कम वेतन पर काम करनेवाले पत्रकारों द्वारा की जानेवाली चापलूसी और कमीशनखोरी के कारन पत्रकारिता का जो हाल हुआ है ,इसके लिए पत्रकार स्वयं जिम्मेदार है। पत्रकारिता के जन्मदाता कहे जानेवाले कोल्कता में तो पत्रकारों की हाल किसी बंधुआ मजदूर से कम नहीं है। एक तरफ़ तो अखबार अपने विज्ञापन का भाव बढाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ पत्रकारों को देने के नाम पर उनके पास पैसा नही है। ऊचे पदों पर कुण्डली मारे बैठे तथाकथित वरिष्ठ सिर्फ़ अपनी जेब तक ही देख पा रहे हैं । मजेदार बात तो यह है की कोई मुह खोलने को तैयार नहीं है। पता नही क्यों ? क्या पत्रकारों का विरोध मर गया ? अगर नही तो फिर कोई कुछ बोलता क्यों नही ? इसका विरोध क्यों नही होता ? वहाँ राजस्थान पत्रिका में काम करते समय मेरा भी २२ दिनों का वेतन यह कहकर काट लिया गया । की आपको नोटिस दी गयी थी । हालांकि वे विद्वान् व्यवस्थापक भी वहाँ से निकले जा चुके हैं। लेकिन अब भी वहाँ इस प्रकार के शोषित पत्रकारों की सुननेवाला कोई नहीं है। इसके लिए वहां के पत्रकार स्वयं जिम्मेदार हैं । बस मैं तो इतना जरुर कहूँ गा की कोल्कता में पत्रकारिता मर चुकी है । वहाँ के पत्रकारों को भी यही कहूंगा की : खुशी से आग लगाओ की इस मोहल्ले में मेरा मकान ही नही है,तुम्हारा घर भी है । । रमेश प्रताप सिंह varisTh patrakar Raipur Cg
4.11.09
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1 comment:
Sahi Kah Rahe Hain Sir. Virodh Naam ka Shabad to jaise Patrakarita Ki Dictionary main se khatam ho gaya hai.
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