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24.7.09

अफजल को छुडाना भी नक्सलियों के अजेंडे में

सुनीत निगम
समाचार संपादक
विराट वैभव न्यू दिल्ली
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय और भारत सरकार के लिए यह बुरी खबर हो सकती है कि संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को नक्सली छुड़ाना चाहते हैं। इसीलिए अब नक्सलियों ने राजधानी में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। दिल्ली के पालिका बाजार से पिछले हफ्ते एक दुकानदार को इसी सिलसिले में पकड़ा गया है। उसने नक्सलियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक सामानों की एक खेप रांची पहुंचाई थी। कहीं यह खेप इसी मिशन को अंजाम तक पहुंचाने का हिस्सा तो नहीं थी। वैसे भी खुफिया सूत्र राजधानी के बीस थाना क्षेत्रों में नक्सलियों की दस्तक को पुख्ता कर चुके हैं।
यह सनसनी खेज खबर किसी खुफिया एजेंसी या सरकारी सूत्रों के हवाले से नहीं मिल रही है। बल्कि नक्सलियों के दस्तावेज खुद इस एजेंडे का खुलासा करते हैं। दरअसल, नक्सल आंदोलन चला रहे कई संगठनों ने हाथ मिलाकर अक्टूबर 2004 में एक पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा गया माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी। इस पार्टी को ऑपरेशन लालगढ़ के बाद केन्द्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है। पार्टी की एक अति गोपनीय बैठक जनवरी-फरवरी 2007 में हुई। यह बैठक कब, कहां और किस तरह हुई, इसकी भनक आज तक देश की सुरक्षा एजेंसियों को नहीं लग सकी है।
माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी की 9वीं एकता कांग्रेस के नाम से हुई इस गोपनीय बैठक में नक्सलियों ने कई प्रस्ताव पारित करके जनयुद्ध के नाम पर नक्सली हिंसा जारी रखने की खुली घोषणा की। बैठक के बाद जारी की गयी एक 'बुकलेट नक्सलियों के इरादों को उजागर करती है। बैठक में पारित प्रस्तावों में सबसे अहम बात यह रही कि संसद पर हमला करने के आरोपी अफजल गुरु के प्रति नक्सलियों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई और उसे कश्मीर में चल रही आतंकवादी गतिविधियों का 'नायक बताया गया। प्रस्ताव में कहा गया कि कश्मीर में राष्ट्रीयता संघर्ष के विरुद्ध भारतीय राज्य की गहरी साजिश के तहत 'बेकसूर अफजल को फांसी की सजा सुनाई गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि सिर्फ वर्ग संघर्ष ही नहीं, जनवादी और राष्ट्रीयताओं के संघर्ष को दबाने के लिए शासक वर्ग फांसी को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। आधारहीन आरोपों पर अफजल को फांसी सुनाना इसका एक उदाहरण है। इसलिए सरकार के इस फैसले की भत्र्सना करके फांसी की सजा रद्ïद करवाने के लिए संघर्ष छेडऩे का प्रस्ताव पारित किया जाता है। इन प्रस्तावों से समझा जा सकता है कि नक्सलियों के रिश्ते इस्लामिक आतंकवादी संगठनों से कितने मजबूत हो रहे हैं।
अब आइए बात करते हैं कि संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को फांसी दिये जाने के मुद्ïदे पर किस तरह के पेंच हैं। तिहाड़ में बंद गुरु ने फांसी से बचने के लिए राष्ट्रपति को क्षमादान याचिका दे रखी है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रपति भवन में इस समय 2८ क्षमादान याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें अफजल का 22वां नंबर है। हालांकि अभी हाल ही में निपटे लोकसभा चुनावों के दौरान भी अफजल की फांसी का मुद्ïदा जोर-शोर से उठा था और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने तो अति उत्साह में आकर यहां तक कह डाला था कि अगर केन्द्र में एनडीए की सरकार बनी तो एक हफ्ते के भीतर अफजल को फांसी पर लटका दिया जाएगा, लेकिन यह इतना आसान नहीं दिखता। केन्द्र में यूपीए की सरकार बनने के बाद केन्द्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली साफ कह चुके हैं कि सरकार किसी 'व्यक्ति विशेष को फांसी पर नहीं लटका सकती। अफजल का 22वां नंबर होने के नाते 'कैलकुलेशन करके कहा जा सकता है कि अफजल को फांसी देने में 12 साल का वक्त लग सकता है। वैसे तो फांसी का इंतजार राजीव गांधी के हत्यारों को भी है। इन्हें भी अदालत से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है और उन्हें भी महामहिम से क्षमादान की उम्मीद है। कहा जा सकता है कि अपने पिछले कार्यकाल के दौरान जब यूपीए सरकार राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की सजा नहीं दिलवा पाई तो अफजल के बारे में कैसे जल्दी फैसला ले सकती है। अफजल की फांसी में एक और सबसे बड़ा पेंच पाक जेल में बंद सरबजीत भी है। जासूसी के आरोप में पाक सरकार ने उसे भी फांसी की सजा सुना रखी है। यानी इधर अफजल है तो उधर सरबजीत।
दोनों देशों के बीच तनाव भरे रिश्तों के बीच कूटनीतिक स्तर पर भी अफजल के बदले सरबजीत की फांसी टलवाने का दबाव भारत सरकार पर है। इधर अफजल की फाइल दिल्ली सरकार के पास लटकी है तो उधर सरबजीत की फाइल पाक सुप्रीम कोर्ट में। तिहाड़ में बंद अफजल को छुड़ाने के लिए सक्रिय हुए नक्सलियों से खुफिया एजेंसियों को चौकन्ना रहना होगा।

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