिदिवसीय काव्योत्सव, बेहद प्रासंगिक है।
बी टी आर सरकार कोकराझार-आसाम तथा बोड़ो साहित्य सभा प्रतिकूल परिस्थितियों के रहते हुए भी अपनी मातृभाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रति ही नहीं अपितु समूची विश्व भाषाओं उप भाषाओं एवं उनमें रचे जा रहे साहित्य और संस्कृतियों के प्रति गौरव का भाव लिए हुए है । साहित्य और संस्कृति की चेतना की विरासत को संभाले हुए बीटीआर सरकार ने " प्रेम और शांति के लिए कविता " थीम पर विराट आयोजन कर विश्वभर के कवियों, साहित्यकारों, भाषाओं और पाठक-श्रोताओं के मध्य सेतु के रूप में उसने अपनी सार्थक उपस्थिति ही दर्ज नहीं कराई अपितु अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में भी सफल रहीं । इस अनूठे, ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय आयोजन की सफलता पर आयोजक बीटीआर सरकार के मुखिया श्री प्रमोद बोड़ो तथा असम सरकार में कैबिनेट मंत्री और साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से राष्ट्रीय पुरस्कार से समादृत कवि श्री यू जी ब्रह्मा का काव्योत्सव में उपस्थित कवियों की ओर से मुख्य अतिथि
मीठेश निर्मोही द्वारा शाॅल ओढ़ा कर अभिनंदन किया गया।
साहित्योत्सव में आयोजकों के मध्य समन्वय बनाती हुई संयोजक प्रोफेसर( डाॅ.) बिहुंग ब्रह्मा एवं डाॅ. प्रणब जे नार्जारी की अनुशासित टीम अतिथि रचनाकारों के आतिथ्य और समारोह के सत्रों को गरिमामय बनाने में समर्पित भाव से जुटी हुई थी।
साहित्योत्सव के प्रथम दिवस की संध्या में बी टी आर सरकार तथा उपस्थित कवियों एवं श्रोताओं की ओर से वैश्विक स्तर पर प्रेम और शांति का संदेश पहुंचाने के उद्देश्य से सैकड़ों कैंडल्स प्रज्ज्वलित कर सामूहिक रूप से प्रार्थना की गई। इससे पहले उद्घाटन समारोह के समापन अवसर पर वैश्विक महामारी कोराना के प्रभाव से जान गंवा चुके देश - दुनिया के लाखों लोगों जिनमें साहित्यकार और पत्रकार भी शामिल थे ,उन सभी को अन्तरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव की ओर से श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई। साहित्योत्सव की एक और विशेषता यह रही कि युवा पीढ़ी के हाथों में कल तक बंदूकें हुआ करती थीं । वह युवा पीढ़ी साहित्य,संस्कृति और कलाओं की ओर आकर्षित हुई हजारों की तादाद में साहित्योत्सव में निमग्न थी। काव्य पाठ कर रही थी, पुस्तकें खरीद रही थी।उपस्थित कवियों से संवाद कर रही थी। अपनी संस्कृति से जुड़कर गीत, संगीत के साथ थिरक भी रही थी ।
जब मैं अपने अनुभव लिख रहा हूं मुझे इस वक्त शांति, अहिंसा और प्रेम के पुजारी महात्मा गांधी, बुद्ध , महावीर, ईशा मसीह , मार्टिन लूथर किंग , मीरा और कबीर याद आ रहे हैं । मुझे भरोसा है कि शांति और प्रेम को समर्पित यह अनूठा
और ऐतिहासिक साहित्य महोत्सव गांधी, मीरा और कबीर की ही भांति विश्व की साहित्यिक बिरादरी में लंबे समय तक याद किया जाता रहेगा। मैं उत्तर - पूर्वोत्तर के दूर दराज के अंचल में आयोजित इस अन्तरराष्ट्रीय कविता महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होकर आल्हादित हूं और आपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं ।
- मीठेश निर्मोही,साहित्यकार
जोधपुर -342001
(राजस्थान)
1 comment:
सार्थक और समीचीन आलेख। मुझे खुशी है कि मैं भी इस ऐतिहासिक महोत्सव का हिस्सा रहा हूँ।
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