अरविन्द शर्मा
अब सोचता हूं कि अच्छा हुआ बचपन में किसी ने परियों की तरह ड्रेकुला की कहानी नहीं सुनाई। आज ड्रेकुला होता तो वो भी शर्मसार हो जाता। राजस्थान के हिंडौनसिटी में बच्चों का खून निकालने का मामला सामने आने के बाद हर किसी के दिल की धड़कनें थमी हुई है। ड्रेकुला के दीमाक में भी कभी ऐसा घिनौने खेल की तस्वीर नहीं बनी होगी कि बच्चों का खून चूसने के लिए उन्हें कचौरी और ज्यूस का लालच दिया जाए। इन खूनी भेडिय़ों ने तो अपने भाई और मौसी के लड़के को भी नहीं बख्शा। आज डे्रकुला सच में होता तो इन लोगों को अपने चेला नहीं गुरू जरूर बनाता।
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10.7.09
ड्रेकुला अनंत, ड्रेकुला कथा अनंता
Labels: खून
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