(वुसतुल्लाह ख़ान, पाकिस्तान के रहनेवाले हैं और बीबीसी उर्दू सेवा के एक वरिष्ट पत्रकार हैं पिछले दिनो ख़ान साहब भारत दर्शन(भारत के दौरे पर) के लिए आए हुए थे तब से इनके आलेख बीबीसी हिन्दी की साइट पर आ रही है.
हाल मे खान साहब ने अपने एक ब्लॉग मे एक सीख दी है भारत और पाकिस्तान की सरकार को। आइए पढ़ें, क्या है वो सलाह.......)
क्या आपने तिरंगा ग़ौर से देखा है, ज़रूर देखा होगा। लेकिन कभी आप ने ये सोचने की तकलीफ़ उठाई कि कपड़े के तीन विभिन्न पट्टियों को क्यों जोड़ा गया था और फिर बीच में अशोक चक्र क्यों बना दिया गया.
जब पिंगली वेंकैया साहेब ने ये तिरंगा डिज़ाइन किया तो उन्होंने नारंगी पट्टी यह सोचकर ड्राइंग बोर्ड पर बिछाई होगी कि भारत का हर व्यक्ति अपने ज़मीर का जवाबदेह होते हुए बहादुरी के साथ हर तरह की क़ुर्बानी के लिए तैयार होगा।
लेकिन वेंकैया साहेब को क्या मालूम था कि नारंगी रंग का ये मतलब लिया जाएगा कि अपने ज़मीर के ख़ंजर से बहादुरी के साथ दूसरे को क़ुर्बान कर डालो।
फिर वेंकैया साहिब ने नारंगी पट्टी के साथ सफ़ेद पट्टी जोड़ी। उनका ख़्याल था कि सफ़ेद रंग सच्चाई और पवित्रता की निशानी है. पर उन्हें क्या मालूम था कि इस सफ़ेद पट्टी की छाँव में इतना झूठ फैलाया जाएगा कि वो सच लगने लगेगा.
फिर उन्होंने उस सफ़ेद पट्टी में 24 डंडों वाला नीला अशोक चक्र ये समझकर लगाया होगा कि हर व्यक्ति 24 घंटे ईमानदारी के साथ अपना काम निपटाकर खुद को और देश को आगे बढ़ाएगा। पर उन्हें क्या पता था कि उनके बाद के लोग इस अशोक चक्र को घनचक्र के तौर पर चलाएंगे.
फिर वैंकया साहिब ने हरी पट्टी यह सोचकर जोड़ी होगी कि सब इस तिरंगे के साए में फले फूलेंगे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि इस तिरंगे के साए में सिर्फ़ ताक़तवर फलेंगे और कमज़ोर सिर्फ़ फूलेंगे.
इसी तरह सीमा पार अमीरूद्दीन क़िदवई ने जब पाकिस्तान का परचम डिज़ाइन किया होगा तो वेंकैया साहेब की तरह क़िदवई साहिब के भी बड़े पवित्र ख़्यालात रहे होंगे। जैसे ये कि इस झंडे में अस्सी फ़ीसदी रंग हरा होना चाहिए जिससे ये मालूम हो कि इस मुल्क में बहुसंख्या मुसलमानों की है. मगर बेचारे क़िदवई साहिब को अंदाज़ा ही नहीं था कि इस हरे झंडे के तले मुसलमान से ज़्यादा सुन्नी, शिया, वहाबी, देवबंदी, बरेलवी और तालेबान फले फूलेंगे.
क़िदवई साहेब ने इस हरे रंग पर चाँद और तारा भी चढ़ा दिया। ताकि इस झंडे को उठाने वालों का सामूहिक विकास पूरी दुनिया चाँद सितारों की रौशनी की तरह देख सके. मगर क़िदवई साहेब को ख़बर नहीं थी कि जो क़ौम रमज़ान के चाँद पर एकमत न हो सकी वो विकास के चाँद को कैसे देख सकेगी.
क़िदवई साहेब ने हरे झंडे में एक पतली-सी सफ़ेद पट्टी का भी इज़ाफ़ा किया। जिससे शायद उनकी मुराद ये थी कि इस मुल्क में अल्पसंख्यक अमन-सकून के साथ रह सकेंगे. लेकिन क़िदवई साहिब ने जो झंडा डिज़ाइन किया उसमें एक कमी यह रह गई कि ये झंडा सफ़ेद पट्टी में डंडा दिए बग़ैर लहराया नहीं जा सकता. इस कमी का हर सरकार ने बहुत ख़ूब फ़ायदा उठाया.
कहने का मतलब ये है कि भारत और पाकिस्तान को अपने झंडे अब दोबारा डिज़ाइन करने चाहिए ताकि वो असल हक़ीकत और सच्चाई का प्रतिनिधित्व कर सकें।
(साभार:बीबीसीहिन्दी.com)
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