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7.2.10

मेरी भावना

भावनाओ में वहता हूँ तो लोग कायर समझते हे
भावनाओ में नही वहता हो तो लोग पत्थर दिल समझते हे
नही आता मुझे समझ करू में क्या
दिल करता जाके लगा दू उन पहाडो से छलाग
फिर में भावनाओ में बह जाता हु ।
माँ की ममता की छाँव में
बहन की राखी में किसी के प्यार में
लेकिन सोचता हु कब तक बंधा रहूगा इनकी भावनाओ में
कभी तो जाना ही होगा इन भावनाओ को तोड़कर
क्योंकि नही रख पाउँगा जिन्दगी के बाद इन भावनाओ को सहेजकर

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