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8.7.09

बारूद के ढेर पर बैठा हिन्दुस्तानी स्विट्जरलैंड


{देश की उर्जा राजधानी में महज एक सप्ताह के भीतर अलग अलग हुए विस्फोट में लगभग ४२ जाने गई हैं ,देश की उर्जा जरूरतों को पुरा करते करते थक चुकी सोनभद्र -सिंगरौली पट्टी ,जिसका नाम भी बहुतों ने नही सुना होगा ,फ़िर भी सुर्खियों में नही है |मेरी ये पोस्ट वहां की स्थिति का विश्लेषण कर रही है ,ये आज हिन्दी दैनिक 'डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट' में प्रकाशित भी हुई है ,इसे आप मेरे ब्लॉग katrane.blogspot.com पर भी पढ़ सकते हैं }

-आवेश तिवारी


पंडित नेहरु का स्विट्जरलैंड आज बारूद के ढेर पर बैठा है , एशिया के सबसे बड़े एनर्जी पार्क में प्रतिदिन ४० से ५० टन जिलेटिन रोड्स और लगभग १.५ लाख खतरनाक डिटोनेटर का इस्तेमाल हो रहा है ,इन विस्फोटकों की चपेट में आकर प्रति माह औसतन ३ से ४ मौतें हो रही हैं ,भूगर्भ जलस्तर रसातल में चला गया है ,वहीँ समूचा पारिस्थितिक तंत्र छिन्न भिन्न हो गया है ,शायद इस बात पर यकीं करना कठिन हो मगर ये सच है कि सोनभद्र सिंगरौली पट्टी आतंकवाद की नयी चुनौतियों से जूझ रहे देश में गैरकानूनी बारूदों की खरीद फरोख्त का सबसे बड़ा केंद्र बन गयी है ,शर्मनाक ये है कि ये सारा गोरखधंधा उत्तर प्रदेश सरकार ,सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की जानकारी में फल -|फूल रहा है |विस्फोटकों के इस गोरखधंधे में जहाँ नवधनाड्यों की फौज तैयार हो रही हैं ,वहीँ मंत्री से लेकर संतरी तक लाल हो रहे हैं |स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों जब एक ट्रक से जब लगभग ४० टन अमोनियम नाइट्रेट बरामद हुआ तो एकबारगी हड़कम मच गया लेकिन महज तीन दिनों बाद ही पुलिस की मिलीभगत से गैरकानूनी अमोनियम नाइट्रेट की आमद फिर से शुरू हो गयी |आज आलम ये है की सारे विस्फोटक गाजर मूली की तरह यहाँ के खनन क्षेत्र में बेचे जा रहे हैं ,न सिर्फ बेचे जा रहे हैं, बल्कि इनकी क्षमता से अनभिज्ञ मजदूरों से इनका इस्तेमाल कराया जा रहा है | ये सब कुछ तब है जब खुद प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर अपनी आपति दर्ज करा चूका है |मौजूदा समय में बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र की लगभग ३०० अवैध खदानों में गैर कानूनी विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा है,जो अंतर्राज्यीय तस्करों के माध्यम से यहाँ पहुंचाए जा रहे हैं ,सिर्फ इतना ही नहीं यहाँ मौजूद लाइमस्टोन ,.डोलोमाईट और कोयलों की खदानों में विस्फोटकों के सुरक्षित इस्तेमाल को लेक भी किसी प्रकार की कोई कवायद नहीं चल रही है ,पिछले एक सप्ताह के दौरान बैढन और बिल्ली मारकुंडी में घटी अलग अलग घटनाएँ इसका सबूत हैं |
अगर आप सोनभद्र पहली बार आ रहे हैं तो यहाँ के खनन क्षेत्रों का दौरा जरुर कीजिये ,अगर आपको हाथ में डिटोनेटर लेकर घूमते बच्चे नजर आ जाएँ तो आश्चर्य मत करियेगा ,मजदूरों की झोपडियों में आपको बोरे में रखा अमोनियम नाइट्रेट मिलेगा ,वहीँ खदानों में माइनिंग जाल बिछाती आपको महिलायें नजर आएँगी ,एक्टिविस्ट को जानकारी मिली है कि यहाँ की खदानों में जितने भी लोगों को विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय ,आगरा से लाइसेंस निर्गत किये गए हैं उन सभी ने लाइसेंस प्राप्त करने की निर्धारित योग्यता पूरी नहीं की है |कमोवेश यही हाल सिंगरौली क्षेत्र का भी है ,जहाँ रेवड़ियों की तरह कारखानों को लाइसेंस बांटे गए हैं|


