दिनांक १९ जून २००९ को दैनिक भास्कर के मध्य प्रदेश के स्टेट एडिटर अभिलाष खांडेकर बुधवार रात एक मुंबई की महिला के साथ हुए गैंग रेप की घटना से काफी आहात हुए। हो भी क्यूँ नही...अपने राज्य के लोगों के साथ किसीका भी अनुराग हो जाता है। उन्होंने अपने अखबार में एक विशेष टिपण्णी लिख डाली। टिपण्णी भी ऐसी की उसमे वे यह भूल गए की इस से किसी अन्य राज्य के लोगो की भावनाए आहात हो सकती है। उन्होंने अपने इस विशेष टिपण्णी में भोपाल में बिगड़ते कानून व्यवस्था को लेकर न सिर्फ़ राज्य सरकार पर कल्कि पुलिस प्रशाशन की कपर भी ऊँगली उठाई। लेकिन इस दौरान वे भोपाल की तुलना बिहार से कर बैठे। उन्होंने लिखा है की भोपाल में इन दिनों जिस तरह से अपराधिक घटनाये घटित हो रही है, उससे ऐसा प्रतीत होता है की हम बिहार के किसी शहर में रह रहे है। उनके कहने का सीधा तात्पर्य यह है की बिहार में कानून व्यवस्था अनियंत्रित है और वहां अराजकता का माहौल है। लोग वहां एक मिनट के लिए भी सुरक्षित नहीं है। लेकिन मैं माननीय स्टेट एडिटर साहब को बताकी मराठी मानुष के प्रति अनुराग के चलते आपने बिहारियों के प्रति इतनी तल्ख़ टिपण्णी करने के पहले जरा सा भी विचार करना उचित नहीं समझा। न ही किसी कानून व्यवस्था का पर ही एक नज़र डाली। मैं उनको बता देना चाहता हूँ की पाँच साल पूर्व जो बिहार की स्थिति थी, आज हालात उसके बिल्कुल विपरीत हैं। आज बिहार में न सिर्फ़ कानून व्यवस्था बहाल है, बल्कि पुलिस प्रशासन में भी लोगों की आस्था जुड़ने लगी है। अब यदि अपराधों और बेलगाम कानून व्यवस्था का तुलनात्मक विश्लेषण करें तो भारतीय अपराध अन्वेषण ब्यूरो की २००८ के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश अपराधों के मामलों में पुरे देश में नम्बर एक है। इस सूची में बिहार पांचवे स्थान पर है। फ़िर भी खांडेकर जी को भोपाल की तुलना बिहार से करते हुए लज्जा नहीं आई। शायद खांडेकर जी को मालूम नहीं की बिहार में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता क्यूंकि उनमे परिस्थितियों से लड़ने और जीतने का जज्बा मौजूद है। अब बिहार में अपहरण और लूट जैसी घटनाओं में भी अपेक्षाकृत कमी आई है। अब बिहार में विकास दिखने लगा है। अब बिहार में बौद्धिक और आर्थिक तौर पर भी आत्मनिर्भर बन्ने की कोशिश करने लगा है। तभी विपक्षी पार्टी के नेता और कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी ने भी वहां के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की प्रशंशा की है।
खांडेकर जी ने अपनी टिपण्णी में यह भी लिखा है की भोपाल में बहरी लोगों की जनसँख्या बढती जा रही है। खासकर कॉलेज छात्रों की। इससे वह क्या साबित करना चाह रहे है की यदि बिहारी छात्र लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपनी प्रतिभा के दम पर कहीं विद्यार्जन के लिए जाता है तो वहां अराजकता का माहौल पनपने लगता है। क्या बिहार के लोग दूसरे राज्यों में अपराध को बढ़ावा देने के लिए जाते हैं। क्या खांडेकर जी स्वयं अपने राज्य से दूर किसी अन्य राज्य में अपना जीविकोपार्जन नहीं कर रहे है? ऐसे में उन्हें अन्य राज्यों से आकार भोरने वाले लोगों पर टिपण्णी करने का क्या अधिकार है? लगता है खांडेकर जी का मराठा प्रेम उमड़ने लगा है और उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता भी इससे प्रभावित होने लगी है। लगता है जी अब राज ठाकरे की भाषा बोलने लगे है। एक पत्रकार को राजनेता की भाषा बोलने से बचना चाहिए। तभी पत्रकारिता की गरिमा बची रह सकती है। साथ ही बिहारियों की भावनाओं को ठेस पहुँचने के लिए उन्हें सार्वजानिक तौर पर माफ़ी मांगनी चाहिए।
2 comments:
अब समय की मांग है कि इस मुद्दे पर सही से सोचा जाए, आख़िर कब तक हम ऐसे विभाजनकारी लोगो के विचारों का सामना करते रहेंगे। हमें ख़ुद के गिरेबां में तो झंकने की ज़रूरत तो है ही, साथ ही ऐसे लोगों की मुख़ालफ़त भी करना चाहिए जो जोड़ने की जगह तोड़ने का काम करते हैं..........
अब समय की मांग है कि इस मुद्दे पर सही से सोचा जाए, आख़िर कब तक हम ऐसे विभाजनकारी लोगो के विचारों का सामना करते रहेंगे। हमें ख़ुद के गिरेबां में तो झंकने की ज़रूरत तो है ही, साथ ही ऐसे लोगों की मुख़ालफ़त भी करना चाहिए जो जोड़ने की जगह तोड़ने का काम करते हैं..........
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