कितने धर्मनिरपेक्ष हैं हमारे नेता इसका अंदाजा कुछ नीचे लिखे तथ्यों से हो जाएगा :- १. आज तक जम्मू कश्मीर के लिए अलग से क़ानून बनाये जाते हैं, प्रत्येक एक्ट में लिखा होता है, पूरे भारत में लागू जम्मू कश्मीर को छोड़ कर. २-मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष रूप से उनका पर्सनल क़ानून लागू होता है बाकी बहुसंख्यकों के लिए उनके अपने धर्म से सम्बंधित कानूनों की जगह देश की सामान्य संहिता लागू होती है. ३-चुनावों में स्पष्ट देखा जा सकता है कि टिकट जाति और धर्म के अनुसार अधिक संख्या वाली बिरादरी के व्यक्ति को दिया जाता है. ५-जम्मू कश्मीर में लाखों हिन्दुओं को अपना घर-परिवार छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह रहना पड़ा, उनकी सुधि आज तक किसी धर्मनिरपेक्व्यक्ति ने नहीं ली, केवल जबानी जमा-खर्च ही किया जाता रहा. ६-देश में हज हाउस बनने पर कहीं कोई आपत्ति नहीं होती लेकिन अमरनाथ यात्रा हेतु थोडी जमीन लीज़ पर देने पर इतना बड़ा बवाल, गोया कि विदेशियों को जमीन दे दी गई हो. ६- शाहबानो को गुजारा भत्ता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संविधान में संशोधन किया गया. ७-जम्मू कश्मीर में दो विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई जिनका मुख्य कर्ता-धर्ता राज्य का मुख्यमंत्री होगा, लेकिन यदि गलती से मुख्यमंत्री कोई हिन्दू बन गया तो इनका प्रधान कोई मुस्लिम होगा. ८-मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति के लिए सच्चर आयोग की स्थापना की गई जैसे कि और किसी धर्म में गरीब होते ही नही. यहाँ यह लिखना उचित होगा कि मुस्लिमों में स्वरोजगार करने वालों की दर अन्य किसी भी धर्म वालों से ज्यादा है. ९-आतंकवाद विरोधी कानून बनाने को लेकर यूँ दर्शाया गया जैसे कि सारे मुस्लिमों को जेल में डाल दिया जायेगा, एक कारण यह भी गिनाया जाता है कि पोटा होने के बाद भी संसद पर हमला हुआ, लेकिन सेना के रहते भी भारत पर कई बार युद्ध थोपा गया इसलिए क्या सेना को ख़त्म कर दिया जाए?१०-मन्दिर में जाना पाखंड, साम्प्रदायिकता और मजारों पर जाना धर्मनिरपेक्षता!११.धार्मिक आधार पर आरक्षण.१२-कुतर्कों द्वारा सिमी जैसी संस्थाओं का समर्थन.शायद ये लोग इतनी मामूली समझ भी नहीं रखते कि किसी भी बच्चे को माँ-बाप चुनने का अधिकार नहीं होता, उसका वही धर्म-जाति हो जाता है जो उसके माँ-बाप का होता है, यदि इतनी सी समझ हम लोगों में आ जाए तो शायद यह जाति धर्म के झगडे स्वत: ही बंद हो जायेंगे और शायद इन की दुकाने भी।
9.8.08
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2 comments:
भाई आम आदमी,
आपके इस लेख से प्रतीत होता है की आप मुस्लिम समुदाय से कुछ ज्यादा ही आहत हैं और यही आपकी धर्म निरपेक्षता को बता जाती है, अगर इसमे आप गोधरा, पादरी की ह्त्या,हाल में कावारिया का कोहराम को भी शामिल करते तो ये यथोचित बन पड़ता.
जय जय भड़ास
ek sengar ka blog bhadas par "HINDUO TUM VIVAD PAIDA KARTE HO" title se chhapa hai. kripya use jaroor parhe aur apne comments jaroor likhe mere comments neeche hai-
isse farak nahi padta ki tum sengar ho pensar ho ya jo bhi ho kam se kam santulit insaan nahi ho. ya yeh identity fake hai. kisi samasya par likhne se pahle agar us vishay ki jaankari kar li jaye to behtar hota hai. sabse pahle bharat ka madhyakaaleen itihaas parh lo ki tum jin vivadit sthano ki baat kar rahe ho unhe vivadit kisne banaya? tumhaari baat moorkhta se aarambh ho kar maansik deevaliyepan par samapt hoti hai. hinduo ko doshi tahrane ka adhikaar tumko tab hota agar poorva me kabhi bhi hindu apna desh chhod kar doosre desho me dharma prasar ke liye gaye hote ya doosre kisi bhi desh me jaakar ladai ladte waha sthit doosro ke dharm sthalo ko todte/apmanit karte. abhi tak vo apne hi desh me videshi aakramankaariyo ke atyacharo ko sahte rahe aur tum unko hi vivad paida karne vala bata rahe ho. tumhari mansikta yeh batati hai ki agar kal ko lutere tumhare ghar me ghus kar kabja kar le, poorvjo ke chitra tod kar phenk de, mahilayo ke saath ........... kare to tum shanti ke maseeha ban kar unki aav bhagat karte rahoge aur agar galti se tumhare ghar ke kisi samajhdar aadmi ne iska virodh kiya to tum apne ghar ke us aadmi ko jaroor daantoge ki paagal ghar me kitni shanti hai kyo vivad paida kar rahe ho.
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