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11.9.12

abtak koi swang

कौवे जैसी काँव -काँव या मुर्गे जैसी बांग ;
नहीं भर सका इस जीवन में अबतक कोई स्वांग।

पीकर था लुढ़का अथवा बेहोश पड़ा था पूछे कौन
इस विकास की धम चौकड़ में रह जाती मानवता मौन ;
सीधे का मुंह नहीं चाटता अब कोई कुत्ता साला ,
अब गरीब का स्वागत करता स्वान उठाकर टांग।
नहीं भर सका इस जीवन में अबतक कोई स्वांग।।

जिधर देखता आज शिखर पर दिख ता  कोई चोर
देख साधु ओं को झल्लाता , खूब मचाता शोर ;
शीशमहल में रहता है , अच्छी गाडी में चलता है
गरिमामय वह कौन सफाई उससे सकता मांग ?

नहीं भर सका इस जीवन में अबतक कोई स्वांग।।


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