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7.6.08

कुणाल सिंह की कहानियां कहानी के प्रचलित तंत्र के विरुद्ध नया वृत्तांत बनाती हैं


परमानंद श्रीवास्तव


युवा कहानीकार कुणाल सिंह का कहानी संग्रह ÷ सनातन बाबू का दाम्पत्य' कहानी की दुनिया में एक नया रचनात्मक विकास है। विस्तार और जटिलता में जाकर इधर कुणाल , नीलाक्षी, चंदन पांडे ने कहानी के वस्तुजगत्‌ को और शिल्प को नयी से नयी भंगिमाएं दी हैं और जीवन, प्रेम, बेकारी, क्षेत्रावाद, हिंसा, बाजार, यौनिकता जैसे विषयों पर अप्रत्याशित रूप से ऐसी कहानियां लिखी हैं जो विस्मयप्रद हैं। वे एक तरह से हमारे तथाकथित शालीन संस्कारों को ध्वस्त करती हैं। वे अप्रत्याशित हैं, आघातप्रद हैं। नींद उड़ा देने वाली हैं। जैसे संग्रह की लम्बी कहानी ÷ रोमियो, जूलियट और अंधेरा' । इसकी औपन्यासिकता चकित करती है। अनुभव के भीतर नयी तकनीक का उपयोग कई बार करिश्माई है। कुणाल सिंह का पूर्वकथन कहानी के विस्फोटक नयेपन की समझने की कुंजी है :
÷÷ कहानी में आये विवरण एवं तथ्य पूर्णतया काल्पनिक हैं। किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। दरअसल दुनिया में गुवाहाटी नामक कोई शहर ही नहीं। गुवाहाटी में कभी कोई दंगा हुआ ही नहीं। दंगे में कभी कोई मरा ही नहीं। दुनिया में हर कहीं अमन चैन है। लोग खुशहाल हैं तमाम व्यवस्थाएं हैं। फुर्सतें भी हैं। फुर्सतों में पढ़ने के लिए और कभी नहीं पढ़ने के लिए कहानियां हैं। कहानियों में गुवाहाटी है, गुवाहाटी में दंगे हैं। दंगों में लोग मारे जा रहे हैं। लेकिन गुवाहाटी, अहमदाबाद, अयोध्या, काबुल, बगदाद आदि हमारे समय के कद्दावर गद्य हैं बस! चिन्ता की कोई बात नहीं। कहानी का आरम्भ और अंत जैसे त्राासद समय के दो छोर हैं - पर कहीं मिलते भी हैं।''
हाशिए का चरित्रा रामदहिन कामती अनुभा मनोज को एक दूसरे से मिलाता है पर पहले ही मार दिया जाता है। अनुभा मनोज के लिए प्रेम रोमांस से अधिक है। अनुभा खुद ही मनोज को मां से मिलाती है और विवाह के लिए तैयार है। दोनों के बीच का मोबाइल संवाद तिलिस्म से कम नहीं है। संवाद की भाषा यह है :
मैं - तुम्हें नहीं लगता कि मैं भीग रहा हूं?
वह - तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें छतरी में आ जाना चाहिए।
मैं - मे आई कम इन योर छतरी?
वह - योर वेलकम। इन माय छतरी।
या
- क्या पता मैं इस तरह गुम हो जाऊं कि फिर कभी न मिलूं?
- क्या पता तुम्हें खोजते खोजते मैं भी गुम हो जाऊं?
या
- अब ये भी मैं ही बताऊं कि तुम मुझसे क्या बोलो? पगले हो क्या?
- एक्चुअली मैं जरा नर्वस महसूस कर रहा हूं। यहां इस आधे अंधेरे कमरे में तुम्हारे साथ अकेला। मतलब...।
कुणाल कहानी के उत्तरार्द्ध में अनहोनी का पूर्वाभास देते हैं कि ÷ कहानी में हम आगे और आगे बढ़ते जाते हैं और पीछे छूटती जाती है खतरे की तख्ती। चेतावनी की वे इबारतें हमें बहुत दिनों बाद याद आनी थीं - ÷ सावधान ... कहानी में आगे खतरनाक मोड़ हैं' ।' कहानी त्राासदी से कम नहीं। हिंस्र आक्रमण में अनुभा भी मार दी जाती है। अधमरा मनोज कुत्ते से भिड़ जाता है। ÷ अंधेरा' सिर्फ एक शब्द संकेत है कि कुछ भयावह त्राासद घट चुका है। अब पूर्वकथन याद करें - ÷ दरअसल दुनिया में गुवाहाटी नामक कोई शहर ही नहीं' ।