क्या कभी आपने लाशों की खरीद फरोख्त देखी है ,अगर नहीं ,तो भी आपको सोनभद्र आना चाहिए |यहाँ के खनन क्षेत्रों में होने वाली ९० फीसदी मौतों में गुनाहगारों को कोई सजा नहीं मिलती ,वजह साफ़ है पुलिस द्वारा ऐसे किसी भी मामले में मुकदमा दर्ज करने के बजाय मामले को ले- देकर निपटाने में लग जाती है ,जिस किसी की खदान में घटना घटती है ,पुलिस उसके मालिकों से मोटी रकम लेकर मृत व्यक्ति के परिजनों को भी थोडी बहुत रकम दिला कर मामला ख़त्म करने की कोशिशें करने लगती हैं पीड़ित पक्ष को ये नसीहत दी जाती है कि तुम गरीब आदमी हो मुकदमा नहीं लड़ पाओगे ,थका हरा मजदूर मरता क्या न करता मुँह बंद रखता है |स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले ६ माह के दौरान डाला - बिल्ली खनन क्षेत्र में घटी किसी भी दुर्घटना में कोई भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी ,जबकि इस दौरान कूल १६ मौतें हुई |हमने इस रिपोर्ट के लिए खदानों में मारे गए लोगों के परिजनों से मुलाक़ात कि तो ये एक बड़ा सच सामने आया कि लगभग सभी मामलों में पुलिस की भूमिका संवेदनहीन रही |
नौतौलिया की सविता का पति पिछले साल ,खदान में हुई ब्लास्टिंग के दौरान बोल्डर गिरने से अकाल मौत का शिकार हो गया था ,अब पहाड़ सी जिंदगी और सविता के दो छोटे बेटे ,जब हम उसके दरवाजे पर पहुँचते हैं तो न जाने क्यूँ सविता के साथ साथ उसके बच्चे फ़ुट फ़ुट कर रो पड़ते हैं ,वो कहती है 'पुलिस ने केवल पांच हजार रूपया दिलवाया था ,हम कोर्ट कचहरी कुछ नहीं जानते ,?क्या करते |आज मेरे बच्चे दाने दाने को मोहताज हैं ,हम किसके पास जाएँ ?झिग्रादंदी का ७० साल का रामकेवट हमरे सवालों पर मूक हो जाता है ,उसके बेटे की १० दिनों पहले ही शादी हुई थी जब उसकी खदान में बारूद भरते वक़्त मौत हो गयी ,मालिक ने सिर्फ कफ़न दिया ,वो बताता है हम पुलिस से ऍफ़ ,ई ,आर की विनती करते रहे ,लेकिन उन्होंने हमें गाली देकर भगा दिया ,उसकी पत्नी कहती है अब किस्से कहूँ मेरा बेटा लाये ?यही हाल दशरथ ,शंकर ,अर्जुन सभी का है ,सभी की बलि अवैध खदानों ने ले ली ,लेकिन शर्मिंदगी को धत्ता बताते हुए पुलिस अपनी जेबें गरम करने में लगी रही |
बारूद की चपेट में आकर होने वाली दुर्घटनाओं का दुखद पहलु ये है कि मरता दलित आदिवासी ही है,अभी हाल ही में सोनभद्र में हो रही इन अकाल मौतों पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा ,न्यायालय ने इन मौतों पर प्रदेश सरकार के हलफनामा दाखिल न करने पर कड़ी आपति करते हुए जिलाधिकारी को ही पार्टी बनाने का हुक्म सुना दिया ,न्यायालय का कहना था कि गरीब आदिवासी न्यायालय और थाने जाने में घबराता है जरुरत इस बात की है कि न्यायालय और पुलिस उस तक पहुंचे ,लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस के पास ये सहृदयता दिखने वाला चरित्र नहीं है |भले ही यहाँ पर दलितों की रहनुमाई का दावा करने वाली सरकार हो |यकीं न करें मगर सच है खुद को प्रदेश के विधानसभाध्यक्ष का नजदीक बताने वाले एक सब इंसपेक्टर को सारे नियम कानूनों को धत्ता बताते हुए खाना क्षेत्र के थाने में सिर्फ इसलिए तैनाती दे दी गयी ,क्यूंकि वो बारूदों की खेती और उस खेती में कुचले जाने वाले लोगों की कीमत जानता था |
माइनिंग इंजिनियर ऐ .बी सिंह कहते है लगातार हो रही दुर्घटनाओं के बावजूद नियंत्रक कार्यालय का कोई भी अधिकारी यहाँ नहीं आता ,चूँकि गैरकानूनी विस्फोटकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है इसलिए खराब गुणवत्ता वाले विस्फोटकों की आमद भी बढ़ी है ,जो अक्सर दुर्घटनाओं का सबब बन जाते हैं ,इस पूरी स्थिति के लिए खान सुरक्षा निदेशालय जबलपुर भी कम जिम्मेदार नहीं है ,सोनभद्र और सिंगरौली की सभी खदानों में सुरक्षा नियमों को लागू कराने की जिम्मेदारी निदेशालय की है लेकिन वहां के अधिकारी ४-६ महीने में सिर्फ एक बार वसूली की गरज से ही आते हैं |उत्तर प्रदेश खनिज विभाग नयी नवेली दुल्हन की तरह सिर्फ मुँह दिखाई लेना ही जानता है ,न अधिकारियों का न मंत्री को, किसी के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता |
मिनी भोपाल कहे जाने वाले सोनभद्र सिंगरौली पट्टी में कथित विकास की होड़ में घातक उद्योगों को नियमों का उल्लंघन करके अनुमति दी जा रही है ,पहले कनोडिया केमिकल ,फिर बैढन और बार -बार बिल्ली -मारकुंडी खनन क्षेत्र ,विस्फोटों से होने वाली अकाल मौतें और उसके एवज में काली कमाई सोनभद्र की नियति है |अकेले सोनभद्र पुलिस सालाना खनन क्षेत्रों और बारूद विक्रेताओं से ५से १० करोड़ रुपयों की वसूली करती है ,न सिर्फ वसूली करती है धर पकड़ की धमकी देकर साझेदारी भी हथियाई जाती है |मुलायम सिंह के शासनकाल में जब नरकती में पी ए सी की गाडी पर हमले के बाद यहाँ के खनन क्षेत्र से नक्सलियों को विस्फोटकों की आपूर्ति का खुलासा हुआ था तब गृह मंत्रालय की पहल पर ,विस्फोटकों के प्रयोग के नियमन की कोशिशें की गयी थी ,लेकिन सत्ता प्रवर्तित होते ही सब कुछ बदल गया ,समूचे खनन क्षेत्र पर मंत्रियों विधयाकों के रिश्तेदारों ,माफियाओं और दबंगों का कब्जा हो गया ,अवैध खनन बढा ,साथ में गैर कानूनी विस्फोटकों का इस्तेमाल भी |

