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7.9.12

मायावती, आरक्षण और वोटबैंक !




जिस जनता का भरोसा जीतकर आप सत्ता में काबिज होते हैं...अगर वही जनता आपको नकार दे तो दिल पर क्या गुजरती है...ये सत्ता से बेदखल होने वाले राजनेताओं से बेहतर कौन समझ सकता है। हालांकि राजनीतिक दलों और इसके शिकार राजनेताओं की फेरहिस्त काफी लंबी है...लेकिन कुछ एक नाम ऐसे होते हैं...जो हर वक्त जुबान पर रहते हैं...ऐसा ही एक नाम है बसपा सुप्रीमो मायावती का...देश की राजनीति की दशा दिशा तय करने वाले सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में जिस अंदाज में मायावती ने 2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पटखनी देकर सत्ता में वापसी की थी...उसे शायद ही कोई भूला होगा...लेकिन 2012 के चुनाव में जनता ने माया को दिखा दिया कि उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने पर...उनसे किए वादे पूरा न करने पर वो आपको सत्ता से बेदखल भी कर सकती है। खैर जनता ने अपनी ताकत का एहसास मायावती को करा दिया...जिसका नतीजा ये रहा कि 2007 में 206 सीटें जीतने वाली बसपा 2012 में 79 सीटों पर ही सिमट के रह गयी। अपने पारंपरिक वोट बैंक का विश्वास खो चुकी मायावती ने एक बार फिर से मिशन 2014 के तहत नयी रणनीति के तहत उन्हें साधने का काम शुरू कर दिया है...औऱ इस बार मायावती का हथियार बन रहा है प्रमोशन में आरक्षण। इसके लिए माया ने राज्यसभा में आवाज भी बुलंद की औऱ आखिर केन्द्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक में आम राय न बनने के बाद भी प्रमोशन में आरक्षण बिल को केन्द्रीय कैबिनेट में मंजूरी दे दी। केन्द्रीय कैबिनेट में बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी क्या मिली मायावती की बांछे खिल गयी...और माया को लगने लगा कि प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संविधान संशोधन विधेयक संसद में पारित हो जाएगा तो शायद इस का ढिंढोरा पीटकर कम से कम 2014 के आम चुनाव में अपने पारंपरिक वोट बैंक को साधने का बढिया मौका मिल जाएगा। ये बिल संसद में पास हो जाए इसके लिए मायावती ने बकायदा कोयला घोटाले पर सदन में हंगामा मचा रही भाजपा नेताओं से मुलाकात कर उनसे बिल पास होने तक हंगामा न मचाने की भी अपील की...लेकिन माया की इस अपील का भाजपा पर कोई असर नहीं हुआ। जैसे ही राज्यसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश हुआ वही हुआ जिसका कि अंदेशा था...और हंगामे के बीच बिल का विरोध कर रही सपा सांसद नरेश अग्रवाल और बसपा सांसद अवतार सिंह भिड गए...लिहाजा सदन की कार्यवाही स्थगित हो गयी। बिल को लेकर माया की चिंता इस बात से और ज्यादा जाहिर हो गयी जब सत्र खत्म होने से एक दिन पहले मायावती बिल पास न होने पर भाजपा और कांग्रेस दोनों को कोसती हैं...और मायावती को अचानक संसद का हंगामा और कोयला घोटाला याद आ जाता है...जो माया को बीते 10 दिनों में याद नहीं आया और न ही उस पर मायावती कोई प्रतिक्रिया आयी...लेकिन जब संविधान संशोधन बिल इसके चलते हो रहे हंगामे में फंस गया तो मायावती को हंगामा औऱ कोयला घोटाला दोनों नजर आने लगता है और माया हंगामा करने वाली भाजपा के साथ ही सरकार को भी कोसना नहीं भूली। बहुत साफ है कि मायावती का सिर्फ एक ही एजेंडा है कि किसी तरह बस प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पास हो जाए...ताकि मिशन 2014 के लिए माया अपनी झोली में इसका श्रेय डालकर एक बार फिर से मतदाताओं को लुभाने की तैयारी कर लें। हालांकि माया ने अभी भी हार नहीं मानी है...और इस बिल के लिए बकायदा मानसून सत्र का समय बढ़ाने या फिर इसके लिए विशेष सत्र की मांग भी माया ने कर डाली है...लेकिन देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य को देखते हुए तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि मायावती की मंशा फिलहाल बहुत जल्द पूरी होने के कोई आसार बन रहे हैं। बहरहाल मायावती भले ही इसके पीछे वर्ग विशेष के पिछडेपन का हवाला देते हुए उनके उत्थान और विकास का तर्क दे रही हों...लेकिन ये माया भी अच्छी तरह जानती हैं कि उनके बगैर वो भी कुछ नहीं है...लिहाजा आवाज तो बुलंद करनी ही होगी...क्या पता इसका इसी बहाने इसका फल इससे लाभांवित होने वाले वर्ग विशेष माया को 2014 के आम चुनाव में दे दे। जो शायद उत्तर प्रदेश विधानसभा में करारी मात के माया के जख्मों को भी कुछ हद तक भरने में सफल हो जाए। खैर माया की मंशा कब पूरी होती है...या कहें कि होती भी है कि नहीं..ये तो भविष्य के गर्भ में है...लेकिन माया ने दिखा दिया कि अपने वोटबैंक को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है...कैसे साधा जा सकता है। माया तो सिर्फ एक उदाहरण हैं...वोटबैंक की राजनीति के चलते अपने फायदे के लिए अजब – गजब कारनामे और किसी भी हद तक जाने वाले तो इतिहास के पन्नों में भी हमें कई मिल जाएंगे...लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि हमारे देश की जनता की याददाश्त बहुत कमजोर है...वो चीजों को जल्दी और आसानी से भूल जाते हैं...या यूं कहें कि याद ही नहीं रखना चाहती।  

deepaktiwari555@gmail.com

1 comment:

पूरण खण्डेलवाल said...

कब तक वोटों के लालच में नेता ऐसे खेल खेलते रहेंगे !!