सरकारी नौकरियों
में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर जमकर बवाल मचा है...एक बड़ा गुट आरक्षण के खिलाफ
है तो दूसरा गुट आरक्षण के समर्थन में हैं। ऐसे में इन दोनों ही गुटों के वोटों पर
निगाह गड़ाए रखने वाले हमारे राजनेता कहां पीछे रहने वाले थे। आखिर आरक्षण का ये
जिन्न बाहर भी तो इन्हीं के श्रीमुख से निकलता आया है। आरक्षण पर लोक जनशक्ति
पार्टी के अध्यक्ष और भारतीय दलित राजनीति के प्रमुख नेता रामविलास पासवान कहते
हैं कि आरक्षण हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है...तो आरक्षण पर दलित राजनिति की प्रमुख
महिला नेत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती के सुर तो पासवान से भी ज्यादा बुलंद हैं...वहीं
समाजवादी पार्टी के सुर आरक्षण पर कुछ बदले बदले से हैं...समाजवादी पार्टी ने तो
साफ कर दिया है कि आरक्षण प्राकृतिक नियमों के खिलाफ है...लिहाजा इसके खिलाफ उनके
तीखे स्वर नरम नहीं पड़ने वाले। सरकार तो पहले ही प्रमोशन में आरक्षण के पक्ष में
दिखाई दी...और इसका सुबूत केन्द्रीय कैबिनेट के उस फैसले ने दे दिया...जिसने
प्रमोशन में आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी। अब बची मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता
पार्टी...प्रमोशन में आरक्षण को लेकर भाजपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं...शायद
भाजपा इस असमंजस में है कि इस ज्वलंत मुद्दे को किस तरह भुनाया जाए...प्रमोशन में
आरक्षण का समर्थन कर इससे लाभांवित होने वाले वर्ग विशेष के वोट बैंक में सेंध
लगाकर या फिर इसका विरोध कर अपेक्षाकृत बड़े वर्ग की सहानुभूति बटोर कर वो भी ऐसे
समय में जब कांग्रेस, बसपा, लेफ्ट समेत तमाम दूसरे राजनीतिक दल उनकी नाराजगी मोल
ले चुके हैं। बहरहाल देर सबेर भाजपा भी अपने पत्ते खोल ही देगी...लेकिन सरकार को
प्रमोशन में आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए अभी सदन में
संविधान संशोधन विधेयक पेश करना है...और इसे पास भी कराना है...लेकिन सरकार को
बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी की बिल को लेकर नाराजगी और भाजपा की चुप्पी
सरकार के लिए फिलहाल सबसे बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। आरक्षित वर्ग की अगुवाई करने
वाले रामविलास पासवान, मायावती और इनके सरीखे दूसरे राजनेता तो अपने वोटबैंक बचाने
की जद्दोजहद में जल्द से जल्द इसे लागू करवाना चाहते हैं...और इन दलों की पूरी
कोशिश ये है कि इसी बहाने आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों की संख्या को बढाया
जाए। पासवान जहां बिहार में दलित वोटबैंक के सहारे अपनी खोई जमीन वापस पाने की
फिराक में हैं तो मायावती भी विधानसभा चुनाव में मात खाने के बाद कम से कम 2014 के
आम चुनाव में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर नीला झंडा फहराना चाहती हैं...और
मायावती की कोशिश भी यही होगी कि इस बार अपनी सीटों की संख्या 21 से बढ़ाकर कम से
कम 30 से 40 की जाए...ताकि केन्द्र की राजनीति में माया का कद बढ़े। चलो ये तो थे
तर्क प्रमोशन में आरक्षण बिल का पुरजोर समर्थन करने वाले दो दलों के...अब बात करते
हैं समाजवादी पार्टी की आखिर क्यों सपा प्रमोशन में आरक्षण के विरोध में है। सपा इसके
पीछे भले ही जो भी तर्क दे...लेकिन इस बात से सपा के नेता इंकार नहीं कर सकते कि
इस फैसले के विरोध के पीछे 2014 के आम चुनाव ही हैं। सपा ये बात जानती है कि अगर
वो इस फैसले का पुरजोर विरोध करेगी तो देशभर में न सही कम से कम उत्तर प्रदेश के
उन समान्य वर्ग के उन 16 लाख सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवार के साथ ही सामान्य