इस पूरे मामले का दूसरा पहलु उद्यमियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा बरते जाने वाली लापरवाही से जुडा है ,नियमों का खुला उल्लंघन करते हुए जैसे तैसे बारूद का प्रयोग किया जाता है ,समूचे खनन क्षेत्र में कहीं भी नियमानुकूल मैगजीन की स्थापना नहीं की गयी है ,आलम ये है कि वैध खनन करने वाले भी अवैध बारूद इस्तेमाल करते हैं |
उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष ३४हजार डेटोनेटर ७०० किलोग्राम विस्फोटक सामग्री और ३४ टन अमोनियम नाइट्रेट बरामद किया गया था बरामद की गयी ज्यादातर सामग्री सोनभद्र के खनन क्षेत्रों से सम्बंधित थी जो कि आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के रास्ते यहाँ लायी गयी थी | मुंबई हमले के बाद पूरे देश में अमोनियम नाइट्रेट पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया लेकिन सोनभद्र के खनन क्षेत्र में इसकी गैर कानूनी आवक का दौर नहीं रुका, महत्वपूर्ण है कि अब चोरी छपे बेचे जा रहे अमोनियम नाइट्रेट के बोरों पर कनाडा की एक कंपनी की सील लगी रहती है |पुलिस अधीक्षक सोनभद्र से जब अमोनियम नाइट्रेट की बिक्री और विस्फोटकों की गैर कानूनी आवक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया|कुछ वर्ष पूर्व तक खनन क्षेत्र में विस्फोटकों के लाइसेंस धारकों के स्टॉक रजिस्टर की समय समय पर पुलिस खुद जांच करती थी,l लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ साथ ये कवायद भी ख़त्म हो गयी |आज हालत ये हैं कि लगभग ३०० की संख्या में चल रही अवैध खदाने पूरी तरह से इन गैरकानूनी ढंग से आने वाली विस्फोटकों की आमद पर टिकी है
नाम न छपने की शर्त पर एक उद्यमी बताते हैं कि अगर हम अवैध बारूद की खरीद न करें तो हमें व्यवसाय बंद करना पड़ जायेगा ,क्यूंकि बारूदों के सप्लायर भी अवैध खनन वालों को ही ज्यादातर माल देते हैं क्युकी उसके एवज में उन्हें मोटी रकम मिल जाती है ,जबकि हमसे उन्हें कम पैसा मिलता है ,लगभग यही हाल को़ल कंपनियों का है ,कमाई के लालच में ऐसे लोगों को कारखाना स्थापित करने की इजाजत दे दी जाती है ,जिन्हें नियम कानूनों से कोई मतलब नहीं होता |समाजसेवी रागिनी बहन कहती हैं किसी को आम आदिवासियों और मजदूरों की मौत से सरोकार नहीं है ये संवेदनहीनता की इन्तेहाँ है |
दोपहर के १२ बजते ही वाराणसी शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर रफ्तनी रुक जाती है ,सड़कों पर बैरिकेटिंग लगाये खनन माफियाओं के गुर्गे लाल झंडा टांग कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं उधर खनन क्षेत्र में काम करने वाले लगभग ५० हजार मजदूर अपने बच्चों को लेकर या तो दूर खुले आस्मां के नीचे निकल जाते हैं या फिर खनन क्षेत्र के बाहर कड़ी गाड़ियों की ओट ले लेते हैं ,उधर प्रशिक्षित अप्रशिक्षित ब्लास्टर की सीटियों के साथ शुरू होता है विस्फोटों का दौर ,लगभग २ घंटे तक पूरा खनन क्षेत्र धमाकों से गूंजता रहता है ,पत्थरों के छोटे बड़े टुकड़े कभी आस पास की इमारतों पर ,तो कभी सड़क चलते राहगीरों को और अक्सर पत्थर तोड़वा मजदूरों को अपनी चपेट में ले लेते हैं ,फिर भी ये क्रम नहीं रुकता |
खनन मजदूर संगठन के नेता डा.सरोज कहते हैं सब कुछ नियम विरूद्व है क्या क्या रोकेंगे आप ?देश में ये एक मात्र जगह है जहाँ राजमार्ग जाम करके ब्लास्टिंग करायी जाती है |चूँकि सब कुछ इतना लापरवाही पूर्ण होता है कि दुर्घटना की सम्भावना हमेशा बनी रहती है ,यूँ तो खनिज नियमावली में आबादी के आस पास के इलाकों में ब्लास्टिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित है लेकिन सोनभद्र के परिप्रेक्ष्य में कोई नियम कानून काम नहीं करता ,राजमार्ग के किनारे विस्फोटन को लेकर भी किसी के पास कोई जवाब नहीं है ,लेकिन जब सरकार खुद ही सड़क किनारे पट्टे की इजाजत दे तब आप क्या करेंगे ?इतना ही नहीं पूरे खनन क्षेत्र में नियंत्रित विस्फोट करने के बजाय भारी विस्फोट किया जाता है , इन सब का खामियाजा अगर गरीब मजदूर भुगतता है तो किसी का क्या बिगड़ता है ?

2 comments:

डॉ. जेन्नी शबनम said...

आवेश जी,
आपके लेख के द्वारा इस खतरनाक स्थिति की सम्पूर्ण जानकारी मिली| आपका लेख सदैव ऐसी स्थिति की समीक्षा करता है जिसमे न सिर्फ घटना की जानकारी होती बल्कि कारण और कुपरिणाम भी होता| बहुत बेबाकी से आप स्थिति का जायजा लेकर समीक्षात्मक रिपोर्ट पेश करते हैं, जो पत्रकारिता के लिए तो आवश्यक है हीं जनता की जागरूकता केलिए भी आवश्यक है| दलितों का मसीहा कहने वाली सरकार का असली चेहरा यूँ तो किसी से छुपा नहीं, परन्तु आपके इस तथ्यपरक रिपोर्ट से शायद सरकार की अकर्मण्यता के विरुद्ध जनता की ख़ामोशी टूटे और एक जन-आन्दोलन का रूप ले| एक सराहनीये लेख के लिए बहुत बधाई और शुभकामनायें|

somadri said...

....घर के लोग ही घर को उडाने की हर सम उडाने की कोशिश में लगे है
एक खौफनाक सच से रूबरू करवाने के लिए आवेश को बधाई