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11.8.08

अब हम भी सुधर जाएं

मै जिस दौरान हिंदी साहित्य से एम.ए. कर रहा था. तब एक सिधांत पढ़ा था विरेचन सिधांत. उसी सिधांत की तर्ज़ पर हम सब अब तक अपने पेट बनाम मन का विरेचन भड़ास पर करते आ रहे है, लेकिन क्या हमारे मन में सिर्फ़ गन्दगी ही भरी है जो हर बार पोस्टिंग में हम सिर्फ़ और सिर्फ़ गलियों का सहारा लेकर अपने मन और विचारों का विरेचन कर रहे हैं. एक बार हुआ ,दो बार हुआ पर ये सिलसिला तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा. भड़ास पर हम जिन गलियों का प्रयोग पोस्टिंग में कर रहे हैं कहीं उन का उद्देश्य महिलाओं के जननांगों से लोगों को वाकिफ़ करना तो नहीं ? हमारे कुछ भड़ासी बंधु तो अपनी गलियों में उन जननांगों के उपयोग और दुरपयोग की जानकारी भी दे डालते हैं . कई दिनों से भड़ासियों की भड़ास देखकर अपनी भड़ास को नियंत्रित नहीं कर सका सो आज कह रहा हूँ. इसे प्रवचन या सलाह न मान कर मेरी जिम्मेदारी की भावना मान सकते हैं या मेरी भड़ास. हम अब तो सुधर जाएँ...

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