वर्ग के दूसरे लोगों की सहानुभूति तो वो आम चुनाव में बटोर ही सकती है। हाल ही में
हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटें हासिल कर पूर्ण बहुमत हासिल किया था...औऱ
बसपा को सत्ता से बेदखल कर अखिलेश यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए थे।
जिसके बाद मुलायम सिंह के राष्ट्रीय राजनीति में पूरी दमदारी के साथ ताल ठोकने के इरादे
भी जाहिर हो गए थे। ऐसे में 2014 के आम चुनाव में सपा प्रदेश में पार्टी के पक्ष
में बने माहौल को भुनाना चाहती है...सपा की पूरी कोशिश है कि प्रदेश की 80 लोकसभा
सीटों में से कम से कम 60 सीटों पर साइकिल को रेस जितायी जाए। इससे पहले भी 2004
में सपा ने 80 में से 39 सीट हासिल की थी...जबकि 2009 में उसकी सीटों की संख्या
सिमटकर 23 हो गयी थी। लेकिन इस बार सपा की निगाहें कम से कम 60 सीटों पर है...ऐसे
में प्रदेश के करीब 16 लाख सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार के साथ ही सामान्य वर्ग
के दूसरे लोगों के वोट सपा की इस मंशा को साकार करने के करीब तो पहुंचा ही सकते
हैं...फिर भला सपा प्रमोशन में आरक्षण का विरोध क्यों न करे। उत्तर प्रदेश देश की
राजनीति में अहम भूमिका निभाता है क्योंकि सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश
में हैं...और इस प्रदेश में राजनीतिक दलों का प्रदर्शन उन्हें केन्द्र की सत्ता की
तरफ लेकर जाता है। ऐसे में केन्द्र की सत्ता में काबिज होने का ख्वाब देख रही
भाजपा भी शायद प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर अभी इसलिए खामोश बैठी है कि आखिर
किया क्या जाए। जाहिर है 2014 का आम चुनाव भाजपा के जेहन में है और इसी को ध्यान
में रखते हुए पार्टी इस मुद्दे पर कोई स्टैंड लेगी...जो कम से कम उसे फायदा न भी
पहुंचाए तो कम से कम नुकसान भी न पहुंचाए। अब कांग्रेस की अगर बात करें तो प्रमोशन
में आरक्षण पर केन्द्रीय कैबिनेट के फैसले ने जाहिर कर दिया है कि कांग्रेस देश
में ये संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस का हाथ दलितों के साथ है...इसी बहाने ही
सही दलित वोट बैंक के कुछ वोट छिटककर उसके पाले में आ जाएं...लेकिन 2004 लगातार
केन्द्र की सत्ता में काबिज कांग्रेस की हैट्रिक में ये दलित वोट के साथ ही
सामान्य वर्ग के वो वोट भी निर्णायक भूमिका में होंगे जिन्हें फिलहाल कांग्रेस
नाराज कर चुकी है। लेकिन देखने वाली बात भी होगी कि लोगों की नाराजगी क्या 2014 तक
बनी रहेगी क्योंकि हमारे देश के लोग चीजों को भूल बहुत जल्दी जाते हैं। बहरहाल ये
तय तो मतदाताओं ने ही करना है...जिसमें हर वर्ग के लोग हैं...कि 2014 के आम चुनाव
में प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा कितना हावी रहता है और ये राजनीतिक दलों के
प्रदर्शन पर कितना असर डाल पाता है। हम तो यही कहेंगे कि आरक्षण जैसे मुद्दों पर
तो कम से कम राजनीतिक दल वोटबैंक की राजनीति से बाज आएं...और जरूरतमंदों के साथ
न्याय हो...उनको उनका हक मिले...फिर चाहे वो किसी भी जाती या बिरादरी के क्यों न
हों। इस मौके पर बिल गेट्स की कही एक बात मुझे याद आती है...जो मैंने कहीं पढ़ी थी
कि …“अगर आप गरीब घर में पैदा होते हैं तो
इसमें आपका कोई कसूर नहीं है...लेकिन अगर आप गरीब ही मर जाते हैं तो इसमें पूरा
दोष सिर्फ और सिर्फ आपका ही है”…यानि की योग्यता लंबे समय तक दबी नहीं रह सकती...उसे कोई नहीं रोक
सकता...और योग्य व्यक्ति मुश्किल हालात औऱ विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी
योग्यता से हर वो मुकाम हासिल कर लेता है जिसे पाने की वो ठान लेता है।
deepaktiwari555@gmail.com
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