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13.7.09

बाबा तेरा परिजन होता....

नक्सल हमलों से छत्तीसगढ़ एक बार फिर हिल उठा है, सलवा जुडूम के बाद जिस तरह से नक्सल ताकतों में इज़ाफा हुआ है इसे देखते हुए ये अभियान आदिवासी समाज पर एक कलंक बन बैठा है....राजनांदगांव जो तथाकथित चांउर वाले बाबा का विधानसभा क्षेत्र है...बाबा राज्य के मुखिया हैं लेकिन अब तक उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठते थे लेकिन अब तो वे बयान वीर भी कहे जाने लगे हैं....कांग्रेस हर बार की तरह वही घिसेपिटे सवाल लेकर पीसी बाइट में उलझी है...खास बात तो ये है कि राज्य नक्सल समस्या से बुरी तरह से दो चार हो रहा है वहीं मुखिया अपनी यशकीर्ती में मुग्ध हैं...शर्म तो इनमें है नहीं क्या भाजपा क्या कांग्रेस आखिर कारण है क्या ? हर हमले का बाद पुलिस को वहां नहीं जाने की सलाह दी गई थी, पैदल ना जाने को कहा गया था, फिर भी पुलिस ने रिस्क ली।। आखिर मैं पूछता हूँ क्यों ना जाएं क्या वो भूभाग प्रदेश का हिस्सा नहीं एक तरफा विकास को सच्चा विकास मानने वाली सरकार निकम्मा नकारा है मुझे तो राज्य के इस हिजड़े मुखिया की आवाज़ भी सुनने से बेहद नफरत होमे लगती है.... सरकार बरकार कुछ नहीं चंद नक्सली नाक में दम कर रहे हैं...सीधे साधे आदिवासी परेशान हैं॥क्या मतलव है ऐंसी नकारा सरकार को ढोने का हो सकता है किसी को ये बात ठीक ना भी लगे मगर सच में जो भुगत रहा है वो जानता है...मैं किसी भी राजनौतिक दल को नकारा नहीं कहना चाहता बल्की सच बताना चाहता हूं कि आखिरकर हर समस्या के पीछे राजनीति क्यों की जाने लगती है...क्यों भौंकने लगते हैं ये नेताजी.....आज तो मन भर गया अच्छे लोगों को आगे आना चाहिए कोई तो हो जो राजनीति में अपना कैरियर बनाने के लिए आगे आए....क्या लगातार हो रहीं इन घटनाओं से कभी लगता था, बुद्धिजीवी लोग कुछ राह दिखाएंगें मगर, ये सच बात कोई ना कह पा रहा ना कोई सोच पा रहा है कि जिस दिन से बिनायक सेन को ज़मानत मिली है नक्सली घटनाओं का ग्रॉफ एक दम ऊपर पहुंच गया॥ इस पर एक बार अच्छे से कोर्ट को सोचना चाहिए...बिनायक सेन एक परिपक्व व्यक्तित्व हैं....लेकिन उतने ही क्रूर २२ मई को इनकी रिहाई के बाद से ही अब तक प्रदेश की बड़ी से बड़ी नक्सल घटनाएं हो चुकीं हैं...अंतरराष्ट्रीय शख्शियतें इतनी क्रूर होत हैं॥तो दोस्त हमें तो बस्तर का अपने में सिमटा आदिवासी ठीक लगता है.....सोचिए।।।।।।

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