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10.9.12

भाजपा में तेज हुई ‘पीएम इन वेटिंग’ चेहरे के लिए रार!


नई दिल्ली। भाजपा नेतृत्व कोयला घोटाले को लेकर यूपीए सरकार के प्रति लंबे समय से आक्रामक तेवर अपनाए रहा है। इसी प्रकरण को लेकर दो सप्ताह तक लगातार संसद की कार्यवाही ठप रखी गई। पिछले शुक्रवार को ही संसद का मानसून सत्र समाप्त हुआ है। ‘कोलगेट’ कांड को लेकर सरकार और भाजपा नेतृत्व के बीच शुरू हुई रार अब संसद के बाद सड़क तक पहुंच रही है। भाजपा ने ऐलान किया था कि इस मुद्दे पर मनमोहन सरकार के खिलाफ उसका राजनीतिक अभियान अब जनता के बीच चलाया जाएगा। रणनीति बनाने के लिए शीर्ष नेताओं की एक बैठक होने वाली है। एक तरफ सरकार को घेरने के लिए रणनीतियां बन रही हैं, तो दूसरी तरफ पार्टी के अंदरूनी मतभेद एक बार फिर सिर उठाते नजर आने लगे हैं। भाजपा के अंदर पिछले कई महीने से अगले ‘पीएम इन वेटिंग’ के चेहरे को लेकर बहस चल रही है। प्रधानमंत्री पद कीउम्मीदवारी के लिए कहीं अंदरूनी खींचतान ज्यादा न बढ़ जाए, ऐसे में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने यही नीति अपनाई कि फिलहाल इस पर चुप्पी साधी जाए। इस मुद्दे का विवाद बढ़ता देखकर उन्होंने यही कहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद ही पार्टी इस बारे में कोई फैसला करेगी। दरअसल, इस मामले में यह विवाद गुजरात के चर्चित मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आने के बाद शुरू हुई है। संघ नेतृत्व की एक मजबूत लॉबी खांटी हिंदुत्ववादी छवि वाले मोदी को अगले साल राष्टÑीय राजनीति में देखना चाहती है। ताकि 2014 के लोकसभा चुनाव में काफी पहले से मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जा सके। संघ के नेताओं का विश्वास है कि इस दौर में मोदी की राजनीति का करिश्मा बड़ी कामयाबी दिला सकता है। क्योंकि सेकुलर दलों के वोट आपस में बंट जाएंगे। मोदी के नेतृत्व में एनडीए इस अवसर का लाभ उठा सकता है। वैसे भी मोदी के राज में गुजरात ने विकास के रिकॉर्ड बनाए हैं। इससे उनकी छवि ‘विकास पुरुष’ की भी बनी है। नरेंद्र मोदी को केंद्र में अवसर मिलता है, तो वे गुजरात के विकास मॉडल को पूरे देश में लागू करवाने का प्रयोग कर सकते हैं। करीब तीन महीने पहले मुंबई में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। इस बैठक के दौरान संघ के इशारे पर जिस तरह से पार्टी नेतृत्व ने मोदी की खास मनुहार की थी, उससे साफ-साफ संकेत मिले थे कि अब संघ के नेता मोदी को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तैयारी से जुट गए हैं। मोदी मुंबई की कार्यकारिणी में अपनी शर्तों पर हिस्सा लेने आए थे। उन्होंने नेतृत्व पर दबाव बना दिया था कि पार्टी पहले संजय जोशी को कार्यकारिणी में हिस्सा लेने से रोके। इसी के बाद वे मुंबई आ सकते हैं। अंतत: मोदी के दबाव में संजय जोशी से रातो-रात इस्तीफा ले लिया गया था। वे कार्यकारिणी में हिस्सा लेने के लिए मुंबई पहुंच भी गए थे। लेकिन नाटकीय घटनाक्रम में उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। इस ऐलान के कुछ घंटों बाद ही मोदी मुंबई पधारे थे। इस कार्यक्रम में जिस तरह से मोदी को सबसे ज्यादा महत्व मिला था, उसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई नेता पचा नहीं पाए थे। यहां तक की आडवाणी और सुषमा स्वराज ने तो मुंबई में आयोजित रैली में भी हिस्सा नहीं लिया था। यही बहाना बनाया था कि उन्हें दिल्ली में जरूरी काम है। ऐसे में लौटना अपरिहार्य हो गया था। मुंबई कार्यकारिणी बैठक के बाद मोदी के राजनीतिक हावभाव भी काफी बदले हुए देखे जा रहे हैं। पहले वे बात-बात में गुजरात के छह करोड़ लोगों की दुहाई दिया करते थे, लेकिन मुंबई से लौटने के बाद वे सवा अरब आबादी का हवाला देने लगे। इस तरह से उन्होंने अपने लोगों को संकेत दे दिए कि वे राष्टÑीय राजनीति में जाने का संकल्प बना चुके हैं। जब भाजपा के राजनीतिक हलकों में मोदी की चर्चा बढ़ी, तो एनडीए के घटक जदयू ने अपनी नाराजगी दर्ज कराई। बिहार के मुख्यमंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार ने खुलकर कह दिया कि उनकी पार्टी को ‘पीएम इन वेटिंग’ के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम स्वीकार नहीं हो सकता। ऐसे में अच्छा रहेगा कि भाजपा नेतृत्व इस जिम्मेदारी के लिए किसी और नेता का नाम तय करे। वरना, यह विवाद बढ़ जाने से एनडीए का नुकसान हो सकता है। जब नीतीश ने आक्रामक रुख अपनाया, तो मोदी ने भी किसी न किसी बहाने बिहार को लेकर कटाक्ष के तीर चलाने शुरू किए। मोदी की कई टिप्पणियों को लेकर विवाद गहराया भी था। जदयू के प्रमुख शरद