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11.5.10

‘सम्मान के लिए हत्या’ या सम्मान की हत्या?

पंचयतों के प्रपंच से प्रताडित होता प्रेम

-राजेश त्रिपाठी
इनसान की प्रगति के कदमों ने चांद की सतह तक को छू लिया है। अब उसकी परवाज दूसरे अजाने ग्रहों के रहस्य भेदने की ओर है लेकिन उनका अपना खूबसूरत ग्रह धरती कुरीतियों, कुसंस्कारों और रूढ़ियों से दिन ब दिन कलुषित और मलिन होता जा रहा है। 21 वीं सदी में भी हमारे देश में अब भी कई अंचल ऐसे हैं जहां जहालत का अंधेरा है और वहां लोग मध्ययुगीन बर्बरता के बीच जी रहे हैं। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ अंचलों में पंचायतों के तालिबानी और अमानवीय फरमानों से ऐसे युवक-युवतियों की जिंदगी सांसत में है जो एक-दूसरे को प्रेम करते हैं और विवाह करना चाहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में खाप कहलाने वाली पंचायतें ऐसे कई विवाहित जोड़ों को मौत का फरमान न सिर्फ सुना चुकी हैं अपितु उसे पूरा भी किया जा चुका है। उस पर तुर्रा यह कि समाज के ये ठेकेदार इस पर गर्व भी करते हैं कि उन्होंने समाज को एक गुनाह से बचा लिया। गुनाह एक गोत्र में विवाह करने का। इनका मानना है कि एक गोत्र में शादी करने वाले युवक-युवती के बीच भाई-बहन का रिश्ता होता है और वे आपस में विवाह नहीं कर सकते। अब अगर गोत्र की बात लें तो एक गोत्र वाले युवक-युवतियों की संख्या हजारों नहीं लाखों या उससे भी अधिक होगी। अगर एक ही गोत्र में विवाह वर्जित कर दिया जाये तो संभव है कुछ साल बाद कुछ लड़के-लड़कियों को कुआंरा ही रह जाना पड़े। जाति-पांत का भेदभाव तो शादी के मामले में पहले से ही था और अभी है, अबउस पर यह जाति वाला पचड़ा आ गया है। एक गोत्र में विवाह करने वाले युवक-युवतियों को मौत की सजा दी जाती है और विडंबना देखिए उसे ‘सम्मान के लिए हत्या’ जैसा महिमामंडित नाम दिया गया है। हमारा सवाल यह है कि यह सम्मान के लिए हत्या कैसे हुई? यह तो सम्मान की हत्या है उस प्रेमी जोड़े के सम्मान की हत्या जो वयस्क है और जिसमें अपना अच्छा-बुरा सोचने की शक्ति है, जिसे समाज के चंद ठेकेदारों का हाथ पकड़ कर चलने या मार्गदर्शन लेने की जरूरत नहीं। फिर वे उनकी राह में आड़े क्यों आते हैं। माता-पिता या समाज की इच्छा क्या होती है? उनकी आने वाली पीढ़ी खुशहाल, स्वतंत्रचेता और उदार हो। अपने अहंकार की तुष्टि और अपनी तथाकथित सम्मान रक्षा के लिए हम अपने ही बच्चों को मार कर कह रहे हैं कि हम समाज का सम्मान बचा रहे हैं। वाह रे मध्युगीन बर्बरता को ढोता समाज, हम थूकते हैं तुम पर धिक्कारते हैं तुम्हारे अज्ञान को और अफसोस करते हैं तुम्हारे पुरातनपंथी दकियानूसी रूढ़ियों से जकड़े खयालों को।

अखबारो में आये दिन ऐसी सम्मान के लिए हत्या की खबरें आती हैं और मन में एक कसक सी उठती है कि हमारे गणतांत्रिक देश में यह तालिबानी बर्बरता क्यों पल रही है। हम ऐसी कुरीतियों पर यकीन करने को क्यों मजबूर हैं जो देश के युवा वर्ग से उसका सामान्य अधिकार छीनती है। खाप या ऐसी पंचायतों की शादी या प्रेम करने वाले युवक-युवतियों की मौत का फरमान सुनानेवाली परंपरा समाज सुधार या परिष्कार का अंग है या अपनी नाक ऊंची रखने, अपने आदेश का मान रखने के लिए एक हठ जो दूसरों की जान लेकर ही शांत और गर्वित होता है? आज नहीं तो कल समाज को इसका जवाब ढूंढ़ना और देना होगा। यह जवाब उससे वह युवा पीढ़ी ही मांगेगी जो इन तालिबानी फरमानों से पीड़ित और त्रस्त है। अब अखबार में खबर है कि कुरुक्षेत्र से कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल भी खाप पंचायत के एक गोत्र में विवाह न करने के सिद्धांत के समर्थन में आ गये हैं। नवीन जी युवा हैं, आधुनिक खयालवाले और जहां तक अनुमान है उदारचेता हैं फिर वे इस रूढ़िवादी परंपरा के साथ खड़े होने को क्यों तैयार हो गये? बेचारे क्या करते खाप वालों ने धमकी जो दे डाली थी कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गयीं तो वे जिंदल के घर का घेराव कर देंगे। अब बेचारे जिंदल खाप वालों के सिद्धांत का संदेश अपने दल और देश की संसद तक ले जाने को तैयार हो गये हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने तो हिंदू विवाह कानून में संशोधन कर एक गोत्र में विवाह करने पर कानूनी रोक लगाने की मांग तक कर डाली है।

