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12.9.12

युवा कार्टूनिस्ट बन गया ‘योद्धा’


महाराष्ट्र सरकार की एक बचकानी पहल के चलते युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी अचानक चर्चा में आ गए हैं। शनिवार को मुंबई पुलिस ने असीम को देशद्रोह करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनके कुछ कार्टूनों और भ्रष्टाचार विरोधी पोस्टरों को पुलिस ने देशद्रोह की श्रेणी में मान लिया है। सोमवार को कार्टूनिस्ट को न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। क्योंकि इस जुनूनी युवा ने जमानत पर छूटने से इंकार कर दिया था। यही कहा था कि जब तक सरकार देशद्रोह का मुकदमा वापस नहीं लेगी, तब तक वे जेल में ही रहना पसंद करेंगे। इस प्रकरण से पूरे देश में सरकार की तीखी आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हो गया है। बढ़ते दबाव के चलते महाराष्टÑ के गृहमंत्री आर आर पाटिल को कल ऐलान करना पड़ा कि सरकार असीम के ऊपर से देशद्रोह का मुकदमा वापस ले लेगी। इस तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर शिकंजा कसने वाली सरकार को कुछ घंटों के अंदर ही घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा है। असीम, महज 25 साल के हैं। वे फ्रीलांसर कार्टूनिस्ट हैं। कई साल से पत्र-पत्रिकाओं के लिए व्यवस्था विरोधी व्यंग्य चित्र बनाते रहे हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई कानपुर और उन्नाव में हुई है। असीम के पिता अशोक त्रिवेदी शुक्लागंज (उन्नाव) में टेंट का एक छोटा बिजनेस करते हैं। असीम ने यहीं के एक स्कूल से हाईस्कूल पास किया था। इंटरमीडिएट में इस युवा ने कानुपर के बीएनएसडी कॉलेज में प्रवेश लिया था। इंटर की पढ़ाई के दौरान ही असीम ने दैनिक ‘आज’ के लिए कार्टून बनाने शुरू कर दिए थे। असीम के पिता अशोक त्रिवेदी बताते हैं कि छोटी उम्र में ही उनका बेटा हर तरह के अन्याय के खिलाफ काफी जज्बाती हो जाता था। इसकी अभिव्यक्ति वह बड़े तीखेपन से अपनी कलम कूची के जरिए कार्टूनों में उभारता था। इंटर पास करने के बाद उसने तय कर लिया था कि वह कार्टून विधा को समाजसेवा का कारगर हथियार बनाएगा। कानपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद असीम कई जनसंगठनों के साथ जुड़कर काम करता रहा। बाद में उसकी इच्छा हुई कि वह एक संगीतकार के रूप में अपने को तराशे। इसी चक्कर में वह मुंबई चला गया था। लेकिन मुंबई पहुंचकर जुनूनी हुआ असीम, संगीतकार बनने की बजाए एक्टविस्ट बन गया। पिछले साल दिसंबर महीने में चर्चित आंदोलनकारी अन्ना हजारे ने लोकपाल के मुद्दे पर मुंबई में अनशन किया था। इस आंदोलन में असीम ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। उत्साह से लबरेज असीम ने आंदोलन स्थल पर अपने राजनीतिक कार्टूनों की एक प्रदर्शनी भी लगाई थी। असीम की टोली ने आंदोलन स्थल पर भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ कई धारदार बैनर भी लगाए थे। इनकी काफी चर्चा हुई थी। इस मौके पर असीम ने कई ऐसे व्यंग्य चित्र बनाए थे, जिनमें सरकार के मंत्रियों पर तीखे निशाने साधे गए थे। एक कार्टून में संसद की आकृति को बनाकर यह दर्शाने की कोशिश की गई थी कि कैसे भ्रष्ट नेताओं ने संसद भवन को भ्रष्टाचार भवन में बदल दिया है। एक व्यंग्य चित्र में लोकतंत्र की दुर्दशा उभारने के लिए असीम ने संसद भवन को एक शौचालय का प्रतीक तक बना डाला था। उनके कुछ ऐसे कार्टूनों को लेकर ही विवाद हुआ था। एक कार्टून में अशोक की लॉट के सिंहों को खूनी भेड़ियों के रूप में दिखाकर भ्रष्ट व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करने की कोशिश की थी। ऐसे कार्टूनों को लेकर काफी बवाल हुआ था। मुंबई की कुर्ला कॉम्पलेक्स पुलिस ने असीम के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया था। दरअसल, मुंबई के एक कांग्रेसी कार्यकर्ता एवं स्थानीय वकील ने शिकायत की थी कि असीम ने राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करके देशद्रोह किया है। इसी शिकायत पर देशद्रोह का मामला बनाया गया था। कुछ कार्टूनों को लेकर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा- 124 (देशद्रोह) और सूचना प्रौद्योगिकी की धारा- 66ए समेत कई आपराधिक धाराओं में असीम को आरोपी बनाया है। इन्हीं आरोपों के आधार पर शनिवार को युवा कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी