जिस दिन ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखी थी उसी दिन लगभग सारे दोस्तों को पैसे खर्च करके संदेश भेजा था। सब से कहा था की समय निकाल कर ब्लॉग को एक बार देख जरुर लें। लेकिन वही बात के सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता। एक दो को रहने दूँ तो शायद ही कोई आया हो। आज एक बार फ़िर से पैसा खर्च करके मसेज किया है। आज कुछ लोगों के लिये वेद वाक्यों का भी प्रयोग किया है। हालाँकि जनता हूँ की उन्हें बुरा नहीं लगेगा। और अगर लगेगा भी तो जो बन पड़े कर लें।
उम्मीद करता हूँ की जिन महानुभाबों को आज मसेज किया है वे एक दो दिन में जरूर ब्लॉग देखेंगे। एक बात और बता दूँ की ब्लॉग पर आने वाले हर व्यक्ति को अपना कमेन्ट देना जरुरी है।
30.8.08
आइये साहब
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4 comments:
भाई,एक आप हैं कि खुद ही कमेंट के लिये लोगों को घुड़का रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमारे एक भाई हैं जिनकी पोस्ट पर मै कमेंट कर देता हूं तो रिसिया जाते हैं। सच तो यह है कि जो भी कमेंट करता है वह आपकी पोस्ट को पढ़ता है नजरअन्दाज कर के अपनी नहीं चलाये रहता इसलिये आलोचना हो या प्रशंसा उसे हमें स्वीकार कर धन्यवाद करना चाहिये कि कम से कम पढ़ा तो... क्या आपको इस बात का बुरा लगा??? मेरा काम है कंटेंट पर नजर रखना तो मैं तो पढ़ूंगा ही और मन में आया तो कमेंट भी करूंगा अगर बुरा लगे तो आप खुद ही मेरा कमेंट अपनी पोस्ट से हटा सकते हैं। वैसे हमारे रजनीश भाई भी हर बात पर बारीक नजर रखते हैं उनकी नजर से कुछ भी नहीं चूक सकता।
इसी आशा से की आपकी एक कमेन्ट को निश्चित ही रुपेश जी की दृष्टि मिली है, देखा तो रुपेश भाई ही विराजमान हैं. मुझे लग रहा था कि रुपेश भाई यहाँ भी मुझे नहीं छोडेंगे और हुआ भी वही. आप निश्चिंत रहिये कोई आपको टिप्पणी दे या न दे पर रुपेश भाई जरूर देंगे. ये उनकी विशेषता है और इसी विशेषता के कारण वे लोकप्रिय भी हैं (अब इसे रुपेश जी नहीं मानेंगे) हमारे लिए तो लोकप्रिय हैं कम से कम उनकी टिप्पणी के सहारे ही कुछ न कुछ लिख देते हैं. लिखे रहिये और रुपेश जी की टिप्पणी लेते रहिये.
सेंगर भाई,डा.रूपेश आपको ही क्या किसी को नहीं छोड़ते बल्कि सबको पकड़ कर दिल से लगाए रहते हैं और इसी कारण आप जिस बात को लोकप्रियता कह रहे हैं उसे कुछ लोग कुख्याति कहते हैं। किंतु इस बात का भड़ासी कभी बुरा नहीं मानते हैं निंदा, आलोचना,गरिआया जाना भी भड़ास पर आभूषण की तरह स्वीकार लिया जाता है। सच तो यह है कि इसी पोस्ट्स लिखने और टिप्पणियां लिखने के बहाने से यशवंत दादा और डाक्टर भाई ने वेब स्पेस में इतनी हिंदी भर दी है कि गूगल से लेकर याहू तक के रोबोट भी हिंदी सीख गये हैं। ये सब इन लोगों ने करा है हिंदी की सेवा, प्रचार-प्रसार व पोषण के लिये......
जय भड़ास
मित्रवर
हिन्दी जिसकी सिर्फ़ भाषा नही अपितु माँ है, हिन्दी के लिए जिसने बड़े बड़े ऑफर ठुकरा दिए वोह हिन्दी अखबार में लाला जी के दलाल नही डॉक्टर रुपेश है, तड़पती तरसती हिन्दी, अपने स्वाभिमान के लिए लड़ती हिन्दी अगर इस जगह पर पहुँच गयी है तो निसंदेह इसके जिम्मेदार भी हिन्दी के वे पत्रकार ही हैं जिन्हें लाला जी को तेल लगाने से कोई गुरेज नही है, भले ही हिन्दी पत्रकारिते तेल लेने चली जाय
रही बात आप के पोस्ट पर कमेन्ट की तो ये चिंता का विषय नही क्यूंकि अगर लोगों ने आपको पढ़ा तो वो ही आपके लिए प्रसाद है और हमारे संरक्षक लोगों को गले लगाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं मगर उनको जिन्हें दुनिया ठुकराती है आखिर इन्हें छपास रोग जो नही लगा है,
आप अपने विचार को लोगों के आगे परोसिये क्यूंकि आप सिर्फ़ परोसने के हकदार हैं बाकी का काम लोगों पर छोरिये.
जय जय भड़ास
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