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11.2.10

शतावरी या एस्पेरेगस रेसीमोसस


आइये हम शतावरी या एस्पेरेगस रेसीमोसस को जानने की कोशिश करते हैं। शतावरी भारत, श्रीलंका, चीन, जावा, यूरोप, आस्ट्रेलिया, इंगलैंड, अफ्रीका आदि देशों में पाया जाने वाला एक जंगली पौधा है जिसे पौष्टिक व स्वादिष्ट सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्राचीनकाल से ही आयुर्वेद में इसका प्रयोग महत्वपूर्ण औषधि के रूप में होता आया है। शतावरी कांटेदार, 1 से 3 मीटर लम्बाई का देवदार या चीड़ जैसी छोटी-छोटी पत्तियों वाला आरोही पौधा है, जिसके छोटे-छोटे सफेद फूल आते हैं। शतावरी वात, पित्त, और कफ तीनों दोषों को संतुलित करती है। यह कैंसररोधी, शोथ-हर, अम्लरोधी, दुग्धवर्धक, एन्टी-डायरियल, मूत्र-वर्धक, कामोद्दीपक और अच्छा स्वास्थ्यवर्धक है।

शतावरी में पोषक तत्वों की भरमारः-

• शतावरी ग्लूटाथायोन, जिसे “एन्टी-आक्सिडेंन्ट्स का राजा” कहा जाता है, का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। यह कैंसर रोधी है, यकृत का शोधन करता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करता है।

• शतावरी में शतावरिन 1-4 नामक फाइटोईस्ट्रोजन (यानी पौधों में पाये जाने वाले स्त्री हार्मोन) होते हैं, जो स्त्रियों में विभिन्न हार्मोन्स को संतुलित रखते हैं।

• शतावरी में विटामिन-ए, विटामिन-सी, विटामिन बी-कॉम्पलेक्स, पोटेशियम, जिंक और रूटिन होते हैं। इसमें वसा और कॉलेस्ट्रोल नहीं होते हैं।

• शतावरी में हिस्टोन नामक प्रोटीन होते हैं जो कोशिका के विकास व विभाजन की प्रक्रिया को संतुलित करते हैं और कैंसर के उपचार में योगदान देते हैं।



अमेरीका की नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट शतावर को ग्लूटाथायोन का महत्वपूर्ण स्त्रोत मानती है जो उच्च कोटि का एन्टी-आक्सिडेंन्ट है और कैंसर रोधी है।

शतावरी के औषधीय उपयोगः-


शतावरी कैंसर, इन्फ्लेमेशन, क्षय रोग, कुष्ठ रोग, रतौंधी, वृक्क रोग, मिर्गी, दमा, ब्रोंकाइटिस, जीर्ण ज्वर, अम्लता, अपच, दस्त, पेचिश, आमाशय शोथ, हरपीज़, एड्स, सोर थ्रोट, मूत्रपथ संक्रमण आदि बीमारियों का उपचार करती है।



प्राचीन काल से आयुर्वेद में शतावरी का प्रयोग स्त्रियों के प्रजनन अंगों के कायाकल्प की आदर्श औषधि के रूप में होता आया है। यह सारे प्रजनन अंगों का शोधन करती है, शक्ति व पोषक तत्व उपलब्ध करवाती है। यह हार्मोन के असंतुलन से ग्रसित, रूग्ण, दुर्बल व कुंठित स्त्रियों में ऊर्जा का संचार करती है, रोग दूर करती है, संपूर्ण नारीत्व प्रदान करती है, प्रेम, भावनाएं व कामेच्छा जगाती है और गर्भाशय को गर्भ धारण के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करती है। यह दुग्ध अल्पता से ग्रसित माताओं के आंचल में दुग्ध का संचार करती है। शतावरी का शाब्दिक अर्थ ही होता है “ जिसके सौ पति हों।” यह वंध्यता, गर्भपात, एमेनोरिया, डिसमेनोरिया, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, श्रोणि शोथ (पी.आई.डी.), एन्डोमेट्रियोसिस, प्रसवोपरांत दुर्बलता, रजोनिवृत्ति में होने वाली कठिनाइयों जैसे अस्तिमज्जा शोथ, हॉट फ्लेशेज़ आदि के उपचार में प्रयोग की जाती है।

पुरूषों के लिए भी शतावरी अच्छा स्वास्थय वर्धक है। शतावरी, अश्वगंधा, शिलाजीत आदि का मिश्रण कामोद्दीपक है और पुरूष हीनता, स्तंभन दोष, शुक्राणु अल्पता, शीघ्र स्खलन आदि यौन रोगों का कारगर उपचार है।

शतावरी अमेरीका की संस्था फूड एन्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ.डी.ए.) द्वारा कैंसर रोधी दवाओं और विकिरण चिकित्सा के दुष्प्रभाओं के उपचार के लिए प्रमाणित है।

शतावरी के उपचार से ठीक होने वाले रोगियों का विवरणः-

(1) एक व्यक्ति के फेफड़ों में कैंसर था। 5 मार्च, 1971 को उसकी शल्य चिकित्सा होनी थी। चिकित्सक ने शल्य क्रिया कक्ष में रोगी की जांच की व पाया कि उसका कैंसर अंतिम अवस्था में है और शल्य क्रिया करना भी सम्भव नहीं है। अतः उसे घर भेज दिया गया। 5 अप्रेल को उसे मालूम हुआ कि शतावरी के उपयोग से कैंसर ठीक हो जाता है। अतः उसने शतावरी का सेवन शुरू किया और उसकी स्थिति सुधरती चली गई। अगस्त में जब उसने एक्स-रे करवाया तो पता चला कि उसके फेफड़ों में कैंसर का नामोनिशान भी नहीं था।