की गई थी। असीम, अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में काफी सक्रिय रहे हैं। जुलाई में केजरीवाल और अन्ना ने जंतर-मंतर में आंदोलन किया था। इसमें भी असीम ने काफी सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस मौके पर भी असीम के तीखे कार्टूनों और बैनरों की खास चर्चा रही थी। महज कुछ व्यवस्था विरोधी कार्टून बनाने के लिए असीम को देशद्रोही मान लेना, एक क्रूर मजाक जैसा लग रहा है। इस प्रकरण को लेकर पूरे देश के बुद्धिजीवियों ने अपना सख्त विरोध दर्ज कराया है। यहां तक कि ‘प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया’ के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने देशद्रोह में असीम की गिरफ्तारी की तीखी निंदा की। उन्होंने कहा कि जरूरी हो गया है कि देशद्रोह की आपराधिक धारा की समीक्षा की जाए। जिन लोगों ने बचकानापन दिखाते हुए असीम को देशद्रोह में गिरफ्तार किया है, उन्हें पकड़कर जेल में डाल देना चाहिए। सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस के बड़े नेता भी इस प्रकरण में झेंपते नजर आए। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने इस मामले में यह कह कर अपना पल्ला झाड़ा कि यह मामला, तो महाराष्टÑ सरकार का है। इसमें केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर राजसत्ता का यह पहला हमला नहीं है। इमरजेंसी के दौर में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने स्वतंत्र मीडिया को कुचलने की पूरी कोशिश की थी। यह अलग बात है कि इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत कांग्रेस को उस दौर में चुकानी पड़ी थी। कुछ महीने पहले ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के एक प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र को जेल में महज इसलिए डलवा दिया, क्योंकि उन्होंने ममता से जुड़े एक कार्टून को ई-मेल के जरिए, कई लोगों को फॉरवर्ड कर दिया था। पश्चिम बंगाल सरकार की इस हरकत का विरोध भी असीम की टोली ने जमकर किया था। विरोध करने के लिए असीम ने ‘सेव योर वॉयस’ नाम का अभियान सोशल साइट्स के जरिए चलाया था। इसमें भी पैनापन दिखाने के लिए असीम ने संविधान की किताब को सीखचों के पीछे दिखाया था। कई लोगों ने इस कार्टून की भी आलोचना की थी। कई शहरों में इस कार्टून पर असीम के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया गया। अरविंद केजरीवाल के संगठन से जुड़े एक कार्यकर्ता ने असीम की जमानत के लिए जनहित याचिका डाली थी। एक चिट्ठी के जरिए असीम के मामले की गुहार मुंबई हाईकोर्ट में लगाई गई थी। कल इस मामले में अदालत ने असीम को जमानत दे दी है। जेल जाने के बाद भी युवा असीम जोश के जज्बे से भरे रहे हैं। उन्होंने मीडिया से यही कहा कि देशद्रोह का मौजूदा कानून बिट्रिश शासन व्यवस्था ने बनाया था। वही इस समय भी लागू है। इससे ज्यादा शर्मनाक कोई और बात नहीं हो सकती। असीम प्रकरण से कांग्रेस नेतृत्व भी बैचेन हो गया है। कोशिश की गई थी कि असीम को पुलिस थाने से ही जमानत दिला दी जाए। पुलिस ने ऐसी पेशकश भी की थी। लेकिन असीम ने जमानत लेने से इंकार किया था। यही कहा था कि जब तक सरकार देशद्रोह का बेहूदा आरोप वापस नहीं लेगी, तब तक वे जेल में ही रहना पसंद करेंगे। टीवी कवरेज के जरिए पूरे देश के लोगों ने देखा था कि जिस समय मुंबई पुलिस असीम को जेल ले जा रही थी, उन क्षणों में भी असीम भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ जज्बाती नारेबाजी कर रहे थे। वे लगातार कहते आ रहे हैं कि यदि भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाना और कार्टून बनाना देशद्रोह है, तो वे ऐसा बार-बार करेंगे। इस कार्टून विवाद के चलते केजरीवाल भी आक्रामक मुद्रा में नजर आए। उनका कहना है कि देशद्रोही तो वे मंत्री हैं, जिन्होंने कोयला ब्लॉक आवंटन में अरबों रुपए की लूट की है। जबकि असीम जैसे युवा ने तो कार्टून के जरिए महज अभिव्यक्ति करके राष्टÑप्रेम का जज्बा दिखाया है। विडंबना यह है कि राष्टÑप्रेमी को देशद्रोह में गिरफ्तार किया जाता है। जबकि वास्तविक देशद्रोही सत्ता के मजे लूटने में लगे हैं। ऐसे में जरूरी है कि देश के युवाओं में असीम जैसा ‘असीम’ उत्साह और जज्बा हो, तो कुछ बात बने। साभारः वीरेंद्र सेंगर (कायर्कारी संपादक, डीएलए)।

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