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4.11.09

रास्ते-रास्ते...

रास्ते-रास्ते, रास्ते सिर्फ रास्ते...
वास्ते-वास्ते जाने किस वास्ते,
जागते-सोते, सोते-जागते
रास्ते-रास्ते, रास्ते सिर्फ रास्ते...

रात के सूने प्रहर में,
सन्नाटे को खत्म करते
सहर की और चलते
उजाले में हसी वादियों में,
ठण्ड की कपकपाहट, सर्द समां में,
ओस की बूंद, हवा के बहाव में,
रह गए हम, वादियों को ताकते
रास्ते-रास्ते, रास्ते सिर्फ रास्ते...

सर्द मौसम में, गर्म ख्यालों में,
चाय के प्यालों में, लाल से गलों में,
कपकपाते होठों की मुस्कान के साथ,
सफ्फाक दिलों को बहलाने के वास्ते,
रास्ते-रास्ते, रास्ते सिर्फ रास्ते...

मील के पत्थर गिनते हुए,
राह के काटें चुनते हुए,
ख्वाब में ख्वाब बुनते हुए,
हवाओं के सुर सुनते हुए,
एक धुन बनाने के वास्ते...
रास्ते-रास्ते, रास्ते सिर्फ रास्ते...

-हिमांशु डबराल
http://bebakbol.blogspot.com/

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