यादव ने सवाल उठाया था कि भाजपा अकेले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कैसे तय कर सकती है। जबकि यह फैसला एनडीए की बैठक में आपसी समझ से तय किया जाना जरूरी है। हालांकि उन्होंने यह माना कि सबसे बड़े दल के नाते भाजपा का ही कोई नेता प्रधानमंत्री पद की रेस में होगा। फिर भी नाम तय करने के पहले सभी घटकों की राय लेना भी जरूरी है। मोदी को लेकर नीतीश कुमार पिछले दो महीनों से लगातार आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं। उन्होंने यहां तक अल्टीमेटम दे दिया है कि यदि भाजपा ने मोदी को ही इस पद के लिए आगे किया, तो उनकी पार्टी एनडीए से अलग हो जाएगी। जब यह विवाद काफी तूल पकड़ने लगा था, तो पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने आधिकारिक रूप से कह दिया था कि भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद ही अपना नेता तय करेगी। गडकरी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी में प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने लायक कई नेता हैं। इस पद के लिए उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी व शिवराज सिंह चौहान के नाम भी गिना दिए। यह कहा कि पार्टी में कई सक्षम नेता मौजूद हैं। ऐसे में पार्टी की रणनीति बनी है कि पहले से ‘पीएम इन वेटिंग’ के नाम का ऐलान नहीं होगा। पार्टी अध्यक्ष गडकरी पिछले महीने कनाडा यात्रा पर चले गए हैं। वे जल्द ही विदेश प्रवास से लौटने वाले हैं। तय किया गया है कि गडकरी की वापसी के बाद ही ‘कोलगेट’ कांड में पार्टी अगली रणनीति का फैसला करेगी। इसी बीच भाजपा के अंदर एक बार फिर प्रधानमंत्री पद का मामला तूल पकड़ने लगा है। दरअसल, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का एक इंटरव्यू पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में कल छपा था। इसमें ठाकरे ने एक सवाल के जबाव में कहा है कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार सुषमा स्वराज लगती हैं। क्योंकि वे प्रतिभाशाली वक्ता हैं और राजनीतिक दुनिया में उनकी विश्वसनीयता भी काफी मजबूत है। ठाकरे की इस टिप्पणी से संघ परिवार में हलचल तेज हो गई है। पार्टी के राष्टÑीय सचिव बलबीर पुंज ने ठाकरे की टिप्पणी पर मीडिया से कहा है कि शिवसेना प्रमुख अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए अभी अपना कोई उम्मीदवार तय नहीं किया है। ऐसे में पार्टी इस मामले में ज्यादा बहस करने की जरूरत नहीं समझती। शिवसेना प्रमुख ने अपनी खास राजनीतिक शैली में सुषमा स्वराज का नाम उछाल कर मोदी समर्थकों को बुरी तरह से चिढ़ा दिया है। भाजपा सूत्रों के अनुसार कई कारणों से शिवसेना प्रमुख दबंग नेता मोदी से खुश नहीं हैं। ऐसे में वे मोदी की टांग खींचने लगे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि लोकसभा चुनाव में अभी करीब दो साल बाकी है। ऐसे में भाजपा के अंदर प्रधानमंत्री पद की दौड़ को सिर्फ एक राजनीतिक कॉमेडी ही कहा जा सकता है। जिस तरह से ठाकरे और नीतीश कुमार ने मोदी को रिजेक्ट कर दिया है, इससे स्पष्ट है कि एनडीए में कई मुद्दों पर रार है। इन लोगों ने संसद का मानसून सत्र झूठे आरोपों के आधार पर नहीं चलने दिया। अब एक ऐसे पद के लिए आपस में जंग करते नजर आ रहे हैं, जो कि दूर-दूर तक खाली नहीं है। पिछले दिनों गुजरात के बहुचर्चित दंगों की राजनीतिक तपिश मोदी तक पहुंच गई है। क्योंकि 2002 में हुए दंगों के लिए मोदी के कई करीबियों को पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दोषी मानते हुए सजा सुना दी है। दंगों के दौर में माया कोडनानी मोदी सरकार में मंत्री थीं। उन पर आरोप था कि नरोदापटिया इलाके में उनकी अगुवाई में ही दंगाइयों ने दर्जनों अल्पसंख्यकों को मार डाला था। माया, नरोदापटिया इलाके से ही विधायक थीं। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें दोषी मानते हुए 20 साल की सजा सुनाई है। माया के साथ विश्व हिंदू परिषद के चर्चित नेता बाबू बजरंगी को मौत होने तक जेल में रखने की सजा दी गई है। ये दोनों उस दौर में मोदी के करीबी समझे जाते थे। अदालत के इस फैसले से दंगों में मोदी की भूमिका को लेकर एक बार फिर सवाल उठे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कह दिया है कि अब तो मोदी की तरफदारी करने वालों को थम जाना चाहिए। वरना, ठीक नहीं रहेगा। इस टिप्पणी को भी अल्टीमेटम के रूप में देखा जा रहा है। अब ठाकरे ने सुषमा स्वराज का नाम उछाल कर पार्टी के अंदर इस विवाद को नया मसाला मुहैया करा दिया है। साभारः- वीरेंद्र सेंगर (जीएडीएलए, कार्यकारी संपादक)।

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