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15.6.09

दलितों के मसीहा की पुत्री अपने ही गाँव में दलितों की विलेन.
दलितों के मसीहा कहे जाने वाले जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार का नाम उस दिन इतिहास में अमर हो गया जिस दिन उन्होंने लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष के रूप पदभार ग्रहण किया। दलित वर्ग ( मीरा के पैट्रिक गाँव चंदवा के दलितों को छोड़कर) के साथ यह बिहार के लिए भी गौरव की बात है।मीरा कुमार बिहार के सासाराम से जहाँ संसद है, वही उनका पैट्रिक गाँव भोजपुर(आरा) जिला मुख्यालय के समीप स्थित चंदवा है।बिहार ने यूँ तो पहले रास्त्रपति के रूप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को दिया, तो पहले विपक्ष के नेता के रूप में राम सुभग सिंह को दिया, तो वही पहले उप प्रधानमंत्री के रूप में बाबु जगजीवन राम का नाम अमर है। अब उस amaratv को मीरा ने भी लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनकर प्राप्त कर लिया है।१९७३ में आई ऍफ़ एस ज्वाइन कर स्पेन यूके , और मोरिशस दूतावासों में तैनात रही मीरा का राजनैतिक कैरियर १९८५ से शुरू हुआ जब वे बिजनौर से पहली बार लोस के लिए चुनी गई। उस दौरान उन्होने वेतमान के दलितों के दिग्गज नेताओं पासवान और मायावती को हराया था।विगत दो चुनावों में सासाराम से jitati आई मीरा इस बार सोनिया और rahul गाँधी के durdristi के karan लोस की spikar बन गई।अब ये बता दे की वे कैसे अपने ही गाँव में विलेन हैं। कहा jata है की जब ख़ुद के खाने का न हो तो आप dusro के पेट भरने की बात नही कर सकते..........tatparya ये की जब मीरा ख़ुद अपने गाँव के dalitn का vikaas न कर सकी तो वे दुसरे दलितों का क्या vikaas करेंगी। pure देश के दलितों की नजर दलितों के मसीहा की पुत्री पर है, पर वे अपने ristedaaron का jiwanstar नही sudhaar सकी तो अन्य दलितों की क्या sudharengi।चंदवा से babuji को बहुत प्यार था, इसकी mitti में khelkar कर बड़े हुए और देश की rajniti में दलितों के मसीहा के रूप में ख़ुद को sthapit किए। गाँव के भी vikaas में वे सतत sakriy रहे, परन्तु उनकी पुत्री मीरा इससे ittefak नही रखती और अपने गाँव के दलितों के vikaas की जगह apn niji swarthyon को पुरा करने में juti हैं।जब भी चंदवा में उनके ristedaar उनसे मिलकर अपनी samasya को dur करने की बात कहते हैं तो unhe कभी सही जवाब नही मिलता , ulte unhe दांत khani पड़ती है।munga devi और chando devi जगजीवन राम की riste में बहु lagengi....दोनों ने ने बताया की आज भी हम tuti futi jhopdi में रहते है dhang से दो jun खाने को नही मिलता । जब भी अपना दुःख सुनाने गए तो सिर्फ़ fatkaar ही मिला । chandwa के लोगों से puchhe जाने पर की क्या मीरा के spikar banne से आप लोग खुश है, इसके जवाब में उन्होंने कहा की जब वे hame दुखी देखना chati है, हमारा jiwanstar sudharna नही chahti तो हम उनके saflata से कैसे खुश होंगे? वे bhale ही pure देश में दलित netri के rup में अपनी pahchan बनाये परन्तु हमारी najron में वे विलेन से कम नही।ऐसे में तो b यही कहा जा सकता है की वे दलितों का hit नहीं chahti बल्कि विरासत में मिली raajniti से अपना hit sadhna chahti है।

1 comment:

नवीन कुमार 'रणवीर' said...

लेखक कौन है मैं नहीं जानता। पर इस लेख में जो लिखा है वो कई नेताओं के बारे में सही कहलाता है। आप ये कैसे कह सकते हैं कि कोई नेता जहां वो रहता है या जहां से वो चुनाव लड़ता है उन दोनों जगहों के विकास की जिम्मेदारी या जवाबदेही उनकी बनती हैं?दो बार मीरा कुमार दिल्ली के करोल बाग से भी चुनाव लड़ी हैं और 10 साल से सिटिंग एमपी कालका दास को हराया था,और वे कितना काम करवाती थी ये भी मैं भली-भांति जानता हूं। कांग्रेस सांसद सचिन पायलेट अपनी पिता की कुर्सी पर आसीन हैं, उनके पिता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जर है और वे चुनाव लड़ते थे दौसा से तो क्या उन्होंनें यू.पी और राजस्थान दोनों राज्यों के गुर्जरों के हितों के लिए ही काम किया? ये जो शब्दकोश है ना कि दलित महिला स्पीकर औऱ दलित नेत्री ये राजनितिक दलों की देन है मुखौटे बनानें के लिए।
आप मेरे ब्लॉग पर दलित महिला स्पीकर!पोस्ट जरूर पढ़े।