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5.11.09

बेवकूफ लड़कियां..नींद की कड़कियां

लग रहा है कि बहुत सालों बाद इस ब्लॉग पर कुछ डाल रहा हूँ.
वैसे मेरा ही लफ्जों का खेल वाला ब्लॉग तो हमेशा ही अद्यतन होता रहता है..
और कल ही यहाँ पर भी कुछ डाला है..
पर मेरा खुद का ब्लॉग ही सूना पड़ा है..

तो आज इसका रुदन दिल तक पहुंचा और मैं आ गया फिर से ब्लॉग पर थोड़ा क्रियाशील होने..

वैसे आप सबको बता दूं कि एक पोस्ट तो मैं काफी दिनों से लिख रहा हूँ पर यहाँ छप नहीं पा रहा है क्योंकि विषय ही कुछ ऐसा है जिसपर सोच समझ के ना लिखा जाय तो जूतियाँ पड़ सकती हैं..

खैर आज मैं अपना एक निजी अनुभव आपके साथ बांटना चाहता हूँ और आपकी राय भी सुनना चाहता हूँ...
तो आशा करता हूँ कि आप इतने दिनों बाद भी इस नाचीज़ को ना भूले होंगे..

कुछ दिनों पहले यात्रा करने का मौका मिला और सफ़र करने का आनंद जो ट्रेन में है वो कहीं और हो.. ऐसा हो ही नहीं सकता..
और फिर किस्मत देखिये.. सफ़र लम्बा हो तो हमसफ़र भी अच्छा चाहिए.. 
घर से तो अकेला ही निकला था पर अपनी सीट पर जा कर देखता हूँ तो हमारे कम्पार्टमेंट को छोड़कर पूरे डब्बे में किशोरियां..
हमने सोचा.. लो भैया तुम तो एक हमसफ़र की तलाश में थे और यहाँ तो जमात है पूरा..

खैर जहाँ इतनी लडकियां हों वहां सब कुछ ठीक कहाँ हो सकता है?
तो अपने दिल के उछलने का सबब हमें नींद में ही मिल गया..

ऐसा लग रहा था मानों ये लड़कियां पहली बार ट्रेन में सफ़र कर रही हैं.. चूँकि ट्रेन रात को चली थी तो अपना काम था.. पैर पसारकर लम्बी वाली नींद लेना.. पर जनाब जहाँ बेवकूफों से भरा इतना बड़ा दल हो वहां मेरे जैसे लोग दलदल में फंसेंगे ही..
रात..(या यूँ कहें..बस पौ फटने ही वाला था) के करीबन ४ बजे.. खुसुरफुसुर की आवाज़ कानों के ज़रिये दिमाग में पहुंची और नींद को आंधी की तरह उड़ा ले गयी..
पास वाले कम्पार्टमेंट से जोर-जोर (अब समझ आया.. वो खुसुरफुसुर नहीं था !!) से ये मंदबुद्धि लड़कियां अपने घर-घराने की बातें कर रही थीं..

किसी की माँजी उनके पिताश्री से बड़ी हैं... तो किसी की बहन को उनसे प्यार नहीं है.. किसी लड़की ने आज ही किसी को आत्महत्या करने के कई नुस्खे सुझाए हैं... तो किसी को लम्बे बाल पसंद नहीं हैं (वहीँ मैं सोच रहा था.. लड़कियों की बातों में श्रृंगार कहाँ गुल हो गया? )..

मन तो कर रहा था कि इनको खरी-खोटी सुनाऊं.. अरे भाई तुम्हारे घर-बार में क्या हो रहा है.. वो अपने पास ही रखो ना.. यहाँ दुनिया पड़ी है नींद में.. उन्हें जगा-जगा के बताना काहे चाहती हैं? और अगर आपको आत्महत्या करनी ही है तो आप बिलकुल सही जगह हैं.. कहिये तो मैं दरवाज़ा खोल दूं?.. रात के.. माफ़ करियेगा.. सुबह के चार बजे आप फुल वॉल्यूम में अपना पिटारा काहे बजा रही हैं...

पर फिर मैं अच्छे बच्चे की तरह उठा और उनसे जा कर सिर्फ इतना ही पूछा - "क्या मुझे रुई के २ टुकड़े मिल सकते हैं? अपने कानों में ठूसने के लिए?"
मुझे यह कहता सुनते ही सब शांत.. सबको सांप सूंघ गया और मैं... सांप और उनको वहीँ छोड़कर अपनी बर्थ पर आकर फिर से लेट गया...


तभी मुझे विज्ञान पर बड़ा नाज़ हुआ और मैंने अपना mp3 प्लेयर निकाला और दोनों कान-चोगों (ईअरफ़ोन) को जितना अन्दर हो सके.. ठूंस दिया और फिर मस्त भरी नींद सोया..

पर आज भी सोचता हूँ तो ऐसी लड़कियों पर रोना आता है कि.. इतनी पढ़ी लिखी होने के बावजूद उन्हें इतना बताना पड़े कि भैया..माफ़ कीजियेगा.. बहनों.. ये सार्वजनिक जगहों पर ध्वनि-विस्तारक (लाऊडस्पीकर) को थोड़ा शांत रखें और बाकी लोगों का शांति भंग ना करें..

खैर अंत भले का भला..
अगले दिन खूब मस्ती की और पूरा भ्रमण काफी अच्छा रहा..
जल्द ही आपके समक्ष उस पोस्ट के साथ आऊंगा जिसपर लिखते हुए दिल बैठा जा रहा है और वो कम्मकल पूरा भी नहीं हो रहा है...

तब तक आप इस पोस्ट का गाना :
आवारा हूँ (मुकेशजी का गाया हुआ और आवारा फिल्म से) यहाँ से पढ़िये..
और अपने टिप्पणियों से इस भूले-बिसरे ब्लॉग को आबाद करते जाइए..

तब तक के लिए..खुदा हाफिज़.. सायोनारा..