नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र का आज अंतिम दिन है। कोयला घोटाले को लेकर इस सत्र में हंगामा ही होता रहा। एनडीए ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग को लेकर संसद का कामकाज नहीं होने दिया। आखिरी दौर में कांग्रेस नेतृत्व ने एक राजनीतिक दांव चला, लेकिन इस पैंतरे से उसके लिए नई राजनीतिक मुसीबतें पैदा हो गई हैं। बुधवार को सरकार की तरफ से दलितों और जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश कर दिया गया था। सरकार इसे सदन में पास कराना चाहती थी। ताकि दलित और जनजाति वोट बैंक में सकारात्मक संदेश जा सके। लेकिन सपा नेतृत्व ने अपने वोट बैंक के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए, इसका धुर विरोध कर डाला। इस पार्टी ने यही कहा कि प्रमोशन में आरक्षण का लाभ दलित वर्गों के साथ पिछड़े वर्गों को भी दिया जाए। जब तक सरकार ऐसा प्रस्ताव नहीं लाती, तब तक उनकी पार्टी मौजूदा विधेयक पर सदन में चर्चा भी नहीं होने देगी।
कल सरकार ने एक बार फिर राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा कराने का प्रयास किया था। लेकिन सपा और शिवसेना के सांसदों ने इतना हंगामा कर दिया कि सदन की कार्यवाही नहीं चल पाई। बुधवार को केंद्रीय राज्यमंत्री वी नारायण सामी ने सदन में विधेयक पेश किया था। कहा था कि दलित और वंचित वर्गों के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक इंसाफ के नाते जरूरी है। चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे आरक्षण की व्यवस्था पर रोक लगा दी है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि संविधान संशोधन का यह प्रस्ताव सभी दलों की सहमति से पास हो जाए। लेकिन सपा नेतृत्व ने पहले से ही विरोध की तैयारी कर ली थी। सपा के सांसद इस विधेयक को सदन में नहीं रखने देना चाहते थे। इस मुद्दे पर सपा और बसपा के सांसदों के बीच सदन के अंदर हाथापाई भी हो गई थी। संसद की यह घटना शर्मशार करने वाली थी। लेकिन इस धींगामुश्ती के लिए न सपा नेतृत्व ने अफसोस जताया और न ही बसपा नेतृत्व ने।
राज्यसभा में सपा के सांसद नरेश अग्रवाल और बसपा के सांसद अवतार सिंह करीमपुरी भिड़ गए थे। दोनों दलों में इन सांसदों को अपने-अपने नेताओं से शाबासी मिली है। कल जब इस मामले की चर्चा कराने की कोशिश एक बार फिर हुई, तो सपा और बसपा के सांसद भिड़ने की मुद्रा में तैयार दिखाई पड़े। सपा के साथ राज्यसभा में शिवसेना सांसदों ने भी सुर में सुर मिलाए। इस पार्टी के सांसदों का कहना है कि प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयक किसी तरह से जायज नहीं है। ऐसे में वे लोग संसद से सड़क तक इसका विरोध करेंगे।
हालांकि कांग्रेस ने अपने सांसदों को व्हिप जारी करके सदन में उपस्थित रहने के लिए निर्देश दिए थे। इसका एक राजनीतिक मकसद यह भी था कि यही संदेश जाए कि कांग्रेस नेतृत्व इस विधेयक को इसी सत्र में पास कराने के लिए गंभीर है। लेकिन विपक्ष की ही नीयत साफ नहीं है। संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल का कहना है कि इस मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की नीयत सही नहीं रही। वरना, इस सत्र में यह विधेयक पास हो जाता। बसपा सुप्रीमो मायावती इस विधेयक को जल्दी से जल्दी पास कराने की मांग करती आई हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा दोनों का रवैया दलित विरोध का रहा है। वरना, इस सत्र में यह विधेयक पारित होने में दिक्कत नहीं आती।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण की जारी व्यवस्था को संविधान की भावना के विपरीत बताते हुए, इसे रद्द कर दिया था। अदालत की इस पहल के बाद ही मांग होने लगी थी कि सरकार इस व्यवस्था को बहाल करने के लिए संविधान में संशोधन करा दे। ताकि अदालत के हस्तक्षेप की गुंजाइश खत्म हो जाए। बसपा प्रमुख मायावती ने मानसून सत्र शुरू होने के पहले ही संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने का दबाव बना दिया था। सत्र शुरू होने के पहले ही सरकार ने इस मामले में सर्वानुमति बनाने के लिए एक सर्वदलीय बैठक 21 अगस्त को बुलाई थी। लेकिन सपा नेतृत्व ने इस बैठक में संविधान संशोधन विधेयक के प्रस्ताव का विरोध कर दिया था। इस विरोध के बावजूद सरकार ने राज्यसभा में विधेयक पेश कर दिया है।
कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले को लेकर कई दिनों से राजनीतिक गतिरोध बरकरार है। संसद लगातार ठप रही है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस चर्चा से फोकस हटवाने के लिए आरक्षण मुद्दे को हथियार बनाने की कोशिश की थी। लेकिन इसमें भी नई राजनीतिक उलझनें पेश आने लगी हैं। क्योंकि सपा के बाद यूपीए के प्रमुख घटक द्रमुक ने हुंकार लगा दी है कि सरकार पिछड़े वर्गों के कर्मचारियों को भी प्रमोशन में आरक्षण का प्रस्ताव करे, यह बेहद जरूरी हो गया है। यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देने वाले राजद ने भी पिछड़े वर्गों को यह लाभ देने की बात कही है। इस दल के प्रमुख लालू यादव कहते हैं कि सामाजिक इंसाफ के लिए जरूरी हो गया है कि दलितों के साथ पिछड़े वर्गों को भी प्रमोशन में आरक्षण का लाभ मिले।
मुलायम सिंह यादव, एम. करुणानिधि और लालू यादव के इस ‘कोरस’ से एक नया राजनीतिक मुद्दा सिर उठा सकता है। लालू यादव का कहना है कि जो ताकतें दलितों और आदिवासियों के हितों के लिए चिंतित हैं, वे पिछड़े वर्गों के हितों के लिए कठोर क्यों बन रही हैं? जाहिर है कि पिछड़े वर्ग के लोग ठीक से पहचान कर लेंगे कि कौन-सी राजनीतिक ताकतें उनके हितों के खिलाफ कुठाराघात कर रही हैं? द्रमुक सुप्रीमो एम. करुणानिधि ने भी कहा है कि उनकी पार्टी दलितों और आदिवासियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के खिलाफ नहीं है। वे सिर्फ इतना चाहते हैं कि इस प्रस्ताव में पिछड़े वर्गों को भी जरूर जोड़ लिया जाए। इस दल के एक वरिष्ठ सांसद ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि वे लोग इस मुद्दे पर मुलायम सिंह के स्टैंड को एकदम जायज मानते हैं। जरूरत पड़ने पर अपनी यूपीए सरकार पर इसके लिए राजनीतिक दबाव भी बढ़ाएंगे।
प्रमोशन में आरक्षण के इस मुद्दे में जिस तरह से पिछड़े वर्ग का राजनीतिक पुछल्ला जुड़ गया है, उससे कांग्रेस का नेतृत्व खासा चिंतित बताया जा रहा है। उसकी चिंता यह है कि कहीं अगले लोकसभा चुनाव में मुलायम जैसे पिछड़े वर्गों के चैंपियन नेता इस मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक हथियार न बना लें? सरकार के सामने मुश्किल यह है कि वह इस दौर में दलितों के साथ पिछड़े वर्गों को यह लाभ देने का प्रस्ताव नहीं करा सकती है। क्योंकि इसके भी बड़े राजनीतिक और कानूनी जोखिम हो सकते हैं। लेकिन लालू, मुलायम और करुणानिधि जैसे क्षत्रपों को यह नया चुनावी हथियार मिल गया है। यह अभी से कांग्रेस नेतृत्व को डराने लगा है। क्योंकि कई राज्यों में इसके चलते कांग्रेस को बड़ी राजनीतिक चुनौती मिल सकती है।
12-13 सितंबर को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कोलकाता में होने जा रही है। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में मुलायम सिंह अपने लोगों से इस मुद्दे पर भी मंत्रणा करेंगे। सपा के रणनीतिकार मान रहे हैं कि प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे का विरोध करके उन्होंने गैर-दलितों की सहानुभूति बटोर ली है। अगले चुनाव में पिछड़े वर्गों और सवर्णों का राजनीतिक गठजोड़ सपा को भारी सफलता दिला सकता है। इस संदर्भ में पुख्ता रणनीति बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
जाहिर तौर पर अब यह लंबित विधेयक सरकार शीतकालीन सत्र में लाना चाहेगी। इसके पहले ही गुजरात और हिमाचल में विधानसभा के चुनाव हो जाएंगे। इन चुनावों में कांग्रेस को दलित वोट बैंक का साथ जरूर मिल जाए, शायद इसीलिए नेतृत्व ने इस विधेयक को पास कराने के लिए काफी तेज कवायद कर डाली है। ताकि दलित वर्ग में सही संदेश जाए। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह का कहना है कि सरकार जल्दबाजी में यह विधेयक राजनीतिक कारणों से ही लाई है। इसमें संविधान और सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं की भी परवाह नहीं की गई है। इस लिहाज से सरकार का यह प्रस्ताव बहुत शुभ नहीं कहा जा सकता।
यह अलग बात है कि भाजपा नेतृत्व ने इस मुद्दे पर अभी तक खुलकर अपनी राय नहीं रखी। यही कहा है कि पहले सरकार कोयला घोटाले का हिसाब दे, इसके बाद ही दूसरे मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। इस तरह से राजनीतिक समीक्षकों की नजर में सरकार का आरक्षण दांव भी राजनीतिक रूप से बहुत कारगर नहीं माना जा रहा है। इसमें एक नई उलझन यह हो गई है कि कांग्रेस के पिछड़े वर्ग के सांसद भी अनौपचारिक रूप से मुलायम को शाबासी देने लगे हैं। वे यह वादा भी कर रहे हैं कि इस मुद्दे पर वे पार्टी के अंदर दबाव बढ़ाएंगे। इस राजनीतिक घटनाक्रम से फिलहाल सपा सुप्रीमो खासे उत्साहित दिखाई पड़ने लगे हैं।
वीरेंद्र सेंगर (डीएलए)।
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