÷ सनातन बाबू का दाम्पत्य' संग्रह की चर्चित कहानियों में प्रायः सभी सात कहानियां हैं - ÷ शोकगीत', इति गोंगेश पाल वृत्तांत', ÷ सनातन बाबू का दामपत्य', ÷ आदिग्राम उपाख्यान', ÷ आखेटक', ÷ साइकिल' और ÷ रोमियो जूलियट और अंधेरा' । ÷ साइकिल' की चाची, ÷ आखेटक' की जुल्फिया, ÷ सनातन बाबू का दामपत्य' के सनातन बाबू - यादगार चरित्रा हैं। सनातन बाबू अविवाहित हैं पर काल्पनिक पत्नी पूरी कहानी में छायी हुई हैं। अनहोनी आम बात है। पत्नी कहती हैं - ÷ हवा के खुले में हम औरतें अपनी देह की चमड़ी पहनती हैं। चमड़ी उतार दो तो नंगी हो सकती हैं, या क्या पता तब भी नहीं' । इसी कहानी का एक अंश है : ÷ अकेले के घर में रात खटकों से भरी होती है। लेकिन इस घर में जरूर कोई और भी है। सनातन बाबू के जाने बगैर छिप छिप कर रहता आया है। ... उदाहरण के लिए सनातन बाबू ने दो बेला के लिए भात बनाया। रात के लिए भात रख कर गये और लौट कर देखा तो भात गायब।' उन्हें यह भी लगता है - दूसरा अदृश्य व्यक्ति स्त्राी ही है। यह कल्पना जितनी हास्यास्पद है, त्राासद भी।
÷ इतिगोंगेश पाल वृत्तांत' में कहानी में अक्सर छोटा सा ब्रेक है। जादुई यथार्थवाद और क्या हो सकता है। कहानी तो कहानी है। समाज की गिरफ्त से बाहर आता गोंगेश पाल। यहां भी त्राासद अंत है। कहानी जैसे आगे लिखी जानी हो। ÷ शोकगीत' में बेकारी के दिनों की यातना है। दुनिया एक रेडीमेड उत्पाद है। यहां कुछ भी हासिल नहीं। ÷ आखेटक' में जुल्फिया ही शिकारी है - शिकार हैं पर्यटक नेपाल बाबू। जुल्फिया को लगता है - ÷ उसकी शालीन हरकतों में अब भी वे उत्तेजक और हिंस्र झाड़ियां बच रही हैं जो मर्दों को लहूलुहान कर सकती हैं।' बाघ का होना झूठ है पर जुल्फिया की देह का खुलना सच है। कुणाल सिंह की कहानियां कहानी के प्रचलित तंत्रा के विरुद्ध नया वृत्तांत बनाती हैं। ÷ आदिग्राम उपाख्यान' विभूतिभूषण बनर्जी के आरण्यक की तरह की फंतासी हैं। रानी रासमणि के दुःख से भीगी कमीज की अपनी अंतर्कथा है। कुणाल सिंह के सामने चुनौती है कि वे एक भयावह समय में कहानी को अपने समय का दस्तावेज बना सकें। मुक्तिबोध ने फंतासी प्रधान कहानियों से एक अद्वितीय पहचान बनायी थी। इधर युवतर कहानीकारों ने कहानी को प्रति कहानी का रूप दिया है। कहानी के विरुद्ध कहानी- जो किस्सागोई को एक नयी ऊंचाई देती है।


साभार-http://www.tadbhav.com/yathartha_paramanand.htm#paramanand

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,कुणाल बाबू तो अभिनव प्रेमचंद जान पड़ते हैं जरा देखिये तो....
हम औरतें अपनी देह की चमड़ी पहनती हैं। चमड़ी उतार दो तो नंगी हो सकती हैं, या क्या पता तब भी नहीं'......
simply great.....

shashi said...

paramanad srivastav ko kahani ki koi samajh hi nahi hai. kavita ki to pahale hi nahi thi. vaise kavita ki bat "kavita" jane.
shashibhuddin thanedar

Anonymous said...

हरे दादा,
युवा कहानीकार कुणाल सिंह की रचना ने प्रभावित किया. निसंदेह रचनात्मकता है. सतत जारी रहें.