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2.7.09

''निशंक’’ के कंधे पर जनरल की बंन्दूक



राजेन्द्र जोशी
निशंक के कंधे पर जनरल की बंन्दूक, उत्तराखण्ड की राजनीति में आज यही हो रहा है ऐसा सियासतदां मानते हैं। राजनीति के बुझक्कड़ों की मानें तो भुवन चन्द्र खंडूड़ी की राजनीतिक कौशल का भी जवाब नहीं है। उनके करीबी बताते हैं कि वे राजनीतिक प्रतिशोध के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कुछ महीनों पहले तक राज्य के मुखिया की दौड़ में शामिल कभी खंण्डूड़ी विरोधी व कभी उनके संकटमोचक रहे निशंक को अब खण्डूड़ी ने विरोधियों को पस्त करने की रणनीति के तहत अपनी विरासत सौंप दी है। जिसे कर्ही जाति तो कहीं क्षेत्र के चश्में से देखा जा रहा है। निशंक भी जनरल की शान में फिलहाल जमकर कसीदे पढ़ रहे हैं। जिसका भरपूर लाभ खंण्डूड़ी को ही मिल रहा है। जनरल खंण्डूड़ी अब निशंक के कंधे पर बंन्दूक रख कर अपने राजनीतिक दुश्मनों को नेस्तानाबूद करने पर जुटे हुए हैं। जिसकी बानगी राज्यमंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण के दौरान साफ तौर पर दिखायी पड़ी। निशंक के साथ शपथ लेने वालों में तीन अन्य मंत्री खंण्डूड़ी खेमे के ही माने जाते हैं। जानकारों की मानें तो खंण्डूड़ी के अगले निशाने पर उनकी सरकार में शामिल कुछ मंत्री हैं जिनसे वे मुख्यमंत्री रहते हुए समय-समय पर अलग-अलग मुद्दों पर हार मानते रहे। ये मंत्री प्रदेश के विकास के लिए जो कार्यक्रम तथा योजनाऐं प्रस्तावित करते थे उन्हे खंण्डूड़ी मजबूरी में स्वीकृति देते थे। अब बदले परिदृश्य में जनरल अपने इन विरोधियों को निबटाने में लगे हैं। जानकार बताते हैं कि अपने इस काम को अंजाम देने के लिए जनरल निशंक के जरिये विधानसभा की कुर्सी पर किसी और को बैठाना चाहते हैं। और वर्तमान में इस पद पर आसीन वरिष्ठ नेता को मंत्रिमंडल में शामिल करवाने की फिराक में हैं। सियासतदां इसे खंण्डूड़ी का विरोधियों को निबटाने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं। इनका मानना है कि अगर विधानसभा अध्यक्ष मंत्रिमंडल में शामिल होने की हांमी भरते हैं तो वे अपने दो विरोधियों जो उनकी सरकार में कबीना मंत्री रहे उनको आसानी मंत्री बनने से रोक देंगे। साथ ही आवश्यकता पडऩे पर वे अध्यक्ष की कुर्सी त्याग कर मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले वरिष्ठ नेता पर भी आसानी से लगाम लगा सकेंगे। सियासतदां पूर्व मुखिया को घायल सांप के रूप में देखते हैं जो अपने विरोधियों को काट खाने को तैयार है। यही वजह है कि वे मौजूदा मुखिया के माध्यम से अपने धूर विरोधियों को निबटाने के साथ ही अपने उन सिपहसलारों को निशंक के किचन कैबिनेट में बनाये रखना भी चाहते हैं। यह वही सिपहसलार हैं जिनको खण्डूड़ी के सत्ताच्युत होने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जानकार तो यहां तक दावा करते हैं कि निशंक के इन फैसलों से खंण्डूड़ी का तो कुछ बिगडऩे वाला नहीं लेकिन निशंक जरूर विवादित हो जाएगें जो उनके राजनीतिक भविष्य को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में गौरतलब यह है कि खंण्डूड़ी की केंचुली ओढ़ कर निशंक कब तक काम करेंगे। प्रदेश में भाजपा के एक मात्र क्षत्रप बने रहेंगे। लेकिन राजनीति क ी शह और मात के इस खेल में अब देखना यह होगा कि जनरल सफल होते हैं या धुरंधर खिलाड़ी निशंक।

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