हम साधुवाद देते हैं अपनी न्यायपालिका का जो बिना किसी दबाव और द्वेष के अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही है और जिसने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें जिन्होंने 2007 के एक दोहरे हत्याकांड के पांच दोषियों को सजा-ए- मौत और खाप के एक सदस्य को उम्र कैद दी है। यह कैथल में एक ही गोत्र में विवाह करने वाले मनोज और बबली के हत्याकांड का मामला था। मनोज-बबली को अदालत की ओर से सुरक्षा मुहैया करायी गयी थी उसके बावजूद उनकी हत्या कर दी गयी क्योंकि खाप का ऐसा ही फरमान था। खाप पंचायत खुद को देश के कानून से भी ऊपर मानती है इसलिए उसका अपना कानून खुद है। वह खुद अदालत (पंचायत) लगाती है और खुद फैसला भी सुना देती है। उसकी यह कोशिश भी होती है कि उसके फरमान की तामील हो। आश्चर्य इस बात का है कि आज भी हमारा समाज इन रूढ़ियों को ढोने और मानने को मजबूर हैं। खाप के चंगुल में आये युवक-युवतियों के माता-पिता, भाई व दूसरे रिश्तेदार इन फरमानों को पूरा करने और अपने ही दिल के टुकड़ों की जान लेने में फख्र महसूस करते हैं। यह समाज इतना बुद्धिहीन है?

ऐसी परंपरा समाज के मुंह पर कालिख है, उसके सम्मान पर एक तमाचा है और उसके सामने खड़ा एक ऐसा प्रश्नचिह्न है जो उसे मुंह चिढ़ा रहा है। जो लोग मानवता के पक्षधर हैं और समाज को जहालत और रूढ़ियों के अंधेरे से दूर समता, ममता और महानता के पथ पर ले जाना चाहते हैं वे ऐसे समाज उसकी इस सड़ी-गली व्यवस्था पर हजार बार थूकेंगे और लानत-मलामत देंगे। पंचों को परमेश्वर माना जाता है लेकिन कभी-कभी वे तथाकथित परमेश्वर और उनके तालिबानी फरमान किसी न किसी पर भारी पड़ जाते हैं। पंचायतों का प्रपंच उन्हें जीने नहीं देता। आज का युवा वर्ग जात-पांत और दूसरी रूढ़ियों से आगे बढ़ गया है। उसे पता है कि बंदिशें संस्कारवान होने के लिए जरूरी हों लेकिन अनावश्यक बंदिशे समाज में प्रेम की जगह कटुता घोलती हैं। पुरानी पीढ़ी अगर ऐसे ही युवा वर्ग पर अपनी रूढ़िया थोपती रही तो उनके लिए बचा-खुचा सम्मान भी खत्म हो जायेगा। यह जरूरी है कि माता-पिता या समाज बच्चों को ऊंच-नीच, अच्छे-बुरे का फर्क समझायें और उन्हें विश्वास में लें और उनके मन और मंशा को समझने, उसमें अगर उचित है तो साथ देने की कोशिश करें। अगर कोई युवक-युवती प्रेम करते हैं, दोनों के परिवार अच्छे हैं, विचार अच्छे हैं और बच्चे खुशी और राजी हैं तो परिवार को गोत्र या दूसरी अड़चनों को परे रख अपने बच्चों की खुशी को प्राथमिकता दे कर उनकी शादी करानी चाहिए और उन्हें सुखद भविष्य का आशीर्वाद देना चाहिए। उनके बच्चों का भविष्य वे खुद तय करें किसी खाप या पंचायत को इसका हक क्यों और किस कानून से दे रहे हैं। माता-पिता अगर बच्चों की मर्जी को जानने-समझने लगें, उसकी कद्र करने लगें तो शायद किसी प्रेमी जोड़े को विवाह के लिए घर से भागने की जरूरत न पड़े। वे खाप या ऐसी ही शक्तियों के खौफ से माता-पिता से अपने संबंध छिपाते हैं कि उन्हें मार डाला जायेगा या प्रताड़ित किया जायेगा। पंचायतों का वह प्रपंच अब बंद होना चाहिए जो मौत का फरमान सुनाता है या मौत के लिए उकसाता है। कई पंचायतों पर दलितों पर जुल्म करने का आरोप तक लग चुका है। यह अनीति बंद होनी चाहिए।

खाप वालों से भी अनुरोध है कि वे सदियों पीछे जाने के बजाय आज के युग में आयें, अपने दिलों और दिमाग को खुला रखें और ऐसा कुछ करें जिससे पंचायतों की खोयी मर्यादा वापस आये। ऐसा होने पर ही पंचायती राज्य की सार्थकता है। ऐसा होन पर ही शायद गांधी का सपना भी साकार हो सकेगा जो उन्होंने भारत के गांवों को लेकर देखा था। समाज का एक अंग होने के नाते मैंने एक कुरीति की ओर उंगली उठायी है यह जानते और समझते हुए कि इसके लिए गालियां मिलेंगे शायद तालियां भी पर मुजे गालियां भी स्वीकार हैं। एक नेक मकसद से मैंने कुछ कुंद मगजों को कुरेदने और जगाने की कोशिश की है। प्रभु से प्रार्थना है कि ऐसे दिमाग जग जायें, उनमें प्रेम (सच्चे प्रेम सतही या पाखंडी नहीं) को मर्यादा और समर्थन देने के भाव जगें। वे कुरीतियों से उबरें और युवा पीढ़ी से अनुरोध है कि वह अपने स्तर पर इस तरह की कुरीतियों के खिलाफ मोर्चा खोले और इन्हें बंद कराने की हरचंद कोशिश करे क्योंकि इससे समाज और देश का सम्मान और उसकी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न लगता है।
rajeshtripathi@sify.com
tripathirajesh@hotmail.com

2 comments:

SANJEEV RANA said...

अच्छा लेख

अरुणेश मिश्र said...

सामयिक आलेख ।