(2) एक महिला कई वर्षों से त्वचा के कैंसर से परेशान थी। उसकी बीमारी अंतिम दौर में थी। साथ ही उसके गुर्दे में बार-बार पथरियां बनती रहती थी और उसके गुर्दे की कई बार शल्य क्रिया भी हुई थी। इन सबके कारण उसके गुर्दे भी खराब हो चुके थे। उसे किसी मित्र ने कैंसर के उपचार के लिए शतावरी लेने की सलाह दी और उसने तुरंत उपचार शुरू किया। तीन महीने बाद चिकित्सक ने जांच करके उसे बताया कि उसकी त्वचा का कैंसर पूर्ण तया ठीक हो चुका है। वह बहुत खुश थी क्योंकि इस उपचार से उसके गुर्दे भी ठीक हो गये थे।

शतावरी सेवन की विधिः-

शतावरी को 4-5 मिनट पानी में उबाल कर मिक्सर में उसे फेंट कर फ्रीज में रख दें और दो दो चम्मच सुबह शाम सेवन करें।
ग्लू टा था यो न या जी.एस.एच.

“एं टी - आ क्सी डें ट्स का रा जा”

ग्लूटाथायोन शरीर में पाया जाने वाला सबसे शक्तिशाली और प्राकृतिक एन्टी-आक्सिडेंन्ट्स है। अंग्रेजी में इसे “मास्टर ऑफ एन्टी-आक्सिडेंन्ट्स” भी कहा जाता है। यह शरीर की प्रत्येक कोशिका में विद्यमान होता है, बिना इसके कोशिकाओं में होने वाली विभिन्न चयापचय क्रियाएं संभव नहीं है। यह एक प्रोटीन है जो तीन अमाइनो एसिड्स क्रमशः ग्लूटेमिक एसिड़, सिस्टीन व ग्लाइसीन से निर्मित होता है। यह प्रभावशाली कैंसर रोधी है। यह प्रोटीन व डी.एन.ए. का निर्माण व मरम्मत करता है। यह कोशिकाओं में एंजाइम्स् की गतिविधि को नियंत्रित करता है। मांस पेशियों को ताकतवर बनाता है। यह हमें युवा, ऊर्जावान व चिरायु रखता है इसीलिए इसे “यौवन का स्त्रोत” भी कहते हैं।


ग्लूटाथायोन के स्त्रोतः-

ग्लूटाथायोन लगभग सभी फलों व सब्जियों में पाया जाता है। शतावरी के अलावा यह तरबूज, एवोकाडो, संतरा, स्ट्रॉबेरी, आलू, आड़ू, टमाटर, भिन्डी, पालक, अजमोद, काली, गोभी, बन्द गोभी, हरी गोभी (ब्रोकोली) आदि में पाया जाता है। फलों व सब्जियों को पकाने से यह नष्ट हो जाता है। अतः इसके लिए हमें सब्जियों को कच्चा या भाप में हल्का सा पकाना चाहिये।


ग्लूटाथायोन को औषधीय उपयोगः-

ग्लूटाथायोन कैंसर, एड्स, मोतियाबिंद, काला पानी, दमा, हृदय रोग, यकृत रोग, अस्थि संध शोथ, पौरूष हीनता, वंध्यता, एल्झाइमर, पार्किन्सन्स, क्षीण स्मरण शक्ति आदि के उपचार में बहुत मददगार होता है। विकिरण और कीमो चिकित्सा के दुष्प्रभावों के उपचार हेतु ग्लूटाथायोन इन्जेक्शन द्वारा भी दिया जाता है।


ग्लूटाथायोन त्वचा के लिए भी वरदानः-

यह त्वचा को युवा, मखमली व गोरा भी बनाता है यदि इसे अन्य पोषक तत्वों के साथ (सूत्र 500 मि.ग्रा. ग्लूटाथायोन, 100 मि.ग्रा. विटामिन-सी., 100 मि.ग्रा. अल्फा लाइपोइक एसिड, 100 मि.ग्रा. विटामिन-ई और 50 मि.ग्रा. अंगूर के बीज का सत) 6 महिने या ज्यादा लिया जाये। ग्लूटाथायोन शक्तिशाली, प्राकृतिक एन्टी-आक्सिडेंन्ट है, यह मुक्त कणों को निष्क्रिय कर उनके दुष्प्रभावों से त्वचा की रक्षा करता है। ग्लूटाथायोन टाइरोसिनेज नामक एंजाइम की कार्य प्रणाली में गतिरोध पैदा करता है, जो त्वचा को गहरा रंग प्रदान करने वाले मेलानिन के निर्माण में सहायक होता है। यानी ग्लूटाथायोन का सेवन करने से त्वचा में मेलानिन बनना कम होने लगता है और धीरे-धीरे त्वचा गोरी होती जाती है। यह गौरापवन तो ग्लूटाथायोन की ओर से तो आपके लिए डेवीडेंट ही है।


उपसंहारः-

अंत में मैं यही कहुँगा कि शतावरी एक महत्वपूर्ण पौधा है जिसमें शतावरिन नामक फाइटोइस्ट्रोजन, हिस्टोन नामक प्रोटीन, फोलेट, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, विटामिन ए व सी, पोटेशियम, जिंक, रुटिन और ग्लूटाथायोन होते हैं। शतावरिन ही इसे नारी के कायाकल्प की महान औषधि का दर्जा दिलाती है। शतावरिन और हिस्टोन की स्तन, गर्भाशय और अंडाशय के कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ग्लूटाथायोन उत्कृष्ट एंटी-ऑक्सीडेंट है, प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करता है और यकृत का शोधन करता है और कैंसर नाशक है।


डॉ. ओ.पी.वर्मा M 09460816360

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