एक दिन चलते-चलते मैं रुकी....पीछे मुड़कर देखा,फिर वही ग़म खड़ा था.....conitinue
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25.7.09
फ़ितरत
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अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
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