अंतर मंत्रालय समूह (आईएमजी) ने तीन दिन की बैठकों में 29 विवादित कोयला ब्लॉकों के आवंटन की समीक्षा कर ली है। आईएमजी को कल यह रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी। लेकिन कुछ तकनीकी वजहों से यह रिपोर्ट लंबित हो गई है। आईएमजी की एक और बैठक 12 सितंबर को होनी है। इसी के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। इस रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री कार्यालय 15 सितंबर तक फैसला ले लेगा। माना जा रहा है कि आईएमजी की सिफारिशों पर कई बड़े औद्योगिक घरानों की कंपनियों पर भी गाज गिर सकती है। इनका आवंटन रद्द करने की सिफारिश की जाने वाली है।
इस बीच कोयला प्रकरण की राजनीतिक गर्मी लगातार बढ़ती जा रही है। इस मामले को लेकर पूरा मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। अब एक-एक करके ऐसे तमाम खुलासे हो रहे हैं, जिनसे जानकारी मिल रही है कि किस तरह कई कंपनियों ने फर्जीवाड़ा करके आवंटन हासिल किया था। कई मामलों में यह भी खुलासा हो चुका है कि इस पूरे खेल में कैसे राजनीतिक गोटियां लाल की गई थीं? कई प्रभावशाली मंत्रियों और सांसदों ने अपने रुतबे के बल पर कोयला ब्लॉक अपने खास लोगों को आवंटित कराए थे। इस गोरखधंधे में अरबों रुपए का चूना सरकारी राजस्व को लग चुका है।
पिछले दिनों नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी। कोयला ब्लॉक आवंटन में 2006 से 2009 के बीच भारी गड़बड़ियां पाई गई हैं। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि तमाम गड़बड़ियों के चलते सरकारी राजस्व को करीब 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। कैग की इस रिपोर्ट के बाद राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। इसी के चलते विपक्ष ने संसद में कोई कामकाज नहीं होने दिया। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा का नेतृत्व इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का इस्तीफा मांगता आया है।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का कहना है कि उनकी पार्टी की यह मांग, हर मापदंड पर जायज है। क्योंकि 2006-09 तक कोयला मंत्रालय का प्रभार प्रधानमंत्री ही संभाल रहे थे। ऐसे में उन्हें नैतिक रूप से खुद इस्तीफा दे देना चाहिए। कैग ने तथ्यों के आधार पर बता दिया है कि यह अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। इसने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को भी बौना साबित कर दिया है।
भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर का दावा है कि उनकी पार्टी पूरे देश में इस प्रकरण पर तेज लोक अभियान चलाने जा रही है। उनकी मांग है कि केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय व केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री जगत रक्षकन इस्तीफा दें। क्योंकि कोयला प्रकरण में इन लोगों की भूमिका दागदार साबित हुई है। उल्लेखनीय है कि भाजपा के एक सांसद हंसराज अहीर ने केंद्रीय मंत्री जायसवाल पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका दावा है कि कोयला मंत्री ने अपने रुतबे के चलते नागपुर की एक कंपनी को अरबों रुपए का फायदा पहुंचाया है। क्योंकि इस कंपनी का प्रमोटर जायसवाल का रिश्तेदार है। इससे उनके कारोबारी रिश्ते भी हैं। इस कंपनी को 6 कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए थे।
सांसद अहीर के आरोपों को कोयला मंत्री ने बकवास करार किया है। कहा है कि यदि भाजपा सांसद के आरोप सही साबित हुए, तो वे राजनीति छोड़ने को तैयार हैं। उन्होंने सफाई दी है कि आरोपी मनोज जायसवाल से उनके, किसी तरह के नजदीकी रिश्ते नहीं है। इस मामले में उन्होंने भाजपा नेतृत्व को चुनौती दी है। इसके जबाव में सांसद अहीर ने कुछ ‘दस्तावेज’ जारी किए हैं। इन्हें जायसवाल के करीबी झूठ का पुलिंदा करार कर रहे हैं।
केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय ने 2007 में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर एक खास कंपनी को कोयला ब्लॉक आवंटित करने के लिए अनुरोध किया था। इस चिट्ठी के तुरंत बाद संबंधित कंपनी को कोयला ब्लॉक दे दिया गया था। सुबोधकांत ने जिस कंपनी के लिए सिफारिश की थी, उसमें उनका सगा भाई निदेशक पद पर था। पड़ताल के दौरान इस तथ्य का खुलासा हुआ है। इससे केंद्रीय मंत्री सहाय संदेह के घेरे में आ गए हैं।
कांग्रेस के उद्योगपति सांसद नवीन जिंदल भी कोयला ब्लॉक प्रकरण में विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं। मीडिया के एक हिस्से में खुलासा हुआ है कि कैसे जिंदल की कंपनियों ने कोयला ब्लॉकों के आवंटन से सबसे ज्यादा फायदा लूटा है? कैग ने भी जिंदल की कंपनियों पर शक की सुई घुमाई है। आरोप है कि इनकी कंपनियों ने बेहद सस्ती दरों पर कोयला ब्लॉक लेकर करीब 55 हजार करोड़ रुपए का लाभ कमाया है। यह जानकारी भी आई है कि एनडीए के शासन में भी, जिंदल की कंपनियों को कोयला ब्लॉक सस्ती दरों पर दिए गए थे। उस दौर के आवंटन में भी इनकी कंपनियों को करीब 7 हजार करोड़ रुपए का फायदा हुआ था।
पिछले दिनों जिंदल की कंपनियों को लेकर मीडिया में काफी चर्चा हुई है। खासतौर पर एक टीवी चैनल ने इनकी कंपनियों को लेकर कई खुलासे किए हैं। इससे सांसद नवीन जिंदल झल्ला गए हैं। कल एक कार्यक्रम में जिंदल से जी न्यूज के एक रिपोर्टर ने सवाल किया था, तो वे झल्ला गए थे। इसको लेकर दोनों के बीच कहासुनी हो गई थी। बाद में, इस मामले में कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने मीडिया से माफी भी मांगी। लेकिन जिंदल के मामले को लेकर जदयू के तेवर काफी आक्रामक हो गए हैं।
इस पार्टी के प्रमुख शरद यादव का कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व नवीन जिंदल को सस्पेंड कर दे। क्योंकि उनकी भूमिका शक के घेरे में है। जदयू प्रमुख ने केंद्रीय मंत्री जायसवाल, सहाय और जगत रक्षकन के इस्तीफों की मांग की है। उन्होंने कहा है कि भाजपा सहित, जिन दलों के मुख्यमंत्रियों ने कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए खास सिफारिशें की हैं, उन्हें भी जांच के दायरे में लाया जाए। ताकि पता चल सके कि किन लोगों की करतूतों के चलते कोयले से अरबों रुपए बनाए गए हैं? जदयू के महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि सभी विवादित 58 कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द कर देना चाहिए।
यूपीए सरकार की पहली पारी में लालू यादव की पार्टी राजद के नेता प्रेम गुप्ता भी केंद्र में कॉरपोरेट मामलों के राज्यमंत्री थे। इसी दौर में उन्होंने अपने बेटे की कंपनी के लिए लिखकर सिफारिश की थी। इसके चलते उनके बेटे को भी कोयला ब्लॉक मिल गया था। अब प्रेम गुप्ता की भूमिका पर भी सवाल उठा है। शरद यादव ने इस संदर्भ में कहा कि राजद को प्रेम गुप्ता के खिलाफ कदम उठाना चाहिए। वे इसकी मांग करते हैं। कोयला घोटाले के प्रकरण में कांग्रेस के सांसद विजय दर्डा और उनके भाई राजेंद्र दर्डा का नाम भी आया है। राजेंद्र महाराष्टÑ सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री हैं। यह खुलासा भी हुआ है कि दर्डा परिवार ने कोयला ब्लॉक मिलने के बाद अपनी कंपनियों के शेयर काफी महंगे करा दिए थे। इसके चलते इनकी कंपनियों को रातोंरात एक अरब रुपए का फायदा हो गया था। विपक्ष इन बातों को तूल दे रहा है। इससे राजेंद्र दर्डा पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ा है।
सूत्रों के अनुसार आईएमजी की रिपोर्ट मिलने के बाद ही इस संदर्भ में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी कोई फैसला करेंगी। लेकिन तीनों मंत्रियों के खिलाफ नेतृत्व फिलहाल कोई कदम नहीं उठाएगा। क्योंकि ऐसा कुछ किया गया, तो विपक्ष के हौसले और बढ़ जाएंगे। वैसे भी शुरुआती पड़ताल में मंत्रियों की भूमिका ज्यादा गंभीर साबित नहीं हो रही। क्योंकि महज सिफारिशी पत्रों के आधार पर किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता। सूत्रों के अनुसार आईएमजी करीब 20 कंपनियों के खिलाफ आवंटन रद्द करने की सिफारिश करने जा रही है। हालांकि निशाने पर आई कंपनियां अंतिम क्षणों तक अपने बचाव के प्रयास में जुट गई हैं। लेकिन सरकार कोयले की ‘कालिख’ पोंछने के लिए कुछ सख्त कदम उठाने की तैयारी में है। ताकि यही संदेश जाए कि मनमोहन सरकार किसी घोटालेबाज को बचाने के फेर में नहीं है।
साभारः वीरेंद्र सेंगर (डीएलए, कार्यकारी संपादक)।
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