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17.9.12

शिंदे के बोल और मनमोहन की खामोशी



हमारे देश को गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे साहब कहते हैं कि बोफोर्स घोटाले की तरह जनता एक लाख 86 हजार करोड़ के कोयला घोटाले को बी भूल जाएगी...और जिनके हाथ काले हैं वो फिर से सफेद हो जाएंगे। शिंदे साहब इसमें ये भी जोड़ते हैं कि जनता की याददाश्त बहुत कोमजोर होती है...हालांकि कोयला घोटाले पर सरकार को घेर रही भाजपा ने बोफोर्स कांड के बाद 1989 के चुनाव नतीजों की याद दिलाकर कांग्रेस पर हमला बोला है...लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जैसा शिंदे ने इस बयान पर बवाल होते देख अपनी सफाई दी है कि उन्होंने तो मजाक में ये सब कहा था...क्या वाकई में ये शिंदे का मजाकिया बयान था या फिर ये उनके दिल की बात थी जो जुबां पर आ ही गयी। शिंदे साहब आप की बात मान भी ली जाए तो भी ऐसे समय में जब आपकी सरकार के मुखिया पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों...तो क्या आपको ये मजाक शोभा देता है...गृहमंत्री जैसी महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठकर ऐसा बयान देना आपको शोभा देता है...जनता की याददाश्त पर सवाल उठाना वो भी अपनी गलतियों के लिए क्या ये आपको शोभा देता है। चलिए आपने मजाक में ही कहा...लेकिन कहीं न कहीं ये बात आपके दिल में रही होगी तभी तो जुबां पर भी आयी...मजाकिया अंदाज में ही सही। कहीं न कहीं आपके क्या...आपकी सरकार...आपकी पार्टी...आपके साथी नेताओं से इस तरह की आपकी बात होती होगी...तभी तो आपने ये सब बयां किया। वैसे आपकी इस बात से तो मैं भी सहमत हूं कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है...ये बात सच भी है...वरना बार बार भ्रष्टाचार करने के बाद शायद नेता चुनाव न जीतते और मंत्री न बन पाते। वैसे भी ये मानव स्वभाव है कि किसी भी चीज का असर हमारे दिमाग पर 24 से 48 घंटे तक रहता है...और उसके बाद हम चीजों को भूलने लगते हैं। उदाहरण ही देख लें....हम सड़क पर कोई भीषण दुर्घटना देखते हैं तो अगले 24 से 48 घंटे तक खुद संभल कर गाड़ी चलाते हैं...लेकिन उसके बाद फिर उसी ढ़र्रे पर आ जाते हैं...और ये सिलसिला चलता रहता है। शिंदे जी जनता की याददाश्त कमजोर न होती तो शायद आप जैसे नेता दोबारा विधायक, सांसद या मंत्री नहीं बन पाते...क्योंकि आपको कुर्सी तक पहुंचने से रोकने के लिए आपके इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान ही काफी हैं...जिसे बयां करने में आपको तो शर्म नहीं आती..लेकिन जनता का सिर शर्म से झुक जाता है...कि ये कहने वाला व्यक्ति बहुत ही महत्वपूर्ण कुर्सी पर बैठा हमारे देश का गृहमंत्री है। खैर इन चीजों से आपको फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आप तो जनता की कमजोरी जानते हैं कि कुछ भी करो...कुछ भी बोलो...चुनाव तक तो जनता सब भूल जाएगी। वैसे हिंदुस्तान की जनता के बारे में आपका सामान्य ज्ञान कमजोर लगता है...इस विषय में आपका सामान्य ज्ञान बढ़ाना चाहूंगा कि माना जनता जल्दी चीजों को भूल जाती है...लेकिन ये मत भूलिएगा कि जब जब जनता ने ठाना है...तो अच्छे अच्छों को सत्ता से बेदखल करके ही दम लिया है। 1977 और 1989 के चुनाव के नतीजे तो आपको याद ही होंगे...जब जनता ने अपनी इस ताकत को दिखा दिया था कि वो अगर ठान ले तो सत्ता किसी के बाप की जागीर नहीं है...और ऐसे लोगों को सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। जनता अगर आपको सत्ता तक पहुंचा सकती है तो सत्ता से बेदखल भी कर सकती है...इसलिए जब भी बोलें तो जरा संभल कर...वरना चुप ही रहें...अच्छा न बोल सकें...देश के विकास की बातें न बोल सकें...जनकल्याण की बातें न बोल सकें...तो अपनी सरकार के मुखिया से ही कुछ सीख ले लें...वो करतें कुछ भी हों...लेकिन रहते खामोश ही हैं।

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