कुछ लोगो को दुनिया मे सबसे ज़रूरी यदि कुछ लगता है तो वो है जुगाड़ ... ये ऐसे लोग हैं जो अपने गुर्दे के बूते कुछ कर पाने की हिम्मत नही रखते ... इन्हे कोई भी काम हो, सबसे पहले जुगाड़ ही ढूंढ़ते हैं...और मजे की बात तो ये है कि इसके लिए ये हर ऐरे गैरे से दोस्ती-व्यवहार बनाने को भी तैयार रहते हैं ...और इसका जरिया बनाते हैं ई मेल और मोबाइल मैसेज को...कुछ होनहार ऑरकुट के स्क्रैप की भी मदद ले लेते हैं... ये ज्ञान मैं इसलिए बघार रहा हूँ क्योंकि एक पुरानी जान-पहचान वाले भाईसाहब आजकल अचानक मुझे ई मेल भेजने लगे हैं...उन्हें ऐसा लगता है कि मेरे जर्नलिस्ट होने को शायद वे भी कभी कैश करा सकेंगे... भगवान् जाने हमारे जैसे दो कौडी के जर्नलिस्ट उनके क्या काम आयेंगे...फ़िर भी वे लगे हुए है...रोज एक-दो ई मेल भेज ही देते हैं ...ये वही महानुभाव हैं जिनके पास मैं तीन साल पहले किसी काम के लिए मदद मांगने गया था और इन्होने अपने नौकर से कहलवा दिया था कि 'साहब घर पे नही हैं'...ये उस समय की बात है जब मैं ख़ुद को कुछ बनाने की जद्दोजहद मे लगा हुआ था... मेरा तो मन करता है कि उन्हें एक जवाबी ई मेल करू और उसमे ज़माने भर की गालियाँ लिख के भेजूं ...लेकिन ऐसा करना मुमकिन नही क्योकि वो मेरे कुछ अच्छे दोस्तों के दोस्त हैं... यही वजह है कि अपनी भड़ास यहाँ निकाल रहा हूँ...काश वो मेरे ई मेल के साथ-साथ इस ब्लॉग का पता भी जानते होते...
22.